राज्य की कार्यपालिका | भारतीय संविधान | राजनीती विज्ञान |
राज्यपाल
>* संविधान के भाग-6 में राज्य शासन के लिए प्रावधान किया गया है व यह प्रावधान जम्मू-कश्मीर को छोड़कर सभी राज्यों के लिए
छागू होता है। राज्य की कार्यपाछिका का प्रमुख राज्यपाल होता है, वह प्रत्यक्ष रूप से अथवा अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से इसका उपयोग करता है। अर्थात् राज्यों में राज्यपाल की स्थिति कार्यपालिका के प्रधान की होती है परंतु वास्तविक शक्ति मुख्यमंत्री के नेतृत्व में
मंत्रिपरिषद् में निहित होती है।
>- मूल संविधान में अनु.-53 में यह उल्लिखित था कि प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा। किन्तु, सातवें संविधान संशोधन
(956) द्वारा इसमें एक परंतुक जोड़ दिया गया जिसके अनुसार एक ही व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों के लिए भी राज्यपाल
नियुक्ति किया जा सकता है।
>- राज्यपारू की योग्यता : राज्यपाल पद पर नियुक्त किये जाने वाले व्यक्ति में निम्न योग्यताएँ होना अनिवार्य है—. वह भारत का
नागरिक हो | 2. वह 35 वर्ष की उम्र पूरा कर चुका हो। 3. किसी प्रकार के छाभ के पद पर नहीं हो। 4. वह राज्य विधानसभा का
सदस्य चुने जाने योग्य हो।
>- राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा पाँच वर्षों की अवधि के लिए की जाती है; परन्तु यह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करता
है या वह पदत्याग कर सकता है
नोर : भारत के स्विधान में राज्यपाल को उसके पव से हडाने हे.
>- राज्यपाल का वेतन ₹ 3,50,000 मासिक है । यदि दो या दो से अधिक राज्यों का एक ही राज्यपाछ हो, तब उसे दोनों राज्यपालों का वेतन उस अनुपात में दिया जायेगा, जैसा कि राष्ट्रपति निर्धारित करें।
>- राज्यपाल पद ग्रहण करने से पूर्व उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अथवा वरिष्ठतम न्यायाधीश के सम्मुख अपने पद की शपथ छेता है!
राज्यपाल की उन्मक्तियाँ तथा विशेषाधिकार
बह अपने पद की शक्तियों के प्रयोग तथा कर्तव्यों के पालन के लिए किसी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं है। राज्यपाल की पदावधि के दौरान उसके विरुद्ध किसी भी न्यायालय में किसी प्रकार की आपराधिक कार्रवाई नहीं प्रारंभ की जा सकती है ।
4. जब वह पद पर हो तब उसकी गिरफ्तारी का आदेश किसी न्यायालूय द्वारा जारी नहीं किया जा सकता। राज्यपाल का पद ग्रहण करने से पूर्व या पश्चात् उसके द्वारा किये गये कार्य के संबंध में कोई सिविल कार्रवाई करने से पहले उसे दो मास पूर्व सूचना देनी पड़ती है।
राज्यपाल की शक्तियाँ तथा कार्य
4. कार्यपालिका संबंधी कार्य
(७) राज्य के समस्त कार्यपालिका कार्य राज्यपाल के नाम से किये जाते हैं।
(७) राज्यपाल मुख्यमंत्री को तथा मुख्यमंत्री की सछाह से उसकी मंत्रिपरिषद् के सदस्यों को नियुक्त करता है तथा उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाता है।
(0) राज्यपाल राज्य के उच्च अधिकारियों, जैसे मुख्य सचिव, महाधिवक्ता, राज्य लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति करता है। राज्यपाल, राज्यलॉक सेत्ा के संदस्यों को वहीं हटा सकता।
आयोग के सदस्य राष्ट्रपति द्वारा निर्देशित किए जाने पर च्यावालय के श्रतिवेदन पर और कुछ निरहर्ताओं के होने पर ही हि द्वारा हटाए जा सकते हैं।
राज्य के उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में राष्ट्रपति को परामर्श देता है। राज्यपाल का अधिकार है कि वह राज्य के प्रशासन के संबंध में मुख्यमंत्री से सूचना प्राप्त करे। राष्ट्रपति शासन के समय राज्यपाल केन्द्र सरकार के अभिकर्तता के रूप में राज्य का प्रशासन चलाता है। राज्यपाल राज्य के विश्वविद्यालयों का कुछाधिपति होता है तथा उपकुरूपतियों को भी नियुक्त करता है।
५) वह राज्य विधान परिषद् की कुल सदस्य संख्या का /6 भाग सदस्यों को नियुक्त करता है, जिनका संबंध विज्ञान, साहित्य, कला, समाज-सेवा, सहकारी आन्दोलन आदि से रहता है।
(9)]। यह ध्यान देने योग्य है कि राज्य सभा से संबंधित तत्समान सूची में “सहकारी आंदोलन”” सम्मलित नहीं है।
* विधायी अधिकार
8 ग़ज्यप्राह विधान मंडल का अभिन्न अंग है (अनुच्छेद-764)।
9 शज्ध्प्राढ विधान मंडल का सत्राह्नान करता है, उसका सत्रावसान
._कता है तथा उसका विघटन करता है, राज्यपाछ विधानसभा के
अधिवेशन अथवा दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित हि कर्ता है। कक पा के। के किसी सदस्य पर अयोग्यता का प्रश्न उत्पन्न
+ आबोग हे ता संबंधी विवाद का निर्धारण राज्यपाल चुनाव
0 तक बम न करके करता है।
9 छेबा, ड़ द्वारा पारित विधेयक राज्यपाल के हस्ताक्षर
$” पादि विधानसभा ही अधिनियम बन पाता है।
5 ही परत है. में ऑग्छ-भारतीय समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व
हा पैधानसभा है, तो राज्यपाक उस समुदाय के एक व्यक्ति को
कक सदस्य मनोनीत कर सकता है (अजुच्छेद-3552।
(7) जब विधान मंडल का सत्र नहीं चल रहा हो और राज्यपाल को ऐसा लगे कि तत्काल कार्यवाही की आवश्यकता है, तो वह अध्यादेश
जारी कर सकता है, जिसे वही स्थान प्राप्त है, जो विधान मंडल डारा पारित किसी अधिनियम का है। ऐसे अध्यादेश 6 सप्ताह के भीतर विधान मंडल द्वारा स्वीकृत होना आवश्यक है। यदि विधान मंडल 6 सप्ताह के भीतर उसे अपनी स्वीकृति नहीं देता है, तो उस अध्यादेश की वैधता समाप्त हो जाती [अनुच्छेद-23] है ।
8) राज्यपारू धन विधेयक के अतिरिक्त किसी विधेयक को पुन: विचार के छिए राज्य विधान मंडल के पास भेज सकता है; परन्तु
राज्य विधान मंडल द्वारा इसे दुबारा पारित किये जाने पर वह उसपर अपनी सहमति देने के लिए बाध्य होता है। राष्ट्रपति के
लिए आरक्षित विधेयक जब राष्ट्रपति के निदेश पर राज्यपाल पुनर्विचार के लिए विधान मंडल को लौटा दे।
ऐसे लौटाए जाने पर विधान मंडल छः: मास के भीतर उस विधेयक पर पुनर्विचार करेगा और यदि उसे पुनः पारित किया जाता है तो विधेयक राष्ट्रपति को पुनः प्रस्तुत किया जायेगा किन्तु इस पर भी राष्ट्रपति के लिए अनुमति देना अनिवार्य नहीं है।
४) राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख सकता है। यह आरक्षित विधेयक तभी प्रभावी होगा जब
राष्ट्रपति उसे अनुमति प्रदान कर दे। राज्यपाल को राष्ट्रपति के लिए विधेयक आरक्षित करना उस समय अनिवार्य है जब विधेयक
उच्च न्यायालय की शक्तियों का अल्पीकरण करता है जिससे यदि विधेयक विधि बन जायेगा लो उच्च न्यायालय की सांविधानिक
स्थिति को खतरा होगा।
वित्तीय अधिकार
न हो पक ऑॉिकी वित्तीय वर्ष में वित्तमंत्री की विधान मंडल के सम्मुख वार्षिक वित्तीय विवरण प्रस्तुत करने के लिए कहता है।
(७) विधानसभा में धन विधेयक राज्यपाल की पूर्व अनुमति से ही पेश किया जाता है।
(०) राज्यपाल की संस्तुति के बिना अनुदान की किसी माँग को विधान मंडल के सम्मुख नहीं रखा जा सकता |
(3) ऐसा कोई विधेयक जो राज्य की संचित निधि से खर्च निकालने की व्यवस्था करता हो, उस समय तक विधान मंडल द्वारा पारित नहीं किया जा सकता जब तक राज्यपाल इसकी संस्तुति न कर दे | राज्य की पंचायतों द्वारा विनियोजित हो सकने वाले करों और क् के निर्धारण के सिद्धान्तों के विषय में करता है ।
न्यायिक अधिकार
राज्यपाल किसी दंड को क्षमा, उसका प्रबिलंबन, विराम या परिहार कर सकेगा या किसी दंडादेश का निलंबन, परिहार या लघुकरण
कर सकेगा । यह ऐसे व्यक्ति के संबंध में होगा जिसे ऐसी विधि के अधीन अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया गया है जिसके संबंध
में राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है (अनुच्छेद-767)।
नोट को सभी अ्रकार के मृत्यु-दंडादेश के मामले में क्षमादान शक्ति आ्रप्त नहीं है । इसी अ्रकार राष्ट्रपति को सेना न्यायालय है जबकि राज्यपाल को ऐसी शक्ति नहीं श्राप्त है।
आपात शक्ति
जब राज्यपाल को यह समाधान हो जाता है कि ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गई हैं जिनमें राज्य का शासन संविधान के उपबंधों
अनुसार नहीं चलाया जा सकता तो वह राष्ट्रपति को प्रतिवेदन के भेजकर /अजुच्छेद-356/ यह कह सकता है कि राष्ट्रपति हा
शासन के सभी या कोई कृत्य स्वयं ग्रहण कर ले (इसे राज्य के राष्ट्रपति शासन कहा जाता है।)।
राज्यपाल की स्थिति
यदि हम राज्यपाल के उपर्युक्त अधिकारों पर दृष्टिपात करें तो ऐसा लगता है कि राज्यपाल एक बहुत शक्तिशाली अधिकारी है ।
किन्तु वास्तविकता इससे सर्वथा भिन्न है। हमने संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया है, जिसमें मंत्रिपरिषद् विधान मंडल के प्रति
उत्तरदायी होती है, अतः वास्तविक शक्तियाँ मंत्रिपरिषद् को प्राप्त होती हैं, न कि राज्यपाल को । राज्यपाल एक संवैधानिक प्रमुख
के रूप में कार्य करता है किन्तु असाधारण स्थितियों में उसे इच्छानुसार कार्य करने के अवसर प्राप्त हो सकते हैं।
विधान परिषद्
– किसी राज्य में विधान परिषद की स्थापना और समाप्ति का प्रावधान अनुच्छेद-69 में दिया गया है ।
>- विधान परिषद् राज्य विधान मंडल का उच्च सदन होता है |
>- यदि किसी राज्य की विधानसभा अपने कुल सदस्यों के पूर्ण बहुमत तथा उपस्थित मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से
प्रस्ताव पारित करे तो संसद उस राज्य में विधान परिषद् स्थापित कर सकती है अथवा उसका लोप कर सकती है ।
>- वर्तमान में केवल छः राज्यों /उत्तर प्रदेश (700), कर्नाटक (75), महाराष्ट्र (78), बिहार (75), आन्ध्र प्रदेश (50) तथा तेलंगाना (४0)) में विधान परिषदें विद्यमान हैं |
>- विधान परिषद् के कुछ सदस्यों की संख्या, उस राज्य की विधानसभा के कुछ सदस्यों की संख्या की एक-तिहाई से अधिक नहीं हो सकती है, किन्तु किसी भी अवस्था में विधान परिषद् के सदस्यों की कुछ संख्या 40 से कम नहीं हो सकती है।
>- विधान परिषद् का सदस्य बनने के छिए न्यूनतम आयु-सीमा 30 वर्ष है । विधान परिषद् के प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष होता
है, किन्तु प्रति दूसरे वर्ष एक-लिहाई सदस्य अवकाश ग्रहण करते हैं व उनके स्थान पर नवीन सदस्य निर्वाचित होते हैं। यदि कोई
व्यक्ति किसी सदस्य की मृत्यु या त्यागपन्न द्वारा हुई आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित होता है तो वह सदस्य शेष
अवधि के लिए ही सदस्य रहता है, छह वर्ष के लिए नहीं।
विधान परिषद् का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु-सीमा 30 वर्ष है। विधान परिषद् के प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष होता
है, किन्तु प्रति दूसरे वर्ष एक-तिहाई सदस्य 2४ ग्रहण करते हैं व उनके स्थान पर नवीन सदस्य निर्वाचित होते हैं।
यदि कोई व्यक्ति किसी सदस्य की मृत्यु या त्यागपत्र द्वारा हुई आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित होता है तो वह सदस्य शेष
अवधि के लिए ही सदस्य रहता है, छह वर्ष के लिए नहीं | विधान परिषद् के सदस्यों का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय मत पद्धति द्वारा होता है।
विधान परिषद् के कुल सदस्यों के एक-तिहाई सदस्य, राज्य की स्थानीय स्वशासी संस्थाओं के एक निर्वाचक मंडल द्वारा निवचित होते हैं, एक-तिहाई सदस्य राज्य की विधानसभा के सदस्यों द्वारा निर्वाचित होते हैं; सदर सदस्य उन स्नातकों द्वारा निर्वाचित होते हैं, जिन्होंने कम-से-कम 3 वर्ष पूर्व स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली हो; पद सदस्य उन अध्यापकों के द्वारा निर्वाचित होते हैं,
जो कम-से-कम 3 वर्षों से माध्यमिक पाठशालाओं अथवा उनसे ऊँची कक्षाओं में शिक्षण-कार्य कर रहे हों; तथा ग सदस्यों का राज्यपाल उन व्यक्तियों में से मनोनीत करता है, जिन्हें साहित्य, कला, विज्ञान, सहकारिता आन्दोलन या सामाजिक सेवा के संबंध में विषय ज्ञान हो |
>- विधान परिषद् की किसी भी बैठक के छिए कम-से-कम 0 या विधान परिषद् के कुछ सदस्यों का दसमांश । 0 ] इनमें जो भी अधिक हो, गणपूर्ति होगा |
>- विधान परिषद् अपने सदस्यों में से दो को क्रमशः सभापति एवं उपसभाषति चुनती है।
>> सभापति भापति को संबोधित ०4% अर भार पर पल हि प्रस्ताव द्वारा उसे अपदस्थ भी किया जा सकता है। कन्त ऐसे सी प्रस्ताव को छाने के लिए 4 दिनों की पूर्व सूचना आवश्यक है।
>- विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष है, किन्तु विशेष परिस्थिति राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह इससे पूर्व भी उसको विघटित कर सकता है।
>- विधानसभा के सत्रावसान ((7707084//००) के आदेश राज्यपाल के द्वारा दिये जाते हैं।
>- विधानसभा में निर्वाचित होने के लिए न्यूनतम आयु सीमा 25 वर्ष है|
>- प्रत्येक राज्य की विधानसभा में कम-से-कम 60 और अधिक से अधिक 500 सदस्य होते हैं। अपवाद-…गोवा (४0), मिजोरम (४0)
सिक्किम (32)। (इसे अनुच्छेद 327 के तहत विशेष राज्य की दर्जा देकर यह व्यवस्था किया गया है ॥)
>+ विधान सभाओं में जनसंख्या के आधार पर अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण किया जाता है (अनु.-332)।
>- विधानसभा की अध्यक्षता करने के लिए एक अध्यक्ष का चुनाव करने का अधिकार सदन को प्राप्त है, जो इसकी बैठकों का संचालन करता है।
>- साधारणतया विधानसभा अध्यक्ष सदन में मतदान नहीं करता किन्तु यदि सदन में मत बराबरी में बँट जाएँ तो वह निर्णायक मत देता है।
>- जब कभी अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन हो, उस समय वह सदन की बैठकों की अध्यक्षता नहीं करता है।
>- किसी विधेयक को धन विधेयक माना जाए अथवा नहीं, इसका निर्णय विधानसभा अध्यक्ष ही करता है।
– सदन के बैठकों के छिए सदन के कुछ सदस्यों के दसमांश । ठ ] सदस्यों की उपस्थितियाँ गणपूर्लि हेतु आवश्यक है।
विधानसभा के अधिकार और कार्य
. विधि-निर्माण : ।. इसे राज्य सूँची से संबंधित विषयों पर विधि निर्माण का अनन्य अधिकार प्राप्त है। 2. समवर्ती सूची से संबद्ध । विषयों पर संसद की तरह राज्य विधान मंडल भी विधि-निर्माण कर सकता है, किन्तु यदि दोनों द्वारा निर्मित विधियों में परस्पर विरोध की सीमा तक संसदीय विधि वरणीय है।
2. वित्तीय विषयों से संबंधित प्रक्रिया : . राज्य विधान मंडल राज्य ॥ सरकार की वित्तीय अवस्था को पूर्णतया नियंत्रित करता है। प्रत्येक वित्तीय वर्ष के प्रारंभ में विधान मंडल के सम्मुख वार्षिक वित्तीय विवरण अथवा बजट प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें शासन की आय और व्यय का विवरण रहता है। बजट वित्त मंत्री द्वारा रखा जाता है ।
2. कोई धन विधेयक प्रारंभ में विधान परिषद् में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता | जब विधानसभा किसी धन विधेयक को पारित कर देती है, तब वह विधानपरिषद् के पास भेज दिया जाता है। विधान परिषद् को 4 दिनों के भीतर विधानसभा को लौटाना पड़ता है।
विधान परिषद् उस विधेयक के संबंध में संस्तुतियाँ तो दे सकती हैं, किन्तु वह न तो उसे अस्वीकार कर सकती और न उसमें संशोधन ही कर सकती है। 3. विधानसभा द्वारा पारित किये जाने के दिनों के बाद विधेयक को दोनों सदनों द्वारा पारितसमझ छिया क जाता है तथा राज्यपाछ को उस पर अपनी सहमति देनी पड़ती है।
द मण पर नियंत्रण : मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से विधानसभा का ५-3 ही है। जब कभी मंत्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास हुक जाता है, तो समूचा मंत्रिपरिषद् को त्यागपत्र वेन्ता 4 संवैधानिक सं ।
अशट नचिम ‘ संघीय स्वरूप को प्रभावित करने बाला कोई पारित हो कक हे, के संसद के दोों सच मु डरा उसकी पुष्टि आवश्यक है।
मुख़्यमंत्री
मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। साधारणतः बैसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाता है जो विधानसभा में बहुमत दल का नेता होता है। मुख्यमंत्री ही शासन का प्रमुख श्रवक्ता है और मंत्रिपरिषदों की बैठकों की अध्यक्षता करता है। मंत्रिपरिषद् के निर्णयों को मुख्यमंत्री ही राज्यपाल तर पहुँचाता है
नोट : 97 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2008 के अनुसार सुख्या त्री सहित संपूर्ण मंत्रिपरिषद का आकार, राज्य की विधान सभा की कुल बदस्य संख्या के 75% से अधिक नहीं होगी लैकिन मुख्यमंत्री गे संपूर्ण मंत्रिपरिषद की कुल संख्या ।2 से कम नहीं होनी चाहिए।
जब कभी राज्यपाल कोई बात मंत्रिपरिषद् तक पहुंचाना चाआ। री है, तो वह मुख्यमंत्री के द्वारा ही यह कार्य करता है।
> राज्यपाल के सारे अधिकारों का प्रयोग मुख्यमंत्री ही कक
> अनुच्छेद 67 मुख्यमंत्री के कार्यों को परिभाषित करता है |
केन्द्रशासित प्रदेश
> केनन््द्रशासित प्रदेश का शासन राष्ट्रपति द्वार चलाया जाता ह आओ, वह इस बारे में जहाँ तक उचित समझे, अपने द्वारा नियुक्त प्र३
के माध्यम से कार्य करते हैं। अंडमान निकोबार, दिल्ली, पुर जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के प्रशासकों को उपराज्यपाल कहा |
जबकि चंडीगढ़ का प्रशासक मुख्य आयुक्त कहलाता है। इस समय पंजाब का राज्यपाल ही चंडीगढ़ का प्रशासक यानी मुख्य आयुक्त ह
नोट : अनुच्छेद-239 कक (5) के तहत विधायी व्यवस्था वाले स की सलाह पर करता है तथा मंत्री, राष्ट्रपति के पद धारण करते हैं। मंत्रिपरिषद विधान सभा रूप से उत्तरदायी होती है।