भारतीय संविधान की संघीय कार्यपालिका। संघीय कार्यपालिका क्या है ?
संघीय कार्यपालिका क्या है ? भारतीय संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है। ( अनुच्छेद-53) भारत में संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है, क्योंकि मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है। अतः राष्ट्रपति नाममात्र की कार्यपालिका है तथा प्रधानमंत्री व उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है।
राष्ट्रपति (अनुच्छेद-52) ( संघीय कार्यपालिका )
राष्ट्रपति देश का संवैधानिक प्रधान होता है। राष्ट्रपति भारत का प्रथम नागरिक कहलाता है। राष्ट्रपति पद की योग्यता संविधान के अनुच्छेद-58 के अनुसार कोई व्यक्ति राष्ट्रपति होने योग्य तब होगा, जब वह — 1. भारत का नागरिक हो। 2.35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो। 3. लोकसभा का सदस्य निर्वाचित किये जाने योग्य हो 4. चुनाव के समय । लाभ का पद धारण नहीं करता हो। संघीय कार्यपालिका
[su_note class=”text alin center”]यदि व्यक्ति राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद पर हो या संघ अथवा किसी राज्य की मंत्रिपरिषद् का सदस्य हो, तो वह लाभ का पद नहीं माना जायेगा ।[/su_note]
राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए निर्वाचक मंडल (अनु.-54) : इसमें राज्यसभा, लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य रहते हैं। नवीनतम व्यवस्था के अनुसार पुदुचेरी विधानसभा तथा दिल्ली की विधानसभा के निर्वाचित सदस्य को भी सम्मिलित किया गया है। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए निर्वाचक मंडल के 50 सदस्य प्रस्तावक तथा 50 सदस्य अनुमोदक होते हैं। संघीय कार्यपालिका
एक ही व्यक्ति जितनी बार चाहे राष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित हो सकता है। राष्ट्रपति का निर्वाचन समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली और एकल संक्रमणीय मत पद्धति के द्वारा होता है (अनुच्छेद-55)। राष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित विवादों का निपटारा उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाता है। निर्वाचन अवैध घोषित होने पर उसके द्वारा किये गये कार्य अवैध नहीं होते हैं। संघीय कार्यपालिका
राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तिथि से पाँच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा। अपने पद की समाप्ति के बाद भी वह पद पर तब तक बना रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण नहीं कर लेता है (अनुच्छेद-56)।
पद धारण करने से पूर्व राष्ट्रपति को एक निर्धारित प्रपत्र पर भारत के मुख्य न्यायाधीश अथवा उनकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश के सम्मुख शपथ लेनी पड़ती है। संघीय कार्यपालिका
[su_note class=”text alin center”]अनुच्छेद-77 (1) के अनुसार भारत सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्रवाई राष्ट्रपति के नाम से की हुई कही जाएगी और अनु. 77 (3) के अनुसार राष्ट्रपति भारत सरकार का कार्य अधिक सुविधापूर्वक किए जाने के लिए और मंत्रियों में उक्त कार्य के आवंटन के लिए नियम बनाएगा।[/su_note]
भारत के राष्टपतियों के नाम
1 | डॉ. राजेन्द्र प्रसाद | 26.01.1950-13.05.1962 |
2 | डॉ. एस. राधाकृष्णन | 13.05.1962-13.05.1967 |
3 | डॉ. जाकिर हुसैन | 13.05.1967-03.05.1969 |
4 | वी. वी. गिरि | 24.08.1969-24.08.1974 |
5 | फखरूद्दीन अली अहमद | 24.08.1974-11.02.1977 |
6 | नीलम संजीव रेडी | 24.08.1974-11.02.1977 |
7 | ज्ञानी जैल सिंह | 25.07.1977-25.07.1982 |
8 | मणआर. वेंकटर | 25.07.1982-25.07.1987 |
9 | डॉ. शंकर दयाल शर्मा | 25.07.1987-25.07.1992 |
10 | के. आर. नारायण | 25.07.1997-25.07.2002 |
[su_note class=”text alin center”]अनुच्छेद-77 (1) के अनुसार भारत सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्रवाई राष्ट्रपति के नाम से की हुई कही जाएगी और अनु. 77 (3) के अनुसार राष्ट्रपति भारत सरकार का कार्य अधिक सुविधापूर्वक किए जाने के लिए और मंत्रियों में उक्त कार्य के आवंटन के लिए नियम बनाएगा।[/su_note]
राष्ट्रपति निम्न दशाओं में पाँच वर्ष से पहले भी पद त्याग सकता है
. 1. उपराष्ट्रपति को संबोधित अपने त्यागपत्र द्वारा; यह त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को सम्बोधित किया जायेगा जो इसकी सूचना लोक सभा के अध्यक्ष को देगा। [अनु. 56 (2)] संघीय कार्यपालिका
2. महाभियोग द्वारा हटाये जाने पर (अनुच्छेद-61)। महाभियोग के लिए केवल एक ही आधार है, जो अनुच्छेद- 61 (1) में उल्लेखित है, वह है संविधान का अतिक्रमण ।
राष्ट्रपति पर महाभियोग (अनुच्छेद-61)
राष्ट्रपति द्वारा संविधान के प्रावधानों के उल्लंघन पर संसद के किसी संसद के किसी सदन द्वारा उस पर महाभियोग लगाया जा सकता है, परन्तु इसके लिए आवश्यक है कि राष्ट्रपति को 14 दिन पहले लिखित सूचना दी जाये, जिस पर उस सदन के एक चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर हों।
संसद के उस सदन, जिसमें महाभियोग का प्रस्ताव पेश है, के दो-तिहाई सदस्यों द्वारा पारित कर देने पर प्रस्ताव दूसरे सदन में जायेगा, तब दूसरा सदन राष्ट्रपति पर लगाये गये आरोपों की जाँच करेगा या करायेगा और ऐसी जाँच में राष्ट्रपति के ऊपर लगाये गये आरोपों को सिद्ध करने वाला प्रस्ताव दो-तिहाई बहुमत से पारित हो जाता है, तब राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया पूरी समझी जायेगी और उसी तिथि से राष्ट्रपति को पदत्याग करना होगा। राष्ट्रपति की रिक्ति को छह महीने के अन्दर भरना होता है।
जब राष्ट्रपति पद की रिक्ति पदावधि (पाँच वर्ष) की समाप्ति सेहुई है, तो निर्वाचन पदावधि की समाप्ति के पहले ही कर लिया त होने पर जायेगा [अनुच्छेद 62(1)]। किन्तु यदि उसे पूरा करने में कोई विलंब हो जाता है, तो ‘राज अंतराल’ न होने पाए इसीलिए यह उपबंध है कि राष्ट्रपति अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी वह पद भी तब तक पद पर बना रहेगा, जब तक उसका उत्तराधिकारी पद धारण नहीं कर लेता है (अनुच्छेद-56(1) ग]। ऐसी दशा में उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के रूप में कार्य नहीं कर सकेगा।
अन्य आकस्मिकताओं में राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन में उच्चतम (अनुच्छेद-70)
जब राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति दोनों का पद पड़ती है। रिक्त हो तो ऐसी आकस्मिकताओं में अनुच्छेद-70 राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन का उपबंध करता है। इसके अनुसार संसद जैसा उचित समझे वैसा उपबंध कर सकती है। संघीय कार्यपालिका
इसी उद्देश्य से संसद ने र्य अधिक राष्ट्रपति उत्तराधिकार अधिनियम, 1969 ई. पारित किया है जो यह उपबन्धित करता है कि यदि उपराष्ट्रपति भी किसी कारणवश उपलब्ध नहीं है तो उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या उसके नहीं रहने पर उसी न्यायालय का वरिष्ठतम न्यायाधीश, जो उस समय उपलब्ध हो, राष्ट्रपति के कृत्यों को सम्पादित करेगा
राष्ट्रपति के वेतन एवं भत्ते
राष्ट्रपति का मासिक वेतन पाँच लाख रुपया है। राष्ट्रपति का वेतन आयकर से मुक्त होता है। राष्ट्रपति को निःशुल्क निवास-स्थान व संसद द्वारा स्वीकृत अन्य भत्ते प्राप्त होते हैं । संघीय कार्यपालिका राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान उनके वेतन तथा भत्ते में किसी राष्ट्रपति के नाम प्रकार की कमी नहीं की जा सकती है। राष्ट्रपति के लिए 18 लाख रुपये (1.5 लाख रुपये महीना) वार्षिक दूतों की नियु पेंशन निर्धारित किया गया है।
राष्ट्रपति के अधिकार एवं कर्तव्य
1. नियुक्ति सम्बन्धी अधिकार राष्ट्रपति निम्न की नियुक्ति करता है 1. भारत का प्रधानमंत्री 2. प्रधानमंत्री की सलाह पर मंत्रिपरिषद् के अन्य सदस्यों, 3. सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों, 4. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, 5. राज्यों के राज्यपाल, 6. मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्त, 7. भारत के महान्यायवादी, 8. राज्यों के मध्य समन्वय के लिए अन्तर्राज्यीय परिषद् के सदस्य, 9. संघीय लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों, 10. संघीय क्षेत्रों के मुख्य आयुक्तों, 11. वित्त आयोग के सदस्यों, 12. भाषा आयोग के सदस्यों, 13. पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्यों, 14. अल्पसंख्यक आयोग के सदस्यों, 15. भारत के राजदूतों तथा अन्य राजनयिकों, 16. अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में रिपोर्ट देने वाले आयोग के सदस्यों आदि। संघीय कार्यपालिका
2. विधायी शक्तियाँ राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग होता है। इसे निम्न विधायी शक्तियाँ प्राप्त हैं-1. संसद के सत्र को आहूत करने, सत्रावसान करने तथा लोकसभा भंग करने संबंधी अधिकार विधेयक (अनुच्छेद-117 (3) / (d) ऐसे कराधान पर, जिसमें राज्य हित जुई है, प्रभाव डालने वाले विधेयक (c) राज्यों के बीच व्यापार, वाणिज्य और समागम पर निर्बन्धन लगाने वाले विधेयक । [अनुच्छेद-304]6. यदि किसी साधारण विधेयक पर दोनों सदनों में कोई असहमति है तो उसे सुलझाने के लिए राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है (अनुच्छेद-108) नोट : किसी अनुदान की मांग राष्ट्रपति की सिफारिश पर ही की जाएगी,अन्यथा नहीं [अनुछेद 113 (3) ]
3. संसद सदस्यों के मनोनयन का अधिकार जब राष्ट्रपति को यह लगे कि लोकसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय के व्यक्तियों का समुचित प्रतिनिधित्व नहीं है, तब वह उस समुदाय के दो व्यक्तियों को लोकसभा के सदस्य के रूप में नामांकित कर सकता है (अनु. 331)। इसी प्रकार वह कला, साहित्य, पत्रकारिता, विज्ञान नियंत्रक तथा सामाजिक कार्यों में पर्याप्त अनुभव एवं दक्षता रखने वाले 12 आयोग व्यक्तियों को राज्यसभा में नामजद कर सकता है (अनु. 80(3))। संघीय कार्यपालिका
4. अध्यादेश जारी करने की शक्ति संसद के स्थगन के समय अनुच्छेद 123 के तहत अध्यादेश जारी कर सकता है, जिसका प्रभाव संसद के अधिनियम के समान होता है। इसका प्रभाव संसद के शुरू होने के छह सप्ताह तक रहता है। परन्तु, राष्ट्रपति राष्ट्रपति राज्य सूची के विषयों पर अध्यादेश नहीं जारी कर सकता, केवल व दोनों सदन सत्र में होते हैं, तब राष्ट्रपति को यह शक्ति नहीं होती
5. सैनिक शक्ति सैन्य बलों की सर्वोच्य शक्ति राष्ट्रपति में सन्निहित है, किन्तु इसका प्रयोग विधि द्वारा नियमित होता है।
6. राजनैतिक शक्ति दूसरे देशों के साथ कोई भी समझौता या संधि राष्ट्रपति के नाम से की जाती है। राष्ट्रपति विदेशों के लिए भारतीय राजदूतों की नियुक्ति करता है। संघीय कार्यपालिका
7. क्षमादान की शक्ति संविधान के अनुच्छेद-72 के अन्तर्गत राष्ट्रपति को किसी अपराध के लिए दोषी ठहराये गये किसी व्यक्ति के दण्ड को क्षमा करने, उसका प्रविलम्बन, परिहार और लघुकरण की शक्ति प्राप्त है। क्षमा में दण्ड और बंदीकरण दोनों हटा दिया जाता है तथा दोषी को पूर्णतः मुक्त कर दिया जाता है। लघुकरण में दण्ड के स्वरूप को बदलकर कम कर दिया जाता है, जैसे मृत्युदंड का लघुकरण कर कठोर या साधारण कारावास में परिवर्तित करना ।
परिहार में दंड की प्रकृति में परिवर्तन किए बिना उसकी अवधि कम कर दी जाती है। जैसे 2 वर्ष के कठोर कारावास को 1 वर्ष के कठोर कारावास में परिहार करना। प्रविलंबन में किसी दंड पर (विशेषकर मृत्युदंड) रोक लगाना है ताकि दोषी व्यक्ति क्षमा याचना कर सके। विराम में किसी दोषी के सजा को विशेष स्थिति में कम कर दिया जाता है जैसे गर्भवती स्त्री की सजा को कम कर देना । संघीय कार्यपालिका
[su_note class=”text alin center”]जब क्षमादान की पूर्व याचिका राष्ट्रपति ने रद्द कर दी हो, तो दूसरी याचिका नहीं दायर की जा सकती।[/su_note]
8. राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ: आपातकाल से संबंधित उपबन्ध भारतीय संविधान के भाग-18 के अनुच्छेद-352 से 360 के अन्तर्गत मिलता है। मंत्रिपरिषद् के परामर्श से राष्ट्रपति तीन प्रकार के आपात लागू कर सकता है—(a) युद्ध या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण लगाया गया आपात (अनुच्छेद-352), (b) राज्यों में सांविधानिक तंत्र के विफल होने से उत्पन्न आपात (अनुच्छेद-356) (अर्थात् राष्ट्रपति शासन), (c) वित्तीय आपात (अनुच्छेद-360) (न्यूनतम अवधि-दो माह)।
9 . राष्ट्रपति किसी सार्वजनिक महत्व के प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय से अनुच्छेद 143 के अधीन परामर्श के सकता है, लेकिन वह यह परामर्श मानने के लिए बाध्य नहीं है।
10. राष्ट्रपति की किसी विधेयक पर अनुमति देने या न देने के निर्णय लेने की सीमा का अभाव होने के कारण राष्ट्रपति जेबी वीटो का प्रयोग कर सकता है, क्योंकि अनुच्छेद-111 केवल यह कहता है कि यदि राष्ट्रपति विधेयक लौटाना चाहता है, तो विधेयक को उसे प्रस्तुत किये जाने के बाद यथाशीघ्र लौटा देगा। जेबी वीटो शक्ति का प्रयोग का उदाहरण है, संघीय कार्यपालिका
1986 ई. में संसद द्वारा पारित भारतीय डाकघर संशोधन विधेयक, जिस पर तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने कोई निर्णय नहीं लिया। तीन वर्ष पश्चात्, 1989 ई. में अगले राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण ने इस विधेयक को नई राष्ट्रीय मोर्चा सरकार के पास पुनर्विचार हेतु भेजा परंतु सरकार ने इसे रद्द करने का फैसला लिया।
भारत में राष्ट्रपति के द्वारा संघ वित्त आयोग की सिफारिशों, नियंत्रक – महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग एवं राष्ट्रीय जनजाति आयोग के प्रतिवेदन को संसद के पटल पर रखवाया जाता है।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे । वे लगातार दो बार राष्ट्रपति निर्वाचित हुए ।
डॉ. एस. राधाकृष्णन लगातार दो बार उपराष्ट्रपति तथा एक बार राष्ट्रपति रहे ।
केवल वी. वी. गिरि के निर्वाचन के समय दूसरे चक्र की मतगणना करनी पड़ी।
केवल नीलम संजीव रेड्डी ऐसे राष्ट्रपति हुए जो एक बार चुनाव में हार गये, फिर बाद में निर्विरोध राष्ट्रपति निर्वाचित हुए।
भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल हैं।
उपराष्ट्रपति (अनुच्छेद-63)
संविधान में उपराष्ट्रपति से संबंधित प्रावधान अमेरिका के संविधान से ग्रहण किया गया है। भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है (अनुच्छेद 64 एवं अनुच्छेद-89)। उपराष्ट्रपति राज्यसभा का सदस्य नहीं होता है, अतः इसे मतदान का अधिकार नहीं है, किन्तु सभापति के रूप में निर्णायक मत देने का अधिकार उसे प्राप्त है। संघीय कार्यपालिका
योग्यता: कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने के योग्य तभी होगा, जब वह 1. भारत का नागरिक हो। 2.35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो। 3. राज्यसभा का सदस्य निर्वाचित होने के योग्य हो । 4. निर्वाचन के समय किसी प्रकार के लाभ के पद पर नहीं हो। 5. वह संसद के किसी सदन या राज्य के विधान मंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं हो सकता और यदि ऐसा व्यक्ति उपराष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है, तो यह समझा जायेगा कि उसने उस सदन का अपना स्थान अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है। संघीय कार्यपालिका
उपराष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए निर्वाचक मंडल [अनुच्छेद- 66(1)]
उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचकगण के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होता है। संघीय कार्यपालिका
[su_note class=”text alin center”]संसद के दोनों सदनों से बनने वाले निर्वाचकगण में निर्वाचित एवं मनोनीत दोनों सदस्य शामिल होते हैं।[/su_note]
उपराष्ट्रपति को अपना पद ग्रहण करने से पूर्व राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष शपथ लेनी पड़ती है। संघीय कार्यपालिका
उपराष्ट्रपति की पदावधि (अनुच्छेद 67)
उपराष्ट्रपति पद ग्रहण की तारीख से पाँच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा; परन्तु (a) उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा; [अनुच्छेद-67(क)] संघीय कार्यपालिका
(b) उपराष्ट्रपति, राज्य सभा के ऐसे संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा जिसे राज्य सभा के तत्कालीन व समस्त सदस्यों के बहुमत ने पारित किया है और जिससे लोक सभा सहमत है; किन्तु इस खंड के प्रयोजन के लिए कोई संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जायेगा जब तक कि उस संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की कम से कम चीदह दिन की सूचना न दे दी गई हों [अनुच्छेद-67 (ख)] संघीय कार्यपालिका
(c) उपराष्ट्रपति, अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है। अनुच्छेद-67 (ग)] संघीय कार्यपालिका
★ उपराष्ट्रपति बनने से पहले डॉ. एस राधाकृष्णन सोवियत संघ में राजदूत थे।
उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित विवादों का निपटारा भी राष्ट्रपति की तरह उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाता है। निर्वाचन अवैध होने पर उसके द्वारा किये गये कार्य अवैध नहीं होते हैं। संघीय कार्यपालिका
राष्ट्रपति के पद खाली रहने पर उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति की हैसियत से कार्य करता है (अनु. 65) उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने की अधिकतम अवधि छह महीने होती है। इस दौरान राष्ट्रपति का चुनाव करा लेना अनिवार्य होता है। राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते समय उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति की सब शक्तियों, उन्मुक्तियों, उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकार का अधिकार प्राप्त होगा। संघीय कार्यपालिका
[su_note class=”text alin center”]जिस किसी कालावधि में उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है वह राज्यसभा के सभापति के पद के कार्यों को नहीं करेगा और अनुच्छेद 97 के अधीन राज्यसभा के सभापति के वेतन या भत्ते का हकदार नहीं होगा।[/su_note]
प्रधानमंत्री एवं मत्रिपरिषद्
संविधान के अनुच्छेद-74 के अनुसार राष्ट्रपति को उसके कार्यों के सम्पादन व सलाह देने हेतु एक मंत्रिपरिषद् होती है, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होता है। संघीय कार्यपालिका
संविधान के अनुच्छेद-75 के अनुसार प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर करेगा। मंत्रिपरिषद में मंत्रियों की कुल संख्या प्रधानमंत्री को शामिल करके लोकसभा के कुल सदस्यों की कुल संख्या के 15% (पन्द्रह प्रतिशत) से अधिक नहीं होगी (91 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम-2003) |
अनुच्छेद-75(2) के अनुसार मंत्री, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करेंगे और अनुच्छेद-75(3) के अनुसार मंत्री परिषद् लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी। संघीय कार्यपालिका
पद ग्रहण से पूर्व प्रधानमंत्री सहित प्रत्येक मंत्री को राष्ट्रपति के सामने पद और गोपनीयता की शपथ लेनी होती है [अनुच्छेद-75(4)]।
मंत्रिपरिषद् का सदस्य बनने के लिए वैधानिक दृष्टि से यह आवश्यक है कि व्यक्ति संसद के किसी सदन का सदस्य हो, यदि व्यक्ति मंत्री बनते समय संसद सदस्य नहीं हो, तो उसे छह महीने के अन्दर संसद सदस्य बनना अनिवार्य है, नहीं तो उसे अपना पद छोड़ना होगा। [अनुच्छेद-75(5)] संघीय कार्यपालिका
सभी मंत्रियों, राज्य मंत्रियों और उपमंत्रियों को निःशुल्क निवास स्थान तथा अन्य सुविधाएँ प्राप्त होती हैं।
यदि लोकसभा किसी एक मंत्री के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित करे अथवा उस विभाग से संबंधित विधेयक को रद्द कर दे, तो समस्त मंत्रिमंडल को त्यागपत्र देना होता है। संघीय कार्यपालिका
मंत्री तीन प्रकार के होते हैं कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री एवं उपमंत्री । कैबिनेट मंत्री विभाग के अध्यक्ष होते हैं। प्रधानमंत्री एवं कैबिनेट मंत्री को मिलाकर मंत्रिमंडल का निर्माण होता है। प्रधानमंत्री लोकसभा का नेता होता है।
वह राष्ट्रपति को संसद का सत्र आहूत करने एवं सत्रावसान करने संबंधी परामर्श देता है। वह किसी भी समय लोक सभा को विघटित करने की सिफारिश राष्ट्रपति से कर सकता है। संघीय कार्यपालिका
प्रधानमंत्री सभा पटल पर सरकार की नीतियों की घोषणा करता है। प्रधानमंत्री नीति आयोग, राष्ट्रीय विकास परिषद्, राष्ट्रीय एकता लंबा कार्य परिषद्, अंतर्राज्यीय परिषद् तथा राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद् प्रथम गैर कांग्रेस का अध्यक्ष होता है।
प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति एवं मंत्रिपरिषद् के बीच संवाद की मुख्य कड़ी है (अनुच्छेद-78)।
प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को विभिन्न अधिकारियों, जैसे- भारत का महान्यायवादी, भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, संघ से छोटा काट लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष एवं उसके सदस्यों, चुनाव आयुक्तों, वित्त आयोग का अध्यक्ष एवं उसके सदस्यों एवं अन्य नियुक्ति के प्रधानमंत्रि संबंध में परामर्श देता है। संघीय कार्यपालिका
प्रधानमंत्री किसी मंत्री को त्यागपत्र देने अथवा राष्ट्रपति को उसे बर्खास्त करने की सलाह दे सकता है। वह मंत्रिपरिषद् बैठक की अध्यक्षता करता है तथा अपने पद से त्यागपत्र देकर मंत्रिमंडल को बर्खास्त कर सकता है।
[su_note class=”text alin center”]प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद् का प्रमुख होता है, अतः जब प्रधानमंत्री त्यागपत्र देता है अथवा उसकी मृत्यु हो जाती है तो अन्य मंत्री कोई भी कार्य नहीं कर सकते। अन्य शब्दों में प्रधानमंत्री की मृत्यु अथवा त्यागपत्र से मंत्रिपरिषद् स्वयं ही विघटित हो जाती है और एक शून्यता उत्पन्न हो जाती है। [/su_note]
प्रधानमंत्रियों में सबसे बड़ा कार्यकाल प्रथम प्रधानमंत्री जे. एल नेहरू का रहा। वे कुल 16 वर्ष 9 महीने और 12 दिन तक अपने पद पर रहे। देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी बनीं। वे ऐसी पहली व्यक्ति रहीं जो दो अलग-अलग अवधियों में प्रधानमंत्री रहीं।पहली बार इन्दिरा गाँधी प्रधानमंत्री बनीं तो वह राज्यसभा की सदस्य थीं। संघीय कार्यपालिका
चरण सिंह एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री रहे, जो कभी लोकसभा में करता है। य बुल संख्या मंत्रालयों क द्वारा किया की कुल (91 af उपस्थित नहीं हुए और विश्वास मत प्राप्त करने में असफल होने वाले प्रथम प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह हुए। संघीय कार्यपालिका
एक कार्यकाल में सबसे कम समय तक प्रधानमंत्री के पद पर रहने वाले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी हुए (मात्र 13 दिन)।
कैबिनेट मंत्रियों में सबसे बड़ा कार्यकाल जगजीवन राम का रहा, जो लगभग 32 वर्ष केन्द्रीय मंत्रिमंडल में रहे।
सबसे लम्बी अवधि तक एक ही विभाग का कार्यभार संभालनेवाली केन्द्रीय मंत्री राजकुमारी अमृतकौर थी। संघीय कार्यपालिका
1. सबसे लंबा कार्यकाल (16 वर्ष 9 महीना 12 दिन)
2. प्रथम गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री एवं प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देने वाले प्रथम प्रधानमंत्री
3. लोकसभा का सामना न करनेवाले प्रधान मंत्री
4. अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा हटाये जाने वाले प्रथम प्रधानमंत्री
-5 पद ग्रहण करने के समय किसी भी सदन के सदस्य नहीं
6. सबसे छोटा कार्यकाल (13 दिन) संघीय कार्यपालिका
7. पद ग्रहण करते समय विधानसभा सदस्य
★ तीन प्रधानमंत्रियों (जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री तथा राज्यसभा के प्रथ सदस्यों एवं अन्य नि श्रीमती इंदिरा गाँधी) की मृत्यु उनकी पदावधि के दौरान हो गयी थी।
* लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु 11 जनवरी, 1966 ई. को भारत से बाहर ताशकंद में हुई थी। ।
★ मोरार जी देसाई सबसे अधिक उम्र में एवं राजीव गाँधी सबसे कम उम्र में प्रधानमंत्री बने । गुलजारी लाल नंदा 27 मई, 1964 से 09 जून, 1964 ई. तक एवं 11 जनवरी, 1966 से 24 जनवरी 1966 ई. तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने ।
भारत के प्रथम उपप्रधानमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल थे।
मंत्रिमंडल सचिवालय
मंत्रिमंडल सचिवालयभारत सरकार के नियम, 1961 के अन्तर्गत प्रत्यक्ष तौर पर प्रधानमंत्री के अधीन कार्य करता है। प्रशासनिक प्रमुख कैबिनेट सचिव होता है। कैबिनेट सचिव सिविल सर्विसेज बोर्ड का पदेन अध्यक्ष होता है। संघीय कार्यपालिका
मंत्रिमंडल सचिवालय मंत्रिमंडल बैठकों के लिए कार्य सूची तैयार करता > मंत्रिमंडल सचिवालय भारत सरकार के नियम, 1961 के अन्तर्गत प्रत्यक्ष तौर पर प्रधानमंत्री के अधीन कार्य करता है। इसका है व मंत्रिमंडल समितियों के लिए सचिवालयी सहायता भी प्रदान करता है। यह विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय स्थापित करता है।
[su_note class=”text alin center”]मंत्रालयों को वित्तीय संसाधनों का आवंटन वित्त मंत्रालय के द्वारा किया जाता है न कि मंत्रिमंडल सचिवालय के द्वारा। [/su_note]
संघीय कार्यपालिका का हमारा यह आर्टिकल आपको अच्छा लगा होगा ऐसी हमारी आशा के साथ यह आर्टिकल यही समाप्त होता है।
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