कोशिका विज्ञान किसे कहते हैं ? Best कोशिका विज्ञान pdf
कोशिका विज्ञान से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न, कोशिका विज्ञान pdf, जीव विज्ञान कोशिका,कोशिका विज्ञान का परिचय, संरचना, कोशिका क्या हैं इन सभी के बारे में आपको महत्वपूर्ण जानकारी हमारे इस महत्वपूर्ण से आर्टिकल में ही मिल सकती है। हर प्रकार की कोशिका की प्रकार का व्यव्हार करती है यह सम्पूर्ण जानकारी हम आपको बातएंगे बने रहिये हमारे साथ।
कोशिका विज्ञान
कोशिका विज्ञान के अंतर्गत आने वाली समस्त चीजों का वर्णन निम्नलिखित अत्यंत सरल भाषा में किया गया है–
जीव द्रव्य
जीव द्रव्य का नामकरण पुर्किंजे के द्वारा सन 18 सो 39 ईस्वी में किया गया। यह एक तरल गाढ़ा रंगहीन पारभासी नस्ल सा वजन युक्त पदार्थ है। जीव की सारी जैविक क्रियाएं इसी के द्वारा होती हैं। इसीलिए जीव द्रव्य को जीवन का भौतिक आधार कहते हैं जीव द्रव्य को दो भागों में बांटा गया है–
- कोशिका द्रव्य यह कोशिका में केंद्रक एवं कोशिका झिल्ली के बीच रहता है।
- केंद्रक द्रव्य यह कोशिका में केंद्रक के अंदर रहता है।
जीव द्रव्य का 99% भाग निम्न चार तत्वों से मिलकर बना होता है–
- ऑक्सीजन 76%
- कार्बन 10.5%
- हाइड्रोजन 10%
- नाइट्रोजन 2.5%
जीव द्रव्य का लगभग 80% भाग जल होता है। जीव द्रव्य में अकार्बनिक एवं कार्बनिक योगिक का अनुपात 81:19 का होता है।
कोशिका
कोशिका जीवन की सबसे छोटी कार्यात्मक एवं संरचनात्मक इकाई है। एंटोनवान लिवेनहाक पहली बार कोशिका को देखा वह इसका वर्णन किया था कोशिका के अध्ययन के विज्ञान को कार्टोलोजी कहा जाता है कोशिका शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अंग्रेज वैज्ञानिक रॉबर्ट हुक ने 1665 इसी में किया था सबसे छोटी कोशिका जीवाणु माइकोप्लाजमा गैलिसेप्टिकम की है सबसे लंबी कोशिका तंत्रिका तंत्र की कोशिका है। कोशिका विज्ञान
सबसे बड़ी कोशिका शुतुरमुर्ग के अंडे की कोशिका है कोशिका सिद्धांत का प्रतिपादन 1838 से 39 ईसवी मेथियस स्लाइडेल और थियोडर स्वान ने किया इनका सिद्धांत यह बताने में असफल रहा कि नई कोशिकाओं का निर्माण कैसे होता है पहली बार ढोल बिरजू ने 18 से 55 ईसवी में स्पष्ट किया कि कोशिका विभाजित होती है और नई कोशिकाओं का निर्माण पूर्व स्थित कोशिकाओं के विभाजन से होता है। कोशिका विज्ञान
कोशिका सिद्धांत की मुख्य बातें इस प्रकार है–
- सभी जीव कोशिका व कोशिका उत्पाद से बने होते हैं
- सभी कोशिकाएं पूर्व स्थित कोशिकाओं से निर्मित होती हैं।
- कोशिका का निर्माण किस क्रिया से होता है उसमें केंद्रक मुख्य अभिकर्ता होता है। कोशिका विज्ञान
कोशिका दो प्रकार की होती है–
- Prokaryotic कोशिका इन कोशिकाओं में हिस्टोन प्रोटीन नहीं होता जिसके कारण क्रोमेटइन नहीं बन पाता है केवल डीएनए का सूत्र ही गुण पात्र के रूप में पड़ा रहता है अन्य कोई आवरण इसे घेरे नहीं रहता है अतः केंद्रक नाम की कोई विकसित कोशिकांग इसमें नहीं होता है जीवाणु एवं नील रहित शेवालों में ऐसी ही कोशिकाएं मिलती है।
- यूकेरियोटिक कोशिका इन कोशिकाओं में दोहरी झिल्ली के आवरण केंद्रक आवरण से घिरा सुपुष्ठ केंद्रक पाया जाता है जिसमें डीएनए व हिस्टोन प्रोटीन के संयुक्त होने से बनी क्रोमेटिन तथा इसके अलावा केंद्रिका होते हैं। कोशिका विज्ञान
कोशिका के मुख्य भाग
- कोशिका भित्ति यह केवल पादप कोशिका में पाया जाता है यह सैलूलोज का बना होता है यह कोशिका को निश्चित आकृति एवं आकार बनाए रखने में सहायक होता है जीवाणु का कोशिका भित्ति peptidogalken का बना होता है।
- कोशिका झिल्ली कोशिका के सभी अवैध एक पतली झिल्ली के द्वारा गिरे रहते हैं इस झिल्ली को कोशिका झिल्ली कहते हैं यह अर्ध पारगम्य झिल्ली होती है इसका मुख्य कार्य कोशिका के अंदर जाने वाले एवं अंदर से बाहर आने वाले पदार्थों का निर्धारण करना है कोशिका झिल्ली लिपिड की बनी होती है यह लिपिड घटक फैसफोग्लिसराइड के बने होते हैं बाद में जैव रासायनिक अनुसंधान में यह स्पष्ट हो गया है कि कोशिका झिल्ली में प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है। कोशिका विज्ञान
- तारककाय इसकी खोज बोवेरी ने की थी यह केवल जंतु कोशिका में पाया जाता है तारककाय के अंदर एक या दो कण जैसी रचना होती है जिन्हें सेंट्रोयोल कहते हैं समसूत्री विभाजन में यह ध्रुव का निर्माण करता है।
- अंतद्रव्यी जलिका यूकैरियोटिक कोशिका की कोशिका द्रव्य में चटपटे आपस में जुड़े थैली युक्त छोटी नल का वक्त जालिका तंत्र बिखरा रहता हैजिसे अंत द्रव्यी जालिका कहते हैं। प्रायर राइबोसोम अंतर्द्रवी जालिका के बाहरी सतह पर चिपके रहते हैं। जिस अंतर द्रव्य जालिका की सतह पर यह राइबोसोम मिलते हैं उसी खुरदरी अंत द्रव्य जालिका कहते हैं। राइबोसोम की अनुपस्थिति पर अंत द्रव्य जालिका चिकनी लगती है अतः इसे चिकनी अंतर द्रव्य जालिका कहते हैं। जो कोशिकाएं प्रोटीन संश्लेषण एवं श्रवण में सक्रिय भाग लेती हैं उनमें खुरदरी अंतर द्रव्य जालिका बहुत आए से मिलती हैं चिकनी अंतर द्रव्य जालिका प्राणियों में लिपिड संश्लेषण के मुख्य स्थल होते हैं। लिपिड की भांति स्टेरॉयड हार्मोन कितने अंतर द्रव्य जालिका में ही होते हैं। E.R का मुख्य कार्य उन सभी भाषाओं व प्रोटीन ओं का संचरण करना है जो कि विभिन्न शैलियों जैसे कोशिका झिल्ली केंद्रक झिल्ली आदि का निर्माण करते हैं। सामान्यता इसके द्वारा कोशिका द्रव्य और केंद्र के विभिन्न भागों में पदार्थों का संचालन किया जाता है।
- राइबोसोम सर्वप्रथम रॉबिंसन एवं ब्राउन ने 1953 ईस्वी में पादप कोशिका में तथा जी पर लेटने 1953 ईस्वी में जंतु कोशिका में राइबोसोम को देखा और 1958 ईस्वी में रॉबर्ट ने इसका नामकरण किया। यह राइबो न्यूक्लिक एसिड नामक अम्ल व प्रोटीन की बनी होती है। यह प्रोटीन संश्लेषण के लिए उपयुक्त स्थान प्रदान करती है अर्थात यह प्रोटीन का उत्पादन स्थल है इसीलिए इसे प्रोटीन की फैक्ट्री भी कहा जाता है। राइबोसोम केवल कोशिका द्रव्य में ही नहीं बल्कि हरित लवक एवं सूत्र कणिका एवं खुरदरी अंतर द्रव्य जालिका में भी मिलते हैं। यूकैरियोटिक राइबोसोम 80s व प्रोकेरियोटिक राइबोसोम 70s प्रकार के होते हैं। यहां पर एस अवसादन गुणांक को प्रदर्शित करता है। यह अपरोक्ष रूप में आकार व घनत्व को व्यक्त करता है।
नोट स्त्री के लाल रुधिर कण में राइबोसोम एवं अंतर द्रव्य जालिका नहीं पाया जाता है लाल रुधिर कण द्वारा प्रोटीन विश्लेषण नहीं होता है। - माइटोकॉन्ड्रिया इसकी खोज अल्टमैन ने 1886 ईसवी में की थी। बेड़ा ने इसका नाम माइटोकॉन्ड्रिया दिया यह कोशिका का श्वसन स्थल है कोशिका में इसकी संख्या निश्चित नहीं होती है उर्जा युक्त कार्बनिक पदार्थ का ऑक्सीकरण माइटोकॉन्ड्रिया में होता है जिससे काफी मात्रा में ऊर्जा प्राप्त होती है इसलिए माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का शक्ति केंद्र कहते हैं माइटोकांड्रिया के अतिरिक्त दिल्ली में एटीपी संश्लेषण कारी रासायनिक अभिक्रिया होती हैं इसे कोशिका का इंजन भी कहते हैं इसे यूकेरियोटिक कोशिकाओं के भीतर प्रोकैरियोटिक कोशिका माना जाता है माइटोकॉन्ड्रिया के आधा त्रि में एकल वृत्ताकार डीएनए अणु कुछ अरे नहीं राइबोसोमस तथा प्रोटीन संश्लेषण के लिए आवश्यक घटक मिलते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया से खंडन द्वारा विभाजित होती है। कोशिका विज्ञान
- गोल्जीकाय इसकी खोज केमिको गोल्जी नामक वैज्ञानिक ने की थी। यह सूक्ष्म नलिकाओं के समूह एवं थैलियों का बना होता है। गल्जी कांपलेक्स में कोशिका द्वारा संश्लेषित प्रोटीन व अन्य पदार्थों की पुटका के रूप में पैकिंग की जाती है यह पुट काय गंतव्य स्थान पर उस पदार्थ को पहुंचा देती हैं। यदि कोई पदार्थ कोशिका से बाहर स्रावित होता है तो उस पदार्थ वाली पुट कहां है उसे कोशिका झिल्ली के माध्यम से बाहर निकलवा देती हैं। इस प्रकार गॉल्जीकाय को हम कोशिका के अनुभव का यातायात प्रबंध भी कह सकते हैं। यह कोशिका भित्ति एवं लाइसोसोम का निर्माण भी करते हैं। गोलजी कांपलेक्स में साधारण शर्करा से कार्बोहाइड्रेट का संश्लेषण होता है जो राइबोसोम में निर्मित प्रोटीन से मिलकर ग्लाइकोप्रोटीन बनाता है गॉल्जीकाय ग्लाइकोलिपिड का भी निर्माण करता है। कोशिका विज्ञान
लाइसोसोम इसकी खोज डी डूबे नामक वैज्ञानिक ने की थी यह सूक्ष्म गोल, इकहरी झिल्ली से घिरी थैली जैसी संरचना होती है इसका निर्माण संवेष्टन विधि द्वारा गॉल्जीकाय में होता है। लाइसोसोम मैं सभी प्रकार की जल अपघटन एंजाइम मिलते हैं जो अम्लीय परिस्थितियों में सर्वाधिक सक्रिय होते हैं। यह एंजाइम कार्बोहाइड्रेट प्रोटीन लिपिड न्यूक्लिक अम्ल के पाचन में सक्षम है इसे आत्मघाती थैली भी कहा जाता है। कोशिका विज्ञान
लवक यह केवल पादप कोशिका में पाए जाते हैं यह तीन प्रकार के होते हैं–
- हरित लवक यह हरा रंग का होता है क्योंकि इसके अंदर एक हरे रंग का पदार्थ पर्णहरित होता है। इसी की सहायता से पौधा प्रकाश संश्लेषण करता है और भोजन बनाता है। इसीलिए हरित लवण को पादप कोशिका की रसोईघर कहते हैं। इसमें राइबोसोम पाया जाता है।
- अवर्णी लवक यह रंगहीन लवक है। यह पौधे के उन भागों की कोशिकाओं में पाया जाता है जो सूर्य के प्रकाश से वंचित हैं। जैसे की जड़ों में भूमिका तनु आदि में यह भोज्य पदार्थों का संग्रह करने वाला लवक है।
- वर्णी लवक यह रंगीन लवक होते हैं जो प्रायः लाल पीले नारंगी रंग के होते हैं यह पौधों के रंगीन भाग जैसे पुष्प फल भित्ति बीज आदि में पाए जाते हैं।
- रासधानी यह कोशिका की निर्जीव रचना है इसमें तरल पदार्थ भरी होती है जंतु कोशिका में अनेक बहुत छोटी होती है परंतु पादप कोशिकाओं में यह कोशिका का 90% स्थान गिरता है रसधानी एकल जल्दी से अमृत होती है जिसे टोनोप्लास्ट कहते हैं अमीबा में संकुचन सील रसधानी उत्सर्जन के लिए महत्वपूर्ण है। कोशिका विज्ञान
- केंद्रक रॉबर्ट ब्राउन ने केंद्रक की खोज की। यह कोशिका का सबसे प्रमुख अंग होता है यह कोशिका के प्रबंधन के समान कार्य करता है। केंद्रक द्रव्य में धागेनुमा पदार्थ जाल के रूप में बिखरा दिखलाई पड़ता है। इसे क्रोमेटीन कहते हैं। यह नाम फ्रेमिंग ने दिया। यह प्रोटीन स्टोर एवं डीएनए का बना होता है कोशिका विभाजन के समय यह सिकुड़ कर अनेक मोटे और छोटे धागे के रूप में संगठित हो जाता है इन धागों को गुणसूत्र कहते हैं प्रत्येक जाति के जीव धारियों में सभी कोशिकाओं के केंद्रक में गुणसूत्र की संख्या निश्चित होती है जैसे मानव में 23 जोड़ा चंपाजी में 24 जोड़ा और बंदर में 21 जोड़ा।
प्रत्येक गुणसूत्र में जेली के समान एक गाड़ा भाग होता है, जिसे मैट्रिक्स कहते हैं मैट्रिक्स में दो परस्पर लिपटे महीन एवं कुंडली सूत्र दिखलाई पड़ते हैं जिन्हें क्रोमोनिमटा कहते हैं, प्रत्येक क्रोमोनेमा का एक अर्थ गुणसूत्र कहलाता है। इस प्रकार प्रत्यय गुणसूत्र दो क्रोमेटेड का बना होता है दोनों क्रोमेटेड एक निश्चित स्थान पर एक दूसरे से जुड़े होते हैं जिसे सेंट्रोमियर कहते हैं। कोशिका विज्ञान
गुणसूत्रों पर बहुत से जीन स्थित होते हैं जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक लक्षणों को हस्तांतरित करते हैं और हमारे अनुवांशिक गुणों के लिए उत्तरदाई होते हैं। क्योंकि यह जीन गुणसूत्रों पर स्थित होते हैं एवं गुणसूत्रों के माध्यम से ही पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होते हैं इसलिए गुणसूत्रों को वंशागति का वाहक कहा जाता है। क्रोमेटं इनके अलावा केंद्रक में एक सघन गोल रचनाएं दिखलाई पड़ते हैं इसे केंद्रका कहते हैं। इसमें राइबोसोम के लिए आर एन ए का संश्लेषण होता है। कोशिका विज्ञान
D.N.A एवं R.N.A की संरचना
डीएनए की अधिकांश मात्रा केंद्रक में होती है यद्यपि इसकी कुछ मात्रा माइट्रोकांड्रिया तथा हरित लवक में भी मिलती है डीएनए पॉलिन्यूक्लियोटाइड होते हैं। कोशिका विज्ञान
क्षार D.N.A में उपस्थित चार चार प्रकार के होते हैं–
- एडिनीन
- गुआनीन
- थायमिन
- साइटोंसीन
डीएनए में अणु संख्या के आधार पर एडीनीन वफाएं मिल के बीच दो हाइड्रोजन आबंध तथा साइटों से भगवान इनके बीच तीन हाइड्रोजन आबंध होते हैं।
1953 ईस्वी में जीडी वाटसन एवं क्रिक ने डीएनए की कुंडली संरचना मॉडल प्रतिपादन किया। इस काम के लिए उन्हें सन 1962 ईस्वी में नोबेल पुरस्कार मिला। कोशिका विज्ञान
D.N.A का कार्य
डीएनए से ही आर एन ए का संश्लेषण होता है इस क्रिया में डीएनए की एक श्रंखला पर आर एन ए की न्यूक्लियोटाइड आकर जुड़ जाती हैं इस प्रकार एक अस्थाई डी एन ए–आर एन ए शंकर का निर्माण होता है। इसमें नाइट्रोजन 20 थायमिन के स्थान पर यूरेसिल होता है। कुछ समय बाद R.N.A की समजात श्रंखला अलग हो जाती है। कोशिका विज्ञान
R.N.A तीन प्रकार के होते हैं
- r–R.N.A यह राइबोसोम पर लगे रहते हैं और प्रोटीन संश्लेषण में सहायता करते हैं।
- t–R.N.A यह प्रोटीन संश्लेषण में विभिन्न प्रकार के अमीनो अम्ल को राइबोसोम पर लाते हैं जहां पर प्रोटीन बनता है।
- m–R.N.A यह केंद्र के बाहर विभिन्न आदेश लेकर अमीनो अम्ल को चुनने में मदद करता है।
D.N.A एवं R.N.A में मुख्य अन्तर
क्र. | D.N.A | R.N.A |
1 | इसमें डीऑक्ससीडाइबोज शर्करा होती है। | इसमें राइबोज़ शर्करा होती है। |
2 | इसमें बेस एड़ीनीन, ग्वानीन, थायमिन एवं साइटोसीन होते हैं। | इसमें बेस थायमिन की जगह यूरेसिल आ जाता है। |
3 | यह मुख्यतः केन्द्रक में पाया जाता है। | यह केन्द्रक एवं कोशिका द्रव्य दोनों में पाया जाता है। |
पादप और जन्तु कोशिका में मुख्य अन्तर
क्र. | पादप कोशिका | जन्तु कोशिका |
1 | इसमें कोशिका भित्ति पायी जाती है। | इसमें कोशिका भित्ति अनुपस्थित होती है। |
2 | इसमें लवक पाया जाता है। | इसमें लवक अनुपस्थित होता है। |
3 | तारककाय अनुपस्तिथ रहता है। | तारककाय उपस्थित रहता है। |
4 | रिक्तिका बड़ी होती है। | रिक्तिका छोटी होती है। |
5 | इसका आकार लगभग आयताकार होता है। | इसका आकार लगभग वृताकार होता है। |
कोशिका विभाजन
कोशिका विभाजन को सर्वप्रथम अट्ठारह सौ 55 ईसवी में विरचाउ ने देखा। कोशिका का विभाजन मुख्यतः तीन प्रकार से होता है
- असूत्री विभाजन यह विभाजन अविकसित कोशिकाओं जैसे जीवाणु नील हरित शैवाल लिस्ट अमीबा तथा प्रोटोजोआ में होता है।
- समसूत्री विभाजन समसूत्री विभाजन की प्रक्रिया को जंतु कोशिका में सबसे पहले जर्मनी के जीव वैज्ञानिक वालसेर फ्लेमिंग ने 1879 ईस्वी में देखा। उन्होंने ही सन 18 सो 82 ईस्वी में इस प्रक्रिया को माइटोसिस नाम दिया। यह विभाजन का एक कोशिका में होता है। अध्ययन की सुविधा के लिए समसूत्री विभाजन को पांच चरणों में बैठते हैं जो निम्न प्रकार से हैं
- अंतरअवस्था
- पूर्व अवस्था
- मध्य अवस्था
- पश्चावस्था
- अंत्यावस्था
- अर्धसूत्री विभाजन फार्मर तथा मूरे ने कोशिकाओं में अर्धसूत्री विभाजन को मयोसिस नाम दिया। अर्धसूत्री विभाजन की खोज सर्वप्रथम बीजमेन ने की थी। लेकिन इसका सर्वप्रथम विस्तृत अध्ययन स्ट्रास बर्गर ने 1888 ईस्वी में किया। यह विभाजन जन्म कोशिकाओं में होता है। अर्धसूत्री कोशिका विभाजन निम्न दो चरणों में पूरा होता है
- अर्धसूत्री प्रथम इसमें गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है इसलिए इसे न्यूनकारी विभाजन भी कहते हैं। अर्धसूत्री प्रथम विभाजन में चार अवस्थाएं होती हैं
- प्रोफेज प्रथम
- मेटाफैज प्रथम
- एनाफेज प्रथम
- टेलोफेज प्रथम
- अर्धसूत्री द्वितीय
- अर्धसूत्री प्रथम इसमें गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है इसलिए इसे न्यूनकारी विभाजन भी कहते हैं। अर्धसूत्री प्रथम विभाजन में चार अवस्थाएं होती हैं
प्रोसेस प्रथम सबसे लंबी प्रावस्था होती है जो कि 5 उपअवस्थाओं में पूरी होती है–
- लेप्टोटीन गुणसूत्र उलझे हुए पतले धागों की तरह दिखाई पड़ते हैं इन्हें क्रोमो निमेटा कहते हैं गुणसूत्र की संख्या द्विगुणित होती है। कोशिका विज्ञान
- जायेगोटीन समजात गुणसूत्र एक साथ होकर जोड़े बनाते हैं इसे सिनेसिस कहते हैं सेंट्रियोल एक दूसरे के अलग होकर केंद्रक के विपरीत ध्रुवों पर चले जाते हैं तथा प्रोटीन एवं RNA संश्लेषण के फल स्वरुप केंद्रका बड़ी हो जाती है
- पेकीटिन प्रत्येक जोड़े के गुणसूत्र छोटे और मोटे हो जाते हैं। द्विज़ का प्रत्येक सदस्य अनुधैर्य रूप से विभाजित होकर दो अनुजात गुणसूत्रों या क्रोमेटिडो में बंट जाता है। इस प्रकार दो समजात गुणसूत्रों के एक द्विज से अव चार क्रोमेटेड बन जाते हैं। इसमें दो मातृ तथा 2 पितृ क्रोमेटिड होते है। कभी-कभी मातृ और पितृ क्रोमीटिड एक या ज्यादा स्थान पर एक दूसरे से क्रॉस करते हैं। ऐसे बिंदु पर मातृ तथा पितृ क्रोमेटिड टूट जाते हैं। और एक क्रोमेटिड का टुटा हुआ भाग दूसरे क्रोमेटिड के टूटे स्थान से जुड़ जाता है। इसे क्रॉसिंग ओवर कहते है एवं इस प्रकार के जीन का नए ढंग से वितरण होता है। अर्थात जीन विनमय पेकीटिन अवस्था में होता है। कोशिका विज्ञान
- डिप्लोटीन समजात गुणसूत्र अलग होने लगते है परन्तु जोड़े के दो सदस्य पूर्ण रूप से अलग नही हो पाते, कियोंकि ये कंही-कंही एक दूसरे से x के रूप में उलझे रहते है ऐसे स्थानों को काईएजमटा का अंतयीकरण कहते है।
- डायकनेसिस केन्द्रक कला एवं केन्द्रिका लुप्त हो जाती है अर्द्धसूत्री विभाजन-ii समसूत्री विभाजन के सामान होता है। अर्द्धसूत्री विभाजन में एक जनक कोशिका से चार संतति कोशिका का निर्माण होता है। कोशिका विज्ञान
समसूत्री एवं अर्द्धसूत्री विभाजन में अंतर
क्र | समसूत्री विभाजन | अर्द्धसूत्री विभाजन |
1 | यह विभाजन कायिक कोशिका में होता है। | यह विभाजन जनन कोशिकाओं में होता है। |
2 | इस विभाजन में कम समय लगता है। | इस विभाजन में अधिक समय लगता है। |
3 | इस विभाजन के द्वारा एक कोशिका से दो कोशिकाएं बनती है। | इस विभाजन में एक कोशिका से चार कोशिकाओं का निर्माण होता है। |
4 | सन्तति कोशिका में जनक जैसी ही गुणसूत्र होने के कारण अनुवांशिक विविधता नहीं होती। | सन्तति कोशिका में जनकों से भिन्न गुणसूत्र होने के कारण अनुवांशिक विविधता होती है। |
5 | इसमें गुणसूत्रों के अनुवांशिक पदार्थ में आदान प्रदान नहीं होता है। | इस विभाजन में गुणसूत्रों के बीच आनुवंशिक पदार्थ का आदान-प्रदान होता है। |
6 | इसकी प्रोफेज अवस्था छोटी होती है। | इसकी प्रोफेज अवस्था लम्बी होती है। |
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