त्यागपथी खंडकाव्य की कथावस्तु।
प्रसिद्ध साहित्यकार रामेश्वर शुक्ल अंचल द्वारा रचित त्यागपथी खंडकाव्य ऐतिहासिक काव्य है। त्यागपथी’ खण्डकाव्य की कथावस्तु में छठी शताब्दी के प्रसिद्ध सम्राट हर्षवर्धन के त्याग तब और सात्विकता का वर्णन किया गया है साथ ही भारत की राजनीतिक एकता संघर्ष हर्ष की वीरता और उनके द्वारा विदेशी आक्रमणकारियों को भारत से भगाने का वर्णन किया गया है। त्यागपथी खंडकाव्य की कथावस्तु
त्यागपथी खंडकाव्य का प्रथम सर्ग (त्यागपथी खंडकाव्य की कथावस्तु)
राजकुमार हर्षवर्धन वन में शिकार खेलने में व्यस्त थे तभी उन्हें पिता के रोग ग्रस्त होने का समाचार मिला। कुमार तुरंत लौट आए और पिता को रोग मुक्त करने के लिए वह बहुत उपचार करवाते हैं परंतु असफल रहते हैं इसी के साथ उनके बड़े भाई राज्यवर्धन उत्तरापथ पर हूणो से युद्ध करने में लगे हुए थे। हर्ष ने दूत भेजकर पिता की अस्वस्थता का समाचार उन तक पहुंचाया।

त्यागपथी खण्डकाव्य में उधर उनकी माता अपने पति की अस्वस्थता को बढ़ता हुआ देखकर आत्मदाह करने का निश्चय किया और बहुत समझाने पर भी वह अपने निर्णय पर अडिग रही और पति की मृत्यु से पूर्व ही आत्मदाह कर लिया। कुछ समय पश्चात हर्ष के पिता की भी मृत्यु हो गई। पिता का अंतिम संस्कार करके हर्ष दुखी मन से राजमहल लौट आई। खंडकाव्य के प्रथम सर्ग में इस प्रकार की कहानी का वर्णन किया गया है तथा हर्ष के शुरुआती संघर्षों को दर्शाया गया है। त्यागपथी खंडकाव्य की कथावस्तु
त्यागपथी खंडकाव्य का द्वितीय सर्ग
पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर राज्यवर्धन भी अपने नगर लौट आए। माता पिता की मृत्यु से व्याकुल होकर उन्होंने वैराग्य लेने का निश्चय किया। परंतु तभी उन्हें समाचार मिलता है कि मानव राज ने उनकी छोटी बहन राज्यश्री को बंदी बना लिया है और उसके पति ग्रहवर्मन को मार डाला है। यह सुनकर राज्यवर्धन सब कुछ भूल कर मालव राज को परास्त करने चल पड़ते हैं।
वह गॉड नरेश को हरा देते हैं पर गोड नरेश धोखे से मार्ग में उनकी हत्या करवा देता जब यह समाचार हर्षवर्धन को ज्ञात होता है तो वह विशाल सेना लेकर गॉड नरेश से युद्ध करने के लिए चल पड़ते हैं परंतु तभी सेनापति से अपनी बहन के वन में जाने का समाचार मिलता है जिसे सुनकर वहां अपनी बहन को खोजने बनकर चल पड़ते हैं वहां एक बिच्छू द्वारा उन्हें राजश्री के आत्मदाह करने की बात पता चलती है शीघ्र ही वहां पहुंचकर वह अपनी बहन को ऐसा करने से रोक लेते हैं और कन्नौज लौट आते हैं। इस संघ में इतना ही बताया गया है इससे आगे की कहानी अगले सर्ग में बताई गई है।
त्यागपथी खंडकाव्य का तृतीय सर्ग
इस सर्ग में सम्राट हर्ष की इतिहास प्रसिद्ध दिग्विजय का वर्णन है 6 वर्षों तक निरंतर युद्ध करते हुए हर्ष ने समस्त उत्तराखंड को जीत लिया। रनिंग कश्मीर मिथिला बिहार बोर्ड उत्कल नेपाल बल्लवी सोरठ आज सभी राज्यों को जीत लिया तथा यवन, हूणो आदि विदेशी शत्रुओं का नाश करके देश को शक्तिशाली एवं सुगठित राज्य बनाया और अनेक वर्षों तक धर्म पूर्वक शासन किया। उनके राज्य में धर्म संस्कृति और कला की भी पर्याप्त उन्नति हुई। उन्होंने कन्नौज को ही अपने विशाल साम्राज्य की राजधानी बनाया। त्यागपथी खंडकाव्य की कथावस्तु
खंडकाव्य का चतुर्थ सर्ग
निसर्ग में राजश्री हर्ष और आचार्य दिवाकर के वार्तालाप का वर्णन किया गया है। यद्यपि राजश्री अपने भाई के साथ कन्नौज के राज्य की संयुक्त रूप से शासिका थी। परंतु मन में तथागत की उपासिका थी। और वह भिक्षुणी बनना चाहती थी। परंतु हर्ष इसके लिए तैयार नहीं थे। बाद में आचार्य दिवाकर ने राज्यश्री को मानव कल्याण में लगने का उपदेश दिया। राज्यश्री ने उनके उपदेशों का पालन किया और वह मानव सेवा में लग गई।
खंडकाव्य का पंचम सर्ग
इस सर्ग में हर्ष के त्यागी और रति जीवन का वर्णन किया गया है। हर्ष ने प्रयाग में त्याग व्रत महोत्सव मनाने का निश्चय किया। उन्होंने देश के सभी ब्राह्मणों श्रमिकों भिक्षुओं धार्मिक व्यक्तियों आदि को प्रयास में आने के लिए निमंत्रण दिया और संपूर्ण संचित कोष को दान देने की घोषणा की।
प्रतिवर्ष माघ के महीने में त्रिवेणी तट पर विशाल मेला लगता था इस अवसर पर प्रति पांचवे वर्ष हर्षवर्धन अपना सर्वस्व दान कर देते थे तथा अपनी बहन राजश्री से मांग कर वस्त्र धारण करते थे। त्यागपथी खंडकाव्य की कथावस्तु
इस प्रकार भी एक साधारण व्यक्ति के रूप में अपनी राजधानी वापस लौटे थे। इस दान गोवा प्रजा ऋण से मुक्ति का नाम दे देते थे इस प्रकार कर्तव्य परायण त्यागी परोपकारी परमवीर महाराजा हर्षवर्धन का शासन सब प्रकार से सुख कर तथा कल्याणकारी सिद्ध होता था। सम्राट हर्षवर्धन के माध्यम से कवि ने तत्कालीन श्रेष्ठ शासन का उल्लेख करते हुए भारतीय धर्म राजनीति संस्कृति और समाज की उन्नति का उत्कृष्ट वर्णन किया है।
त्यागपथी खंडकाव्य के नाम की सार्थकता
त्यागपथी नाम की सार्थकता रामेश्वर शुक्ल अंचल द्वारा रचित त्यागपथी खंडकाव्य सम्राट हर्षवर्धन के जीवन वृत्त पर आधारित है। सम्राट हर्षवर्धन का संपूर्ण जीवन संघर्ष एवं त्याग की कहानी है। इस महान सम्राट ने तत्कालीन युग के छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त भारत कोई विशाल साम्राज्य सूत्र में बांधकर शांति शक्ति एवं विकास का मार्ग प्रशस्त किया। वे प्रजा की वास्तविक उन्नति चाहते थे।
उन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों से राष्ट्र की रक्षा की थी। शांति स्थापना के बाद जब उन्होंने एक संगठित साम्राज्य की स्थापना कर ली तब भी उन्होंने विलासिता की राह नहीं पकड़ी और उन्होंने अपना सर्वस्व त्याग करने का दृढ़ निश्चय किया। इस संकल्प के कारण वे तीर्थराज प्रयाग में प्रत्येक 5 वर्ष बाद अपने कोष का सर्वस्व दान कर देते थे। किसी राजपुरुष तथा सम्राट मैं त्यागी यह अलौकिक ज्योति भरी हुई हो तो वह त्यागपथी ही कहलाएगा। अतः स्पष्ट है के त्यागपथी खंडकाव्य के नाम की सार्थकता क्या है। त्यागपथी खंडकाव्य की कथावस्तु
खंडकाव्य के कथानक की ऐतिहासिकता
त्यागपथी खंडकाव्य में सातवीं शताब्दी के प्रसिद्ध सम्राट हर्षवर्धन की कथा का वर्णन हुआ है कवि ने हर्षवर्धन के माता पिता की मृत्यु भाई बहनोई की हत्या कन्नौज के राज्य संचालन मानव राज शासक से युद्ध हर्ष द्वारा दिग्विजय करके धर्म शासन की स्थापना तथा प्रत्येक पांचवे एवं तीर्थराज प्रयाग से सर्वस्व दान करने की ऐतिहासिक घटनाओं को अत्यधिक सरल एवं सरस रूप में प्रस्तुत किया है। खंडकाव्य की कथावस्तु यज्ञ पर ऐतिहासिक है तथा कवि ने अपनी कल्पना शक्ति का समन्वय कर इसे अत्यंत रचनात्मक बना दिया है।
पात्र एवम् चरित्र चित्रण
त्यागपथी खंडकाव्य प्रभाकर वर्धन तथा उनकी पत्नी यशोमती उनके दो पुत्र राज्यवर्धन और हर्षवर्धन एक पुत्री राज्यश्री कन्नौज मालव गॉड प्रदेश के राज्यों के अतिरिक्त आचार्य दिवाकर सेनापति आदि अनेक पात्र हैं। खंडकाव्य के नायक सम्राट हर्षवर्धन है तथा इस काव्य की नायिका हर्ष की बहन राजश्री है।
काव्यगत विशेषताएं
त्यागपथी खंडकाव्य की काव्यगत विशेषताएं निम्नलिखित हैं
भाव पक्षीय विशेषताएं त्यागपथी खंडकाव्य की भागवत संबंधी विशेषताएं निम्नलिखित हैं

- मार्मिकता खंडकाव्य में अनेक मार्मिक घटनाओं का संयोजन किया गया है इसमें हर्षवर्धन की माता का चिता रोहन राज्यवर्धन की वैराग्य हेतु तत्परता राज्यश्री के विधवा होने पर हर्ष की व्याकुलता राज्यश्री द्वारा आत्मदाह के समय हर्षवर्धन के मिलन का मार्मिक चित्रण हुआ है।
- प्रकृति चित्रण इस खंडकाव्य में कवि ने प्रकृति के विभिन्न रूपों का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है। हां खेत के समय हर्षवर्धन को पिता के रोग ग्रस्त होने का समाचार मिलता है वह तुरंत राज महल को लौट आते हैं उस समय के 1 की प्रकृति का एक दृश्य इस प्रकार है। “वन पशु अविरत, खर सर वर्षण से अकुलाये,
फिर गिरि श्रेणी में खोहों से बाहर आए।”
- रस निरूपण चपाती में कवि ने करोड़ वीर रूद्र शांत आदर्शों का मर्मस्पर्शी वर्णन किया है कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं
करुण रस
“मुझ मंद पुण्य को छोड़ न मां तुम भी जाओ,
छोड़ो विचार यह मुझे चरण से लिपटाओ”
वीर रस –
“कन्नौज विजय को वाहिनी सत्वर,
गुंजित था चारों ओर युद्ध का ही स्वर।”
कलापक्षीय विशेषताएं त्यागपथी खंडकाव्य की क्लागत विशेषताएं निम्नलिखित है
- भाषा शैली खंड काव्य की भाषा कथावस्तु और चरण नायक के अनुरूप होती है त्यागपथी की भाषा तत्सम शब्दों से परिपूर्ण है। हर्ष के ज्ञान मानव प्रेम त्याग अहिंसा निष्काम कर्म आज आदर्शों को प्रस्तुत करने के लिए भाषा की तत्सम प्रधानता अनिवार्य थी।
- अलंकार योजना त्यागपथी खंडकाव्य में उपमा रूपक तथा उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों के स्वभाविक प्रयोग किए गए हैं
- छंद योजना संपूर्ण खंडकाव्य 26 मात्राओं के गीत का छंद में रचित है 5 वर्ग का अंत में धना अक्षरी का प्रयोग हुआ है। यह रचना की समाप्ति का ही सूचक नहीं वरन वर्णन की दृष्टि से प्रशस्ति का भी सूचक है।
- संवाद शिल्प त्यागपथी खंडकाव्य में कवि ने सरल मार्मिक एवं प्रवाह पूर्ण संवादों का समावेश करके अपनी काव्य और नाटकों क्षमता का परिचय दिया है। अनेक स्थानों पर काम पर नाटिका जैसे आनंद प्राप्त होता है।
“संवाद यदि कोई मिला हो आपको उसका कहीं,
कृष्ण बताएं मैं इसी क्षण खोजने जाऊं वही।”
त्यागपथी खंडकाव्य का उद्देश्य अथवा संदेश
किसी भी साहित्य कृत्य में जब किसी सद्गुणी सदाचारी और महान व्यक्तित्व रखने वाले ऐतिहासिक पुरुष को चित्र किया जाता है तो उसका एकमात्र उद्देश्य जनसाधारण में उन सद्गुणों के प्रति संवेदना जागृत करना होता है। सद्गुणों का व्यक्तित्व प्रतिस्थापन और व्यवहार में उनका अनुकरण ही तो भारतीयता का प्राया है जिसका चित्रण हर्षवर्धन और राज्यश्री के चरित्रों में करके कवि ने युवकों को भारतीयता का संदेश दिया है।
प्रस्तुत खंडकाव्य में हर्षवर्धन के महान गुणों को भावात्मक अभिव्यक्ति देकर उनके असाधारण व्यक्तित्व का चित्रण किया गया है। कवि का उद्देश्य जनचेतना में विशेष रूप से युवा चेतना में इन सद्गुणों के प्रति भावात्मक संवेदन उत्पन्न करना है। जागपति दांत गुणों के प्रति मन में भावात्मक संदेशों को उत्पन्न करने में सक्षम खंडकाव्य।
खंडकाव्य के नायक हर्षवर्धन का चरित्र चित्रण।
सम्राट हर्षवर्धन थानेश्वर के महाराजा प्रभाकर वर्धन के छोटे पुत्र हैं। वे त्यागपथी खंडकाव्य के नायक हैं। संपूर्ण कथा का केंद्र वही है। संपूर्ण घटनाचक्र उन्हीं के चारों ओर घूमता है उन्होंने छिन्न-भिन्न ने भारत को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बांधने का महान कार्य किया। उनके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएं दिखाई देती हैं
- आदर्श पुत्र एवं भाई त्यागपथी खंडकाव्य में हर्षवर्धन एक आदर्श पुत्र एवं आदर्श भाई के रूप में पाठकों के समक्ष उपस्थित होते हैं। जैसे ही पिता के अस्वस्थ होने का समाचार मिलता है वे शीघ्र ही आखेट से लौट आते हैं और यथासंभव उपचार भी करवाते हैं। पिता के स्वस्थ न होने तथा माता के आत्मदाह करने की बात सुनकर वे अत्यंत व्याकुल हो उठते हैं इसी प्रकार बहन राज्यश्री को भी अग्नि दांत से बचाते हैं तथा उसे संपूर्ण राज्य सौंप कर अपने प्रेम का परिचय देते हैं बड़े भाई राज्यवर्धन के प्रति भी उनके मन में अपार स्नेह है।
- दानी एवं दृढ़ निश्चय हर्षवर्धन दानी एवं दृढ़ निश्चय है उन्होंने चीन भारत को एक करने का दृढ़ निश्चय किया और इसमें सफल भी रहे भाई की मृत्यु का समाचार सुनकर उन्होंने जो दृढ़ प्रतिज्ञा की थी उनका भी पूर्णता पालन किया। हर्षवर्धन तीर्थराज प्रयाग में प्रत्येक 5 वर्ष पर संपूर्ण राजकोष को दान कर देने की घोषणा करते हैं। त्रिवेणी संगम पर प्रयाग में प्रति 5 वर्ष बाद माघ महीने में सर्वस्व त्याग करने का संकल्प लेते हैं अपने जीवन में वे 6 बार इस प्रकार सदस्य दान का आयोजन करते हैं।
- महान योद्धा हर्षवर्धन महान योद्धा है तथा उनके पराक्रम के आगे कोई योद्धा टिक नहीं पाता। कोई भी राजा उन्हें पराजित नहीं कर सका महाराजा हर्षवर्धन की दिग्विजय उनका युद्ध कौशल और उनकी वीरता भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है उनकी वीरता एवं कुशल शासन का ही परिणाम था कि उनका कोई भी दुश्मन सिर नहीं उठा पाया था उनके सामने।
- पराक्रमी एवं धैर्य शाली हर्षवर्धन अत्यंत पराक्रमी है साथ ही धैर्य शाली भी हैं। पिता की मृत्यु माता का आत्मदाह बहनोई की मृत्यु और अपने प्रिय भाई राज्यवर्धन की मृत्यु जैसे महान संकटों को उन्होंने अकेले ही सहन किया था। संकट की इस घड़ी में भी उन्होंने कभी अपना धैर्य नहीं छोड़ा।
- योग्य एवं कुशल शासक पिता और भाई की मृत्यु के पश्चात हर्षवर्धन राजा बने उनका शासन सुख शांति और समृद्धि से परिपूर्ण था। उनके राज्य में प्रजापत प्रकाशित की थी विद्वानों की पूजा की जाती थी तथा सभी प्रजा जन आचरण 1 धर्म पालक स्वतंत्र एवं सुशील थे। वे सदैव जनकल्याण एवं शास्त्र चिंतन में लगे रहते थे वह स्वयं को प्रजा का सेवक समझते थे।
इस प्रकार हर्ष का चरित्र एक वीर योद्धा आदर्श पुत्र आदर्श भाई और महानत्यागी शासक का चरित्र है वह अपने कर्तव्यों के प्रति अधिक सजग हैं उनका यही गुण आज के भटके हुए युवाओं को प्रेरणा दे सकता है। त्यागपथी खंडकाव्य की कथावस्तु
त्यागपथी खंडकाव्य के आधार पर राज्यश्री का चरित्र चित्रण
कविवर रामेश्वर शुक्ल अंचल द्वारा रचित त्यागपथी खंडकाव्य की प्रमुख स्त्री पात्र राज्यश्री है। वह ममता की मूर्ति माता-पिता की प्रिय पुत्री कन्नौज की रानी और बुध की अनन्य उपासक का है। वह महाराज प्रभाकर वर्धन की पुत्री एवं सम्राट हर्षवर्धन की छोटी बहन है। विवाह के कुछ समय बाद ही उसके पति की मृत्यु हो जाती है और उसे वैधव्य जीवन बिताना पड़ता है। इसके बाद वह अपना संपूर्ण जीवन लोक कल्याण हेतु व्यतीत करती हैं। राज्यश्री के चरित्र की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं
- आदर्श नारी राज्य श्री आदर्श पुत्री आदर्श बहन और आदर्श पत्नी के रूप में हमारे समक्ष आती है। माता पिता की यह लाडली बेटी युवावस्था में ही जब विधवा हो जाती है तो बंदी बना ली जाती है। जब वह भाई राज्यवर्धन की मृत्यु का समाचार सुनती है तो कारागार से भाग निकलती है और वन में भटकती आत्मा दाह के लिए तत्पर हो जाती है किंतु शीघ्र ही वह अपने भाई हर्षवर्धन द्वारा बचा ली जाती है। तब वह तन मन से प्रजा की सेवा में अपना संपूर्ण जीवन अर्पित कर देती है।
- धर्म परायण एवं त्यागमयी राज्यश्री का संपूर्ण जीवन त्याग भावना से परिपूर्ण है। भाई हर्षवर्धन उससे सिंहासन पर बैठने का आग्रह करते हैं परंतु वह राज्य सिंहासन ग्रहण करने से मना कर देती है। वह राज्य वैभव का परीक्षा करके कठोर संयम एवं नियम का मार्ग स्वीकार कर लेती है। माघ मेले में प्रत्येक 5 वर्ष वह भी अपने भाई की बातें सर्वस्व दान कर देती है।–
“लुटाती थी बहन भी पास का सब तीर्थ स्थल में” - देशभक्त एवं जन सेविका राज्यश्री के मन में देशप्रेम और लोक कल्याण की भावना भरी हुई है। हर्ष के समझाने पर भी वह वैधव्य का दुख जलते हुए देश सेवा में लगी रहती है। इसी कारण वह सन्यासिनी बनने के विचार को छोड़ देती है तथा अपना संपूर्ण जीवन देश सेवा में बता देती है।
- ज्ञान संपन्न राज्यश्री शिक्षित है साथ ही वह शास्त्रों के ज्ञान से भी भलीभांति परिचित है। आचार्य दिवाकर मित्र सन्यास धर्म का तात्विक विवेचन करते हुए उसे मानव कल्याण के कार्य में लगने का उपदेश देते हैं और इसे वह स्वीकार कर लेती है वह आचार्य की आज्ञा का पालन करती है।
- करुणा की साक्षात मूर्ति राज्यश्री करुणा की साक्षात मूर्ति है। उसने माता पिता की मृत्यु और बड़े भाई की मृत्यु के अनेक दुख झेले। इन दुखों की अग्नि में तब कर वह करुणा की मूर्ति बन गई। इस प्रकार राज्यश्री का चरित्र एक आदर्श भारतीय नारी का चरित्र है राज्यश्री एक आदर्श राजकुमारी थी जिसने अपना संपूर्ण जीवन पूर्व सार्थकता और पवित्रता से व्यतीत किया। वह त्याग में और करुणामई थी। इसलिए उसका चरित्र अनुकरणीय है।
त्यागपथी खण्डकाव्य की सम्पूर्ण संक्षेप में कहानी में यही तक था अगर आपको लगता है कि इसमें कुछ और अध्यन सामग्री समाहित करनी है तो या तो आप हमारे कांटेक्ट पेज पर जाकर सीधे हमें राय दे हैं। त्यागपथी खंडकाव्य की कथावस्तु
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