भारत का महान्यायवादी।
महान्यायवादी सर्वप्रथम भारत सरकार का विधि अधिकारी होता है। भारत का महान्यायवादी न तो संसद का सदस्य होता है और न ही मंत्रिमंडल का सदस्य होता है। लेकिन वह किसी भी सदन में अथवा उनकी सामितियों में बोल सकता है किन्तु उसे मत देने का अधिकार नहीं हैं। महान्यायवादी की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है तथा वह उसके प्रसाद पर्यन्त पद धारण करता है।

भारत का महान्यायवादी बनने के लिए वही अर्हताएं होनी चाहिए जो उच्तम न्यायलय के न्यायधीश बनने के लिए चाहिए होती है। महान्यायवादी को
भारत का महान्यायवादी।

राज्य का महाधिवक्ता
अनुच्छेद-165 में राज्य के महाधिवक्ता की व्यवस्था की गई है। वह राज्य का सर्वोच्च कानून अधिकारी होता है। महाधिवक्ता की नियुक्ति राजयपाल के द्वारा होती है। राजयपाल वैसे व्यक्ति को महाधिवक्ता नियुक्त करता है जिसमे उच्च न्यायलय के न्यायधीश बनने की योग्यता हो। वह अपने पद पर राजयपाल के प्रसादपर्यन्त बना रहता है।
महाधिवक्ता के कार्य : 1 राज्य सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयो पर सलाह दे जो राष्ट्रपति द्वारा सोंपे गये हो
2 विधिक स्वरूप से ऐसेअन्यकर्तव्यों का पालन करे जो राज्यपाल द्वारा सोंपे गये हो |
अपने कार्य संबंधी कर्तव्यो के तहत उसे राज्य के किसी भी न्यायलय में सुनवाई का अधिकार है, इसके अतिरिक्त उसे विधानमंडल के दोनों सदनों या संबंधित समिति अथवा उस सभा में जन्हा के लिए वह अधिकृत है में बिना मताधिकार बोलने व् भाग लेने का अधिकार है |
महाधिवक्ता को वे सभी विशेषाधिकार एवम भत्ते मिलते है जो विधान मंडल के किसी भी सदस्य को मिलते है | भारत का महान्यायवादी।
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