भारतीय संविधान। भारतीय संविधान की प्रस्तावना। भारतीय संविधान pdf |

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संविधान किसी भी देश की आत्मा होती है। भारतीय संविधान को लेकर भारत के लोगो के दिलो में बहुत ही अधिक सम्मान है। लेकिन यह जितना सच है उतना ही कड़वा सच यह भी है कि भारत सरे लोग ऐसे है जो संविधान के बारे में कुछ भी नहीं जानते है और अगर जानते भी है तो इतना अधिक है जितना उन्हें जानना चाहिए।
अर्थात हमारे यंहा पर लोगो को भारतीय संविधान के बारे में बहुत कम जानकारी। इसी बात का ध्यान रखते हुए आज हम आपके लिए भारतीय संविधान से जुडी हुई सम्पूर्ण जानकारी आपके लिए लेकर प्रस्तुत हुए है। हमारे इस आर्टिकल में आपको भारतीय संविधान से जुडी हुयी सारी जानकारी बहुत ही सरल भाषा में प्रस्तुत की गयी है।
भारतीय संविधान का इतिहास
1757 ई. की प्लासी की लड़ाई और 1764 ई. के बक्सर के युध्द को अंग्रेजो द्वारा जीत लिए जाने के बाद बंगाल पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने शासन का सिकंजा कसा | इसी शासन को अपने अनुकूल बनाये रखने के लिए अंग्रेजोंने समय समय पर कई एक्ट लागु किये, जो भारतीय संविधान के विकास की सीडियां बनीं | वे निम्न प्रकार है –
1773 ई. का रेग्युलेटिंग एक्ट : इस अधिनियम का अत्यधिक संविधानिक महत्त्व है
- भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यो को नियमित और नियंत्रित करने की दिशा ब्रिटिश सर्कार द्वारा उठाया गया यह पहला कदम था | अर्थात कंपनी के शासन पर संसदीय नियंत्रण स्थापित किया गया |
- इसके द्वारा पहली बार कंपनी के प्रशासनिक और राजनेतिक कार्यो को मान्यता मिली |
- इसके द्वारा केन्द्रीय प्रशासन की नीव रखी गयी |
भारतीय संविधान की विशेषताएं
इस अधिनियम द्वारा बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जनरल पद नाम दिया गया तथा मुंबई एवं मद्रास के गवर्नर को इसके अधीन किया गया इस एक्ट के तहत बनने वाले प्रथम गवर्नर जनरल लार्ड वारेन हेस्टिंग्स थे।
इस एक्ट के अंतर्गत कोलकाता प्रेसीडेंसी में एक ऐसी सरकार स्थापित की गई जिसमें गवर्नर जनरल और उसकी परिषद के 4 सदस्य थे जो अपनी सत्ता के उपयोग संयुक्त रूप से करते थे।

इस अधिनियम के अंतर्गत कोलकाता में 17 से 74 ईसवी में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गई जिसमें मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश थे। इसके प्रथम न्यायाधीश सर एलिजाह इम्पे थे। तथा अन्य तीन न्यायाधीश क्रमशः चैंबर्स लिमेनस्टर और हाइड थे।
इसके तहत कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने और भारतीय लोगों से उपहार व रिश्वत लेना प्रतिबंधित किया गया।
इस अधिनियम के द्वारा ब्रिटिश सरकार को बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के माध्यम से कंपनी पर नियंत्रण सशक्त हो गया। इसे भारत में इसके राजस्व नागरिक एवं सैन्य मामलों की जानकारी ब्रिटिश सरकार को देना आवश्यक कर दिया गया।
एक्ट ऑफ सेटलमेंट 1981 ईसवी रेगुलेटिंग एक्ट की कमियों को दूर करने के लिए इस एक्ट का प्रावधान किया गया इस एक्ट के अनुसार कोलकाता की सरकार को बंगाल बिहार और उड़ीसा के लिए भी विधि बनाने का प्राधिकार प्रदान किया गया। भारतीय संविधान का निर्माण
1784 इसवी का पिटस इंडिया एक्ट इस एक्ट के द्वारा दोहरे प्रशासन का प्रारंभ हुआ बोर्ड ऑफ डायरेक्टर व्यापारिक मामलों के लिए था और बोर्ड ऑफ कंट्रोल राजनीतिक मामलों के लिए था।
1993 ईस्वी का चार्टर अधिनियम इसके द्वारा नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों तथा कर्मचारियों के वेतन आदि को भारतीय राजस्व में से देने की व्यवस्था की गई।
1813 का चार्टर अधिनियम इस अधिनियम की मुख्य विशेषता है कंपनी के अधिकार पत्र को 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया तथा दूसरी विशेषता यह है कि कंपनी के भारत के साथ व्यापार करने के एकाधिकार को छीन लिया गया। किंतु उसे चीन के साथ व्यापार एवम पूर्वी देशों के साथ चाय के व्यापार के संबंध में 20 वर्षों के लिए एक अधिकार प्राप्त रहा। और तीसरी विशेषता थी कि कुछ सीमाओं के अधीन सभी ब्रिटिश नागरिकों के लिए भारत के साथ व्यापार खोल दिया गया। तथा अंतिम और चौथी विशेषता यह थी कि 1813 से पहले ईसाई पादरियों को भारत में आने की आज्ञा नहीं थी परंतु 1813 ईस्वी के अधिनियम द्वारा ईसाई पादरियों को आज्ञा प्राप्त करके भारत आने की सुविधा मिल गई।
1835 ईस्वी का चार्टर अधिनियम इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएं निम्न प्रकार से हैं जिसमें से पहली विशेषता यह है कि इसके द्वारा कंपनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णता समाप्त कर दिए गए तथा दूसरी विशेषता यह है कि अब कंपनी का कार्य ब्रिटिश सरकार की ओर से मात्र भारत का शासन करना रह गया तथा तीसरी विशेषता यह थी कि बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा तथा चौथी विशेषता यह पीके मुंबई तथा मद्रास की परिषदों की विधि निर्माण शक्तियों को वापस ले लिया गया तथा पांचवी विशेषता यह थी कि विधिक परामर्श हेतु गवर्नर जनरल की परिषद में विधि सदस्य के रूप में चौथे सदस्य को शामिल किया गया तथा छठी विशेषता यह थी कि भारत में दास प्रथा को विधि विरुद्ध घोषित कर दिया गया तथा 18 से 43 ईसवी में उसका उन्मूलन कर दिया गया सातवीं विशेषता यह थी अधिनियम की धारा 87 के तहत कंपनी के अधीन पद धारण करने के लिए किसी व्यक्ति को धर्म जन्म स्थान मूलगंज या रंग के आधार पर अयोग्य ठहराए जाने का बंद किया गया आठवीं व्यवस्था यह थी कि गवर्नर जनरल की परिषद को राजस्व के संबंध में पूर्ण अधिकार प्रदान करते हुए गवर्नर जनरल को संपूर्ण देश के लिए एक ही बजट तैयार करने का अधिकार दिया गया तथा अंतिम और नवी विशेषता यह थी कि भारतीय कानूनों का वर्गीकरण किया गया तथा इस कार्य के लिए विधि आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था की गई तथा 18 से 34 ईसवी में लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में प्रथम विधि आयोग का गठन किया गया। भारतीय संविधान
1853 ईसवी का चार्टर अधिनियम इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएं हैं किस अधिनियम के द्वारा सेवाओं में नामजदगी का सिद्धांत समाप्त कर कंपनी के महत्वपूर्ण पदों को प्रतियोगी परीक्षाओं के आधार पर भरने की व्यवस्था की गई इसके लिए अट्ठारह सौ सत्तावन ईसवी में मैकाले समिति की नियुक्ति की गई तथा दूसरी विशेषता यह थी कि इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल की परिषद के विदाई एवं प्रशासनिक कार्यों को अलग कर दिया गया इसके तहत परिषद में 6 नए पार्षद जोड़े गए जिन्हें विधान पार्षद कहा गया।
1858 ईसवी का भारत शासन अधिनियम इस अधिनियम की विशेषताएं निम्नलिखित हैं
- भारत का शासन कंपनी से लेकर ब्रिटिश क्राउन के हाथों में सौंपा गया।
- भारत में मंत्री पद की व्यवस्था की गई
- 15 सदस्यों की भारत परिषद का सृजन हुआ जिसमें 8 सदस्य ब्रिटिश सरकार द्वारा एवं सात सदस्य कंपनी के निदेशक मंडल द्वारा नियुक्त किए गए।
- भारतीय मामलों पर ब्रिटिश संसद का सीधा नियंत्रण स्थापित किया गया।
- मुगल सम्राट के पद को समाप्त कर दिया गया।
- इस अधिनियम के द्वारा बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स तथा बोर्ड ऑफ कंट्रोल को समाप्त कर दिया गया।
- भारत में शासन संचालन के लिए ब्रिटिश मंत्रिमंडल में 1 सदस्य के रूप में भारत के राज्य सचिव की नियुक्ति की गई अतः वह अपने कार्यों के लिए ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदाई होता था तथा भारत के प्रशासन पर इसका संपूर्ण नियंत्रण होता था उसी का वाक्य अंतिम होता था चाहे वह नीति के विषय में हो या अन्य ब्यौरे के विषय में।
- भारत के गवर्नर जनरल का नाम बदलकर वायसराय कर दिया गया। अतः इस समय के गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग अंतिम गवर्नर जनरल एवं प्रथम वायसराय हुए।
1861 ईसवी का भारत परिषद अधिनियम इस अधिनियम की विशेषताएं निम्नलिखित दर्शाई गई है
- गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद का विस्तार किया गया
- विभागीय प्रणाली का प्रारंभ हुआ
- गवर्नर जनरल को पहली बार अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई ऐसे अध्यादेश की अवधि मात्र छह महीना होती थी
- गवर्नर जनरल को बंगाल उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत और पंजाब में विधान परिषद स्थापित करने की शक्ति प्रदान की गई।
- इसके द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत हुई वायसराय कुछ भारतीयों को विस्तारित परिषद में गैर सरकारी सदस्यों के रूप में नामांकित कर सकता था।
नोट – 1862 ईस्वी में लॉर्ड कैनिंग ने तीन भारतीयों बनारस के राजा पटियाला के महाराजा और सर दिनकर राव को विधान परिषद में मनोनीत किया।
1873 ईस्वी का अधिनियम इस अधिनियम द्वारा यह उपबंध किया गया कि ईस्ट इंडिया कंपनी को किसी भी समय भंग किया जा सकता है। 1 जनवरी 1884 ईसवी को ईस्ट इंडिया कंपनी को औपचारिक रूप से भंग कर दिया गया।
शाही उपाधि अधिनियम 1876 ई इस अधिनियम द्वारा गवर्नर जनरल की केंद्रीय कार्यकारिणी में छठे सदस्य की नियुक्ति कर उसे लोक निर्माण विभाग का कार्य सौंपा गया। 28 अप्रैल 1876 ई को एक घोषणा द्वारा महारानी विक्टोरिया को भारत की सम्राट की घोषित किया गया।
1892 ईस्वी का भारत परिषद अधिनियम इस अधिनियम की मुख्य विशेषता निम्न प्रकार से है
- अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली की शुरुआत हुई
- इसके द्वारा राजस्व एवं विधवा बजट पर बहस करने तथा कार्यकारिणी से प्रश्न पूछने की शक्ति दी गई।
1909 का भारत परिषद अधिनियम इस अधिनियम की विशेषताएं निम्न प्रकार से प्रदर्शित की गई है
- पहली बार मुस्लिम समुदाय के लिए प्रथक प्रतिनिधित्व का उपबंध किया गया इसके अंतर्गत मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते थे इस प्रकार इस अधिनियम ने सांप्रदायिकता को वैधानिकता प्रदान की और लॉर्ड मिंटो को सांप्रदायिक निर्वाचन के जनक के रूप में जाना गया।
- भारतीयों को भारत सचिव एवं गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषदों में नियुक्ति की गई
- केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों को पहली बार बजट पर वाद-विवाद करने सार्वजनिक हित के विषयों पर प्रस्ताव पेश करने पूरक प्रश्न पूछने और मत देने का अधिकार मिला।
- प्रांतीय विधान परिषदों की संख्या में वृद्धि की गई।
- सत्येंद्र प्रसाद सिंहा वायसराय की कार्यपालिका परिषद के प्रथम भारतीय सदस्य बने।
- इस अधिनियम के तहत प्रेसिडेंसी कॉरपोरेशन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स विश्वविद्यालयों और जमींदारों के लिए अलग प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया गया।
नोट : 1909 ईसवी में लॉर्ड मार्ले इंग्लैंड में भारत के राज्य सचिव थे और लॉर्ड मिंटो भारत के वायसराय थे।
भारत में ब्रिटेन के सभी संवैधानिक प्रयोगों में से सबसे कम समय तक चलने वाला अधिनियम उन्नीस सौ नौ का भारत परिषद अधिनियम था।
1919 ईसवी का भारत शासन अधिनियम इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएं निम्न प्रकार से हैं
- केंद्र में द्विसदनात्मक विधायिका की स्थापना की गई प्रथम राज्य परिषद तथा दूसरी केंद्रीय विधान सभा। राज्य परिषद के सदस्यों की संख्या 60 थी जिसमें 34 निर्वाचित होते थे और उनका कार्यकाल 5 वर्षों का होता था केंद्रीय विधान सभा के सदस्यों की संख्या 144 थी जिसमें 104 निर्वाचित तथा 40 मनोनीत होते थे इनका कार्यकाल 3 वर्षों का था दोनों सदनों के अधिकार समान थे इनमें सिर्फ एक अंतर था कि बजट पर स्वीकृति प्रदान करने का अधिकार निचले सदन को था।
- प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली का प्रवर्तन किया गया
- इस योजना के अनुसार प्रांतीय विषयों को दो वर्गों में विभाजित किया गया आरक्षित तथा हस्तांतरित या अंतरित
- आरक्षित विषय भूमि कर वित्त अकाल सहायता न्याय पुलिस पेंशन और अपराधिक जनजातियां छापाखाना समाचार पत्र सिंचाई जल मार्ग खान कारखाना बिजली गैस बॉयलर श्रमिक कल्याण औद्योगिक विवाद मोटर गाड़ियां छोटे बंदरगाह और सार्वजनिक सेवाएं आदि।
- हस्तांतरित विषय शिक्षा पुस्तकालय संग्रहालय स्थानीय स्वायत्त शासन चिकित्सा सहायता सार्वजनिक निर्माण विभाग आबकारी उद्योग तौर तथा मां सार्वजनिक मनोरंजन पर नियंत्रण धार्मिक तथा अग्रहराम आदि।
- भारत सचिव को अधिकार दिया गया कि वह भारत में महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कर सकता है।
- इस अधिनियम ने भारत में एक लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया। अतः 1926 ईस्वी में ली आयोग की सिफारिश पर सिविल सेवकों की भर्ती के लिए केंद्रीय लोक सेवा आयोग का गठन किया गया।
- इस अधिनियम के अनुसार वायसराय की कार्यकारी परिषद में 6 सदस्यों में से 3 सदस्यों का भारतीय होना आवश्यक था।
- इसने सांप्रदायिक आधार पर सिखों भारतीय ईसाइयों आंग्ल भारतीय और यूरोपीय के लिए भी पृथक निर्वाचन के सिद्धांत को विस्तारित कर दिया।
- इसमें पहली बार केंद्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया गया।
- इसके अंतर्गत एक वैधानिक आयोग का गठन किया गया जिसका कार्य 10 वर्ष बाद जांच करने के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था।
- इस अधिनियम में केंद्रीय विधानसभा में वायसराय के अध्यादेश जारी करने की शक्तियों को निम्न रूप में बनाए रखा गया
- कुछ विषयों को संबंधित विधेयकों को विचार अर्थ प्रस्तुत करने के लिए उसकी पूर्व अनुमति आवश्यक थी।
- उसे भारतीय विधानसभा द्वारा पारित किसी भी विधेयक को वीटो करने या सम्राट के विचार के लिए आरक्षित करने की शक्ति थी।
- उसे यह सकती थी कि विधान मंडल द्वारा नामंजूर किए गए या पारित न किए गए किसी विधेयक आया अनुदान को प्रमाणित कर दे तो ऐसे प्रमाणित विधेयक विधान मंडल द्वारा पारित विधेयक के समान हो जाते थे।
- वहां आपात स्थिति में अध्यादेश बना सकता था जिसका अस्थाई अवधि के लिए विधिक प्रभाव होता था।
1935 ईस्वी का भारत शासन अधिनियम यह साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर आधारित था 1935 ईस्वी के अधिनियम में 321 अनुच्छेद और 10 अनुसूचियां थी इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार है
- अखिल भारतीय संघ यह संग 11 ब्रिटिश प्रांतों 6 चीफ कमिश्नर के क्षेत्रों और उन देसी रियासतों को मिलाकर बनना था जो स्वेच्छा से संघ में सम्मिलित हो। प्रांत के लिए संघ में सम्मिलित होना अनिवार्य था किंतु देशी रियासतों के लिए यह एक ऑप्सनल था। देशी रियासतें संघ में सम्मिलित नहीं हुई और प्रस्तावित संघ की स्थापना संबंधी घोषणा पत्र जारी करने का अवसर ही नहीं आया।
- प्रांतीय स्वायत्तता इस अधिनियम के द्वारा प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था का अंत कर उन्हें एक स्वतंत्र और स्वशासन संवैधानिक आधार प्रदान किया गया।
- केंद्र में द्वैध शासन की स्थापना इस अधिनियम में विधाई शक्तियों को केंद्र और प्रांतीय विधान मंडलों के बीच विभाजित किया गया इसके तहत पर संघ सूची प्रांतीय सूची एवं समवर्ती सूची का निर्माण किया गया।
- परिसंघ सूची के विषयों पर परिसंघ विधान मंडल को विधान बनाने की अनन्य सकती थी इस सूची में विदेशी कार्य करेंसी और मुद्रा नौसेना सेना वायु सेना जनगणना जैसे विषय थे।
- प्रांतीय सूची के विषयों पर प्रांतीय विधान मंडलों की अनन्य अधिकारिता थी यानी इस सूची में वर्णित विषयों पर प्रांतीय विधानमंडल को कानून बनाने का अधिकार था प्रांतीय सूची के कुछ विषय थे पुलिस प्रांतीय लोक सेवा और शिक्षा।
- समवर्ती सूची के विषयों पर परिषद एवं प्रांतीय विधानमंडल दोनों विधान बनाने के लिए सक्षम थे समवर्ती सूची के कुछ विषय थे दंड विधि और प्रक्रिया सिविल प्रक्रिया विवाह एवं विवाह विच्छेद आदि।ऊपर उल्लिखित उपबंध के अधीन रहते हुए किसी भी विधानमंडल को दूसरे की शक्तियों का अतिक्रमण करने का अधिकार नहीं था। लेकिन वायसराय द्वारा आपात की उद्घोषणा किए जाने पर परिसंघ विधानमंडल को प्रांतीय सूची के विषय में विधान बनाने की शक्ति थी दो प्रांतीय विधान मंडलों की अनुरोध पर भी परिषद विधानमंडल प्रांतीय विधानमंडल के विषय में विधान बना सकती थी समवर्ती सूची के विषयों पर परिसंघ विधि प्रांत की विधि पर अभय भावी होती थी इस अधिनियम में अवशिष्ट विधाई शक्ति वायसराय को दी गई थी।
- संघीय न्यायालय की व्यवस्था इसका अधिकार क्षेत्र प्रांत तथा रियासतों का विस्तृत था। इस न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा दो अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गई न्यायालय से संबंधित अंतिम शक्ति प्रिवी कौंसिल लंदन को प्राप्त थी।
- ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता इस अधिनियम में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का अधिकार ब्रिटिश संसद के पास था प्रांतीय विधानमंडल और संघीय व्यवस्था पर का इसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकते थे।
- भारत परिषद का अंत इस अधिनियम के द्वारा भारत परिषद का अंत कर दिया गया।
- सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार संघीय तथा प्रांतीय व्यवस्था पर गांव में विभिन्न संप्रदायों को प्रतिनिधित्व देने के लिए सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति को जारी रखा गया और इसका विस्तार दलित जातियों महिलाओं और मजदूर वर्ग तक किया गया।
- इस अधिनियम में प्रस्तावना का अभाव था।
- इसके द्वारा वर्मा को भारत से अलग कर दिया गया। अदन को इंग्लैंड के उपनिदेशक कार्यालय के अधीन कर दिया गया और बरार को मध्य प्रांत में शामिल कर दिया गया।
- इसके अंतर्गत देश की मुद्रा और साख पर नियंत्रण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई।
- इसने मताधिकार का विस्तार किया। लगभग 10 प्रतिशत जनसंख्या को मत अधिकार मिल गया।
1947 का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई 1947 ईस्वी को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम प्रस्तावित किया गया जो 18 जुलाई 1947 ईस्वी को स्वीकृत हो गया इस अधिनियम में 20 धाराएं थी इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं
- 2 अधिराज्यों की स्थापना 15 अगस्त 1947 को भारत एवं पाकिस्तान नामक दो 24:00 बना दिए जाएंगे और उन को ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी। सत्ता का उत्तरदायित्व दोनों राज्यों की भारतीय संविधान सभा को सौंपी जाएगी।
- भारत एवं पाकिस्तान दोनों राज्यों में 11 गवर्नर जनरल होंगे जिनकी नियुक्ति उनके मंत्रिमंडल की सलाह से की जाएगी।
- भारतीय संविधान सभा का विधानमंडल के रूप में कार्य करना जब तक संविधान सभा ने संविधान का निर्माण नहीं कर लेती तब तक वे विधानमंडल के रूप में कार्य करती रहेगी।
- भारत मंत्री के पद समाप्त कर दिए गए।
- 1935 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा शासन जब तक संविधान सभा द्वारा नया भारतीय संविधान बनकर तैयार नहीं किया जाता है तब तक उस समय 1935 के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा ही शासन होगा।
- देसी रियासतों पर ब्रिटेन की सड़कों पर एकता का अंत कर दिया गया उनको भारत या पाकिस्तान किसी भी राज्य में सम्मिलित होने पर अपने भावी संबंधों का निश्चय करने की क्षमता प्रदान की गई।
- इस अधिनियम के अधीन भारत डोमिनियन को सिंध बलूचिस्तान पश्चिमी पंजाब पूर्वी बंगाल पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत और असम के सिलहट जिले को छोड़कर भारत का शेष राज्य क्षेत्र मिल गया।
भारतीय संविधान सभा
कैबिनेट मिशन की संस्तुतियों के आधार पर भारतीय संविधान की निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन जुलाई 1946 ईस्वी में किया गया कैबिनेट मिशन के सदस्य सर स्टे फॉर क्रिप्स लोड पैथिक लोरेंस तथा एबी अलेक्जेंडर थे।
भारत के लिए संविधान सभा की रचना हेतु संविधान सभा का विचार सर्वप्रथम स्वराज्य पार्टी ने 1924 में प्रस्तुत की।
संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 389 निश्चित की गई जिसमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के प्रतिनिधि 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि एवं 93 देसी रियासतों के प्रतिनिधि थे। मिशन योजना के अनुसार जुलाई 1946 ईस्वी में भारतीय संविधान सभा का चुनाव हुआ कुल 389 सदस्यों में से प्रांतों के लिए निर्धारित 296 सदस्यों के लिए चुनाव हुए जिन्हें विभिन्न प्रांतों की विधानसभा द्वारा चुना गया इसमें कांग्रेस को 208 मुस्लिम लीग को 73 स्थानों एवं 15 अन्य दलों के अन्य स्वतंत्र उम्मीदवार निर्वाचित हुए।
9 दिसंबर 1946 ईस्वी को संविधान सभा की प्रथम बैठक नई दिल्ली स्थित काउंसिल चेंबर के पुस्तकालय भवन में हुई सभा के सबसे बुजुर्ग सदस्य डॉ सच्चिदानंद सिन्हा को सभा का अस्थाई अध्यक्ष चुना गया मुस्लिम लीग ने इस बैठक का बहिष्कार किया और पाकिस्तान के लिए बिल्कुल अलग संविधान सभा की मांग प्रारंभ कर दी।
हैदराबाद एक ऐसी देसी रियासत थी जिसके प्रतिनिधि संविधान सभा में सम्मिलित नहीं हुए थे।
प्रांतों या देसी रियासतों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में संविधान सभा में प्रतिनिधित्व दिया गया था। साधारण 10 लाख की आबादी पर एक स्थान का आवंटन किया गया था। प्रांतों का प्रतिनिधित्व मुख्यतः तीन प्रमुख समुदायों की जनसंख्या के आधार पर विभाजित किया गया था यह समुदाय थे मुस्लिम सिख एवं साधारण।
1 | संचालन समिति | डॉ राजेंद्र प्रसाद |
2 | संघीय संविधान समिति | पंडित जवाहर लाल नेहरू |
3 | प्रांतीय संविधान समिति | सरदार बल्लभ भाई पटेल |
4 | प्रारूप समिति | डॉ भीम राव अम्बेडकर |
5 | संघ शक्ति समिति | पंडित जवाहर लाल नेहरू |
6 | मौलिक अधिकारों एवं अल्प संख्यकों सम्बन्धी परामर्श समिति | सरदार बल्लभ भाई पटेल |
7 | राष्ट्रध्वज सबंधी तदर्थ समिति | डॉ राजेंद्र प्रसाद |
संविधान सभा में ब्रिटिश प्रांतों की 296 प्रतिनिधियों का विभाजन संप्रदाय के आधार पर किया गया। जिसमें 213 सामान्य 79 मुसलमान तथा चार सिख। संविधान सभा के सदस्यों में अनुसूचित जनजाति के सदस्यों की संख्या 33 थी। भारतीय संविधान सभा में महिला सदस्यों की संख्या 15 थी। 11 दिसंबर 1946 को डॉ राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के स्थाई अध्यक्ष निर्वाचित हुए। संविधान सभा की कार्यवाही 13 दिसंबर 1946 ईस्वी को जवाहरलाल नेहरू द्वारा पेश किए गए उद्देश्य प्रस्ताव के साथ प्रारंभ हुई। 22 जनवरी 1947 ईस्वी को उद्देश्य प्रस्ताव की स्वीकृति के बाद संविधान सभा ने संविधान निर्माण हेतु अनेक समितियां नियुक्त कि इनमें प्रमुख वार्ता समिति संघ संविधान समिति प्रांतीय संविधान समिति संघ शक्ति समिति प्रारूप समिति।
बी एन राव द्वारा तैयार किए गए भारतीय संविधान के प्रारूप पर विचार विमर्श करने के लिए संविधान सभा द्वारा 29 अगस्त 1947 ईस्वी को एक संकल्प पारित कर के प्रारूप समिति का गठन किया गया तथा इसके अध्यक्ष के रूप में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को चुना गया। प्रारूप समिति के सदस्यों की संख्या 7 थी जो इस प्रकार है
- डॉक्टर भीमराव अंबेडकर (अध्यक्ष )
- एन गोपालस्वामी आयंगर
- अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर
- कन्हैयालाल मणिकलाल मुंशी
- सैयद मोहम्मद सादुल्लाह
- एन माधवराव
- डीपी खेतान
भारतीय संविधान सभा में अंबेडकर का पहली बार निर्वाचन बंगाल से तथा देश बंटवारे के बाद उनका निर्वाचन मुंबई से हुआ था।
3 जून 1947 ईस्वी की योजना के अनुसार देश का बंटवारा हो जाने पर भारतीय संविधान सभा की कुल सदस्य संख्या 324 नियत की गई जिसमें 235 स्थान प्रांतों के लिए और 89 स्थान देशी राज्यों के लिए थे।
केबिनेट मिशन (1945 ई.) के प्रस्ताव पर गठित अंतरिम मंत्रिमंडल ( २ सितम्बर, 1946 ई. )
क्र. | मंत्री | विभाग |
1 | जवाहर लाल नेहरू | कार्यकारी परिषद् के उपाध्यक्ष, विदेशी मामले तथा राष्ट्र मंडल |
2 | बल्लभ भाई पटेल | गृह सूचना तथा प्रसारण |
3 | बलदेव सिंह | रक्षा |
4 | जॉन मथाई | उद्योग तथा आपूर्ति |
5 | सी. राजगोपालाचारी | शिक्षा |
6 | सी. एच. भाभा | कार्य, खान एवं बंदरगाह |
7 | राजेन्द्र प्रसाद | खाद्य एवं कृषि |
8 | आसफ अली | रेलवे |
9 | जगजीवन राम | श्रम |
10 | लियाकत अली खां | वित्त |
11 | आई आई चुंदरीगर | वाणिज्य |
12 | अब्दुल रब नश्तर | संचार |
13 | जोगेंद्र नाथ मंडल | विधि |
14 | गजान्तर अली खां | स्वास्थ्य |
देश विभाजन के बाद भारतीय संविधान सभा का पुनर्गठन 31 अक्टूबर 1947 ईस्वी को किया गया और 31 दिसंबर 1947 ईस्वी को भारतीय संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 299 थी जिसमें प्रांतीय सदस्यों की संख्या 229 एवं देसी रियासतों की सदस्यों की संख्या 70 थी। प्रारूप समिति के संविधान के प्रारूप पर विचार-विमर्श करने के बाद 21 फरवरी 1948 ईस्वी को भारतीय संविधान सभा को अपनी रिपोर्ट पेश की। संविधान सभा में संविधान का प्रथम वाचन 4 नवंबर से 9 नवंबर 1948 ईस्वी तक चला संविधान पर दूसरा वाचन 15 नवंबर 1948 को प्रारंभ हुआ जो 17 अक्टूबर 1949 ईस्वी तक चला संविधान सभा में संविधान का तीसरा वाचन 14 नवंबर 1979 को प्रारंभ हुआ जो 26 नवंबर 1949 तक चला और संविधान सभा द्वारा संविधान को पारित कर दिया गया इस समय संविधान सभा के 284 सदस्य उपस्थित थे।
भारत का पहला मंत्रिमंडल
क्र | मंत्री | विभाग |
1 | जवाहर लाल नेहरू | प्रधानमंत्री, राष्टमंडल तथा विदेशी मामले, वैज्ञानिक शोध |
2 | सरदार बल्लभ भाई पटेल | गृह, सूचना व् प्रसारण, राज्यों के मामले |
3 | डॉ. राजेन्द्र प्रसाद | खाद्य एवं कृषि |
4 | मौ. अबुल कलाम आजाद | शिक्षा |
5 | डॉ. जॉन मथाई | रेलवे एवं परिवहन |
6 | डॉ बी आर अंबेडकर | विधि |
7 | जगजीवन राम | श्रम |
8 | सरदार बलदेव सिंह | रक्षा |
9 | राजकुमारी अमृतकौर | स्वस्थ्य |
10 | सी एच् भाभा | वाणिज्य |
11 | रफ़ी अहमद किदवई | संचार |
12 | आर. के. षणमुगम शेट्टी | वित्त |
13 | 13 डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी | उद्योग एवं आपूर्ति |
14 | वी एन गाडगिल | कार्य खान एवं ऊर्जा |
संविधान निर्माण की प्रक्रिया में कुल 2 वर्ष 11 महीना और 18 दिन लगे संविधान के प्रारूप पर कुल 114 दिन बहस होगी संविधान निर्माण कार्य में कुल मिलाकर 63,96,729 व्यय हुए।
भारतीय संविधान को जब 26 नवंबर 1949 ईस्वी को भारतीय संविधान सभा द्वारा पारित किया गया तब इसमें कुल 22 भाग 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थी वर्तमान समय में संविधान में 22 भाग 395 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियां हैं। संविधान के कुल अनुच्छेदों में से 15 अर्थात 5 6 7 8 9 7 324 366 367 379 380 388 391 392 तथा 393 अनुच्छेदों को 26 नवंबर 1949 ईस्वी को ही परिवर्तित कर दिया गया जबकि शेष अनुच्छेदों को 26 जनवरी 1950 ईस्वी को लागू किया गया।
संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 जनवरी 1950 ईस्वी को हुई और उसी दिन भारतीय संविधान सभा के द्वारा डॉ राजेंद्र प्रसाद को भारत के प्रथम राष्ट्रपति चुना गया संविधान सभा 26 जनवरी 1950 से 1951 52 में हुए आम चुनावों के बाद बनने वाली नई संसद के निर्माण तक भारत की अंतरिम संसद के रूप में काम किया।
संविधान सभा द्वारा किए गए कुछ अन्य कार्य
- इस ने मई 1949 में राष्ट्रमंडल में भारत की सदस्यता का सत्यापन किया।
- इस सवाने 22 जुलाई 1947 ईस्वी को राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया।
- इस सवाल ने 24 जनवरी 1950 ईस्वी को राष्ट्रगान को अपनाया।
26 जुलाई 1947 ईस्वी को गवर्नर जनरल ने पाकिस्तान के लिए प्रथक संविधान सभा की स्थापना की घोषणा की।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना
नेहरू द्वारा प्रस्तुत उद्देश्य संकल्प में जो आदर्श प्रस्तुत किया गया उन्हें भारतीय संविधान की उद्देशिका में शामिल कर लिया गया संविधान के 42 वें संशोधन 1976 ईस्वी द्वारा यथा संशोधित यह उद्देश्यका निम्न प्रकार है–
“हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथ निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय विचार अभिव्यक्ति विश्वास धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 ईस्वी को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और आत्मर्पित करते हैं। “
भारतीय संविधान की प्रस्तावना की मुख्य बातें।
भारतीय संविधान के प्रस्तावना की मुख्य बातें निम्न प्रकार से दर्शाइ गई है–
- संविधान की प्रस्तावना को भारतीय संविधान की कुंजी कहा जाता है।
- प्रस्तावना संविधान का आरंभिक अंग होते हुए भी कानूनी तौर पर उसका भाग नहीं माना जाता है।
- प्रस्तावना के अनुसार संविधान के अधीन समस्त शक्तियों का केंद्र बिंदु अथवा स्रोत भारत के लोग ही हैं।
- प्रस्तावना में लिखित शब्द यथा हम भारत के लोग इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और हाथ मारपीट करते हैं। भारतीय लोगों की सर्वोच्च संप्रभुता का उद्घोष करते हैं।
- प्रस्तावना को न्यायालय में परिवर्तित नहीं किया जा सकता यह निर्णय यूनियन ऑफ इंडिया बनाम मदन गोपाल 1957 के निर्णय में घोषित किया गया। यानी यदि सरकार या कोई नागरिक प्रस्तावना की अवहेलना करता है तो उसकी रक्षा के लिए हम अदालत की सहायता नहीं ले सकते हैं।
- बीरूबारी यूनियन बाद 1960 ईस्वी में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय दिया कि जहां संविधान की भाषा संदिग्ध हो वहां प्रस्तावना वैदिक निर्वाचन में सहायता करती है।
- बीरूवा डी बाद में ही सर्वोच्च न्यायालय ने प्रस्तावना को भारतीय संविधान का अंग नहीं माना इसलिए विधायक का प्रस्तावना में संशोधन नहीं कर सकती परंतु सर्वोच्च न्यायालय के केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य बाद 1973 ईस्वी में कहा कि प्रस्तावना संविधान का अंग है इसलिए विधायक का उसमें संशोधन कर सकती है।
- केशवानंद भारती वाद में ही सर्वोच्च न्यायालय ने मूल ढांचा का सिद्धांत दिया तथा प्रस्तावना को संविधान का मूल ढांचा माना।
- संसद संविधान की मूल ढांचा में नकारात्मक संशोधन नहीं कर सकती है स्पष्टता संसद वैसा संशोधन कर सकती है जिससे मूल ढांचा का विस्तार व मजबूती करण होता है।
- 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 ईस्वी के द्वारा इसमें समाजवादी पंथ निरपेक्ष और राष्ट्र की अखंडता शब्द जोड़े गए।
- भारत के संविधान की प्रस्तावना में तीन प्रकार का न्याय सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक पांच प्रकार की स्वतंत्रता विचार अभिव्यक्ति विश्वास धर्म एवं उपासना एवं दो प्रकार की समानता प्रतिष्ठा एवं अवसर का उल्लेख किया गया है।
- भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित एवं सर्वाधिक व्यापक संविधान है यह अंशिता कठोर एवं अंततः लचीला है।
- लिखित संविधान की अवधारणा फ्रांस की देन है।
- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में संविधान सर्वोच्च है।
- भारत का संविधान अपना प्राधिकार भारत की जनता से प्राप्त करता है।
- भारत सरकार अधिनियम 1935 वह संवैधानिक दस्तावेज है जिसका भारतीय संविधान तैयार करने में गहरा प्रभाव पड़ा।
- भारत के संविधान में संघीय शासन शब्द का प्रयोग कहीं भी नहीं हुआ है भारतीय संविधान में भारत को राज्यों का संघ घोषित किया गया है।
- भारतीय संविधान हिंदी pdf

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भारतीय संविधान के लेखक
भारतीय संविधान के लेखक
यह एक बहुत ही सामान्य प्रकार का प्रश्न है जिसके बारे में जानना भारत के सभी लोगों को जानने की आवश्यकता होगी ही इसीलिए आज हम आपको यह बताने वाले है कि भारतीय संविधान के लेखक कौन है कौन है वह महान व्यक्तित्व जिन्होंने भारत जैसे गौरवशाली राष्ट्र को संविधान का उपहार दिया। ऐसे महापुरुष को बारम्बार नमन करता है।
भारतीय संविधान के लेखक का नाम डॉ. भीमराव अम्बेडकर है। इन्होने ही भारत राष्ट्र के लिए दुनिया के सबसे बड़े लिखित संविधान की रचना की। इन्ही महापुरुषों की वजह से आज हमारा देश महान कहलाता है। इसीलिए इतने दुःख दर्द भी सहन करने के बाद भी आज तक कोई भी भारत की गौरव शैली इतिहास को कोई कलंकित नही कर पाया है।
भारतीय संविधान की विशेषता
भारत के संविधान के निर्माण में निम्न देशों के संविधान से सहायता ली गई है जो निम्न प्रकार से वर्णित है–
संयुक्त राज्य अमेरिका प्रस्तावना मौलिक अधिकार न्यायिक पुनरावलोकन संविधान की सर्वोच्चता न्यायपालिका की स्वतंत्रता निर्वाचित राष्ट्रपति एवं उस पर महाभियोग उपराष्ट्रपति उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की विधि एवं वित्तीय आपात।
ब्रिटेन संसदात्मक शासन प्रणाली एकल नागरिकता एवं विधि निर्माण प्रक्रिया विधि का शासन संसदीय विशेषाधिकार मंत्रिमंडल प्रणाली परम आधिकार लेख एवं दो सदन वाद।
आयरलैंड नीति निर्देशक सिद्धांत राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल की व्यवस्था राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा में साहित्य कला विज्ञान व समाज सेवा इत्यादि के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त व्यक्तियों का मनोनयन।
ऑस्ट्रेलिया प्रस्तावना की भाषा समवर्ती सूची का प्रावधान केंद्र एवं राज्य के बीच संबंध तथा शक्तियों का विभाजन संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक व्यापार वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता।
जर्मनी आपातकाल के प्रवर्तन के दौरान राष्ट्रपति को मौलिक अधिकार संबंधी शक्तियां।
कनाडा संघात्मक विशेषताएं अवशिष्ट केंद्र के पास राज्यपाल की नियुक्ति विषयक प्रक्रिया एवं राज्य के बीच शक्ति विभाजन एवं सर्वोच्च न्यायालय का परामर्शी न्याय निर्णयन।
दक्षिण अफ्रीका संविधान संशोधन की प्रक्रिया का प्रावधान राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन।
रूस मौलिक कर्तव्यों का प्रावधान।
जापान विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया।
फ्रांस गणतंत्र आत्मक और प्रस्तावना में स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व के आदर्श।
भारतीय संविधान के अनेक देशी और विदेशी स्रोत हैं लेकिन भारतीय संविधान पर सबसे अधिक प्रभाव भारतीय शासन अधिनियम 1935 का है। भारतीय संविधान के 395 अनुच्छेदों में से लगभग 250 अनुच्छेद ऐसे हैं जो 1935 ईस्वी के अधिनियम से या तो शब्द से लिए गए हैं या फिर उनमें बहुत थोड़ा परिवर्तन के साथ लिया गया है।
भारतीय संविधान कब लागू हुआ
यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न बनकर हमारे सामने प्रश्तुत होता है कियोंकि यह जितना जरुरी प्रश्न है उतना की काम लोग इसके बारे में जानते है उन्हें पता ही नहीं है कि भारतीय संविधान कब लागू हुआ ? और यदि किसी से पूछा भी जाता है तो कोई तो बताता भी नहीं है और कोई यदि बताता भी है तो गलत बताता है इसीलिए आज इसके बारे में जानना अति आवश्यक है।
26 जनवरी 1950 ई. को भारत का संविधान लागु किया गया। जिसे आज हम गणतंत्र दिवस ( 26 जनवरी ) के रूप में मानते है। और यह हम आजादी के बाद से ही मानते भी आ रहे है लेकिन लोगो को पता ही नहीं चला पा रहा है आज तक हम गणतंत्र दिवस ( 26 जनवरी ) किसलिए बना रहे थे। हमे इन सब चीजों का ध्यान रखने की अति आवश्यकता है। यदि हमें भारत देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनना है तो यह सब करने की अति आवश्यकता है।
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