मौलिक अधिकार क्या है ? PDF
मौलिक अधिकार भारतीय संविधान में संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है। इसका वर्णन संविधान के भाग तीन में अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 तक किया गया है। संविधान के भाग 3 को भारत का अधिकार पत्र कहा जाता है इसे मूल अधिकारों का जन्मदाता भी कहा जाता है।
अधिकार किसी भी देश की जनता का हक़ होता है जो उसे उस देश की संसद द्वारा संविधान के माध्यम से दिया जाता हैं इन्ही अधिकारों को मौलिक अधिकार भी कहा जाता है। यह जनता को जीवन जीने की एक नई किरण वह भी अधिक स्वतंत्रता और भय मुक्तता के साथ प्रदान करता है।
मौलिक अधिकार क्या है
मौलिक अधिकार उन्हें कहा जाता है जो लोगों को उनके मूल हितों को ध्यान में रखते हुए उस देश के संविधान द्वारा दिया जाता है। जिसके कारन लोग अपने हितों के हनन के विरुद्ध किसी भी न्यायलय में अपील कर सकता है। तथा अपने मौलिक अधिकार का हवाला देकर न्याय की मांग कर सकता है। इन मौलिक अधिकारों की वजह से लोगो को अधिक स्वतंत्रता के साथ जीवन जीने की एक नई राह मिल जाती है।

मौलिक अधिकारों में संशोधन हो सकता है एवं राष्ट्रीय आपात के दौरान जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को छोड़कर अन्य मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है। यह असीमित नहीं है लेकिन वाद योग्य होते हैं राज्य उन पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगा सकता है प्रतिबंध का कारण उचित है या नहीं इसका निर्णय अदालत करती है। मौलिक अधिकार pdf
मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए व्यक्ति उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय के तहत जा सकता है। व्यक्ति सीधे उच्चतम न्यायालय भी जा सकता है यह आवश्यक नहीं है कि केवल उच्च न्यायालय के खिलाफ ही वहां अपील को लेकर जाया जाए।
मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकार थे लेकिन 44 से संविधान संशोधन के द्वारा संपत्ति का अधिकार को मौलिक अधिकार की सूची से हटा कर इसे संविधान के भाग 12वीं में अनुच्छेद 300क के अंतर्गत कानूनी अधिकार के रूप में रखा गया है।
Note- 1931 ईस्वी में कराची अधिवेशन के अध्यक्ष सरदार वल्लभभाई पटेल की अध्यक्षता में कांग्रेस ने घोषणा पत्र में मूल अधिकारों की मांग की। मूल अधिकारों का दारू जवाहरलाल नेहरू ने बनाया था।
1 | समता या समानता का अधिकार | अनुच्छेद – 14 से 18 |
2 | स्वतंत्रता का अधिकार | अनुच्छेद – 19 से 22 |
3 | शोषण के विरुद्ध अधिकार | अनुच्छेद – 23 से 24 |
4 | धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार | अनुच्छेद – 25 से 28 |
5 | संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार | अनुच्छेद – 29 से 30 |
6 | संविधानिक उपचारों का अधिकार | अनुच्छेद – 32 |
6 मौलिक अधिकार कौन-कौन से हैं

जैसा कि आपको अभी पता चल ही गया होगा कि मौलिक अधिकार जो भारत की संसद द्वारा भारतीय संविधान के तहत भारत के नागरिकों को दिए गए है उनकी संख्या 6 है। इनके बारे में हम आपके लिए विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराएँगे। हमारा संविधान हमे यह अधिकार देता तथा हम इन अधिकारों का हनन होने पर किसी भी व्यक्ति विशेष के ऊपर केश भी कर सकते है। अभी आपको यही भी जानना होगा कि 6 मौलिक अधिकार कौन-कौन से हैं तो हम नीचे एक- एक करके सभी अधिकारों के बारे में चर्चा करने वाले हैं। मौलिक अधिकार pdf
मौलिक अधिकार हमें देश के अंदर हमारी ही शक्ति को हमें याद कराने का कार्य करते है। भारत में बहुत सारे लोग आपको अभी भी ऐसे मिल ही जायेंगे कि उन्हें मौलिक अधिकार के बारे में ज्ञान की बहुत अधिक मात्रा में कमी होगी जिसकी वजह से वे सभी लोग अपने मौलिक अधिकार का हनन होने देते है। उसके विरुद्ध कोई भी कदम नहीं उठाते है। इसी लिए सभी लोगो को मौलिक अधिकार के विषय में ज्ञान होना अति आवश्यक है।
समता या समानता का अधिकार।
अनुच्छेद 14 विधि के समक्ष समता इसका अर्थ यह है कि राज्य सभी व्यक्तियों के लिए एक समान कानून बनाएगा तथा उन पर एक समान लागू करेगा। यहां पर किसी भी व्यक्ति को धन्य कानूनों के समक्ष नहीं रखा जाएगा अर्थात सभी के लिए एक समान कानून की व्यवस्था की जाएगी।

अनुच्छेद 15 धर्म नस्ल जाति लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध राज्य के द्वारा धर्म मूल वंश जाति लिंग एवं जन्म स्थान आदि के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी भी क्षेत्र में भेदभाव नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद 16 लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी। अपवाद–अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवम पिछड़ा वर्ग।
अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता का अंत अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिए इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है।
अनुच्छेद 18 उपाधियों का अंत सेना या विधा संबंधी सम्मान के सिवाय अन्य कोई भी उपाधि राज्य द्वारा प्रदान नहीं की जाएगी भारत का कोई नागरिक किसी अन्य देश से बिना राष्ट्रपति की आज्ञा के कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता है।
Note- भारत सरकार द्वारा भारत रत्न पदम विभूषण पदम भूषण पदम श्री एवं सेना द्वारा परमवीर चक्र महावीर चक्र वीर चक्र पुरस्कार अनुच्छेद 18 के तहत ही दिए जाते हैं।
स्वतंत्रता का अधिकार
अनुच्छेद 19 मूल संविधान में 7 तरह की स्वतंत्रता का उल्लेख था अब सिर्फ छह है संपत्ति का अधिकार 44 वें संविधान संशोधन 1978 के द्वारा हटा दिया गया।
1 | अनुच्छेद – 19 (a) | बोलने की स्वतंत्रता। |
2 | अनुच्छेद – 19 (b) | शान्तिपूर्वक बिना हथियारों के एकत्रित होने और सभा करने की स्वतंत्रता। |
3 | अनुच्छेद – 19 (c) | संघ बनाने की स्वतंत्रता। |
4 | अनुच्छेद – 19 (d) | देश के किसी भी क्षेत्र में आवागमन की स्वतंत्रता। |
5 | अनुच्छेद – 19 (e) | देश के किसी भी क्षेत्र में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता। |
6 | अनुच्छेद – 19 (g) | कोई भी व्यापर एवं जीविका चलाने की स्वतंत्रता। |
अनुच्छेद 20 अपराधों के लिए दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण इसके तहत तीन प्रकार की स्वतंत्रता का वर्णन है–
- किसी भी व्यक्ति को एक अपराध के लिए सिर्फ एक बार सजा मिलेगी।
- अपराध करने के समय जो कानून है उसी के तहत सजा मिलेगी ना के पहले और बाद में बनने वाले कानून के तहत।
- किसी भी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध न्यायालय में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद 21 प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और व्यक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।
नोट–अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक सरकार का दायित्व बनता है कि वह अपने नागरिकों को स्वस्थ एवं स्वच्छ पर्यावरण उपलब्ध कराएं। इसके लिए भारत सरकार ने संसद से राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम 2010 पारित कराया अक्टूबर 2010 में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की स्थापना की गई। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की मुख्य पीठ नई दिल्ली में है जबकि चार अन्य पीठ हैं भोपाल पुणे कोलकाता एवं चेन्नई में है। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण देश में पर्यावरण से संबंधित मामलों के लिए उत्तरदाई है।
अनुच्छेद 21 क राज्य 6 से 14 वर्ष के आयु के समस्त बच्चों को ऐसे ढंग से जैसा के राज्य विधि द्वारा अवधारणा करें निशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध करेगा।
अनुच्छेद 22 कुछ दशकों में गिरफ्तारी और निरोध में संरक्षण अगर किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से रासत में लिया गया हो तो उसे तीन प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान की गई है
- हिरासत में लेने का कारण बताना होगा।
- 24 घंटे के अंदर आने-जाने के समय को छोड़कर उससे दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया जाएगा।
- उसे अपने पसंद के वकील से सलाह लेने का अधिकार होगा।

निवारक निरोध भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 के खंड 3 4 5 तथा 6 में ततसंबंधी प्रावधानों का उल्लेख है। निवारक निरोध कानून के अंतर्गत किसी व्यक्ति को अपराध करने के पूर्व ही गिरफ्तार किया जाता है। निवारक निरोध का उद्देश्य व्यक्ति को अपराध के लिए दंड देना नहीं वरन उसे अपराध करने से रोकना है। वस्तुतः यह निवारक निरोध राज्य की सुरक्षा लोक व्यवस्था बनाए रखने या भारत की सुरक्षा संबंधी कारणों से हो सकता है जब किसी व्यक्ति को निवारक निरोध की किसी विधि के अधीन गिरफ्तार किया जाता है तब–
- सरकार ऐसे व्यक्ति को केवल 3 महीने तक अभिरक्षा में निरुद्ध कर सकती है। यदि गिरफ्तार व्यक्ति को 3 माह से अधिक समय के लिए विरोध करना होता है तो उसके लिए सलाहकार बोर्ड का प्रतिवेदन प्राप्त करना पड़ता है।
- इस प्रकार निरुद्ध व्यक्ति को यथाशीघ्र निरोध के आधार पर सूचित किए जाएंगे किंतु जिन तथ्यों को निरस्त करना लोकहित के विरुद्ध समझा जाएगा उन्हें प्रकट करना आवश्यक नहीं है।
- विरुद्ध व्यक्ति को निरोध आदेश के विरुद्ध अभ्यावेदन करने के लिए शीघ्र अतिशीघ्र अवसर दिया जाना चाहिए।
निवारक निरोध से संबंधित अब तक बनाई गई विधियां
- निवारक निरोध अधिनियम 1950 भारत की संसद ने 26 फरवरी 1950 ईस्वी को पहला निवारक निरोध अधिनियम पारित किया था। इसका उद्देश्य राष्ट्र विरोधी तत्वों को भारत की प्रतिरक्षा के प्रतिकूल कार्य से रोकना था। इसे 1 अप्रैल 1951 ईस्वी को समाप्त हो जाना था किंतु समय समय पर इसका जीवनकाल बढ़ाया जाता रहा। अंततः यह 31 दिसंबर 1971 ईस्वी को समाप्त हुआ।
- आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम 1971 44 वें संविधान संशोधन 1979 इसके प्रतिकूल था और इस कारण अप्रैल 1979 ईस्वी में यह समाप्त हो गया।
- विदेशी मुद्रा संरक्षण एवं तस्करी निरोधक अधिनियम 1974 पहले इसमें तस्करों के लिए नजरबंदी की अवधि 1 वर्ष थी जिसे 13 जुलाई 1984 को एक अध्यादेश के द्वारा बढ़ाकर 2 वर्ष कर दिया गया है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा कानून 1980 जम्मू कश्मीर के अतिरिक्त अन्य सभी राज्यों में लागू किया गया।
- आतंकवादी एवं विश्व सनकारी गतिविधियां निरोधक कानून निवारक निरोध व्यवस्था के अंतर्गत अब तक जो कानून बने उनमें यह सबसे अधिक प्रभावी और सर्वाधिक कठोर कानून था। 23 मई 1995 ईस्वी को ऐसे समाप्त कर दिया गया।
- पोटो इसे 25 अक्टूबर 2001 को लागू किया गया। पोटो टाटा का ही एक रूप है। इसके अंतर्गत कुल 23 आतंकवादी गुटों को प्रतिबंधित किया गया है। आतंकवादी और आतंकवादियों से संबंधित सूचना को छिपाने वालों को भी दंडित करने का प्रावधान किया गया है। पुलिस शक के आधार पर किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है किंतु बिना आरोप पत्र के 3 माह से अधिक हिरासत में नहीं रख सकती। पोटा के अंतर्गत गिरफ्तार व्यक्ति हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है लेकिन यह अपील भी गिरफ्तारी के 3 माह बाद ही हो सकती है। पोटो 28 मार्च 2002 को अधिनियम बनने के बाद पोटा हो गया। 21 सितंबर 2004 को इसको अध्यादेश के द्वारा समाप्त कर दिया गया।
शोषण के विरुद्ध अधिकार
अनुच्छेद 23 मानव के दुर्ग व्यापार और बलात श्रम का प्रतिशेध इसके द्वारा किसी व्यक्ति की खरीद बिक्री बेगारी तथा इसी प्रकार का अन्य जबरदस्ती लिया हुआ श्रम निषेध ठहराया गया है जिस का उल्लंघन विधि के अनुसार दंडनीय अपराध है
Note–जरूरत पड़ने पर राष्ट्रीय सेवा करने के लिए बाध्य किया जा सकता है। मौलिक अधिकार pdf
अनुच्छेद 24 बालकों के नियोजन का प्रशिक्षण 14 वर्ष से कम आयु वाले किसी बच्चे को कारखानों खाना या अन्य किसी जोखिम भरे काम पर नहीं किया जा सकता।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
अनुच्छेद 25 अंतरण की ओर धर्म के अवैध रूप से मानने आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को मान सकता है और उसका प्रचार प्रसार कर सकता है।
अनुच्छेद 26 धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता व्यक्ति को अपने धर्म के लिए संस्थाओं की स्थापना व पोषण करने विधि सम्मत संपत्ति के स्वामित्व का प्रशासन का अधिकार है
अनुच्छेद 27 राज्य किसी भी व्यक्ति को ऐसे कर देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है जिसकी आए किसी विशेष धर्म अथवा धार्मिक संप्रदाय की उन्नति या पोषण में वह करने के लिए विशेष रूप से निश्चित कर दी गई है।
अनुच्छेद 28 राज्य विधि से पूर्णता पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी ऐसे शिक्षण संस्थान अपने विद्यार्थियों को किसी धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने या किसी धर्म उपदेश को बलात सुनने हेतु बाध्य नहीं कर सकते। मौलिक अधिकार
संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार
अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी भाषा लिपि और संस्कृति को सुरक्षित रख सकता है और केवल भाषा जाति धर्म और संस्कृति के आधार पर उसे किसी भी सरकारी शैक्षिक संस्था में प्रवेश से नहीं रोका जाएगा।
Note–वर्तमान में 6 समुदायों मुस्लिम पारसी ईसाई सिख बौद्ध एवं जैन को अल्पसंख्यक वर्ग का दर्जा प्रदान किया गया है अल्पसंख्यक समुदाय के विकास और समुचित आधार प्रदान करने के लिए 2005 में तत्कालीन केंद्र सरकार के द्वारा प्रधानमंत्री का 15 सूत्रीय कार्यक्रम प्रारंभ किया गया।
अनुच्छेद 30 शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी पसंद का शैक्षणिक संस्था चला सकता है और सरकार उसे अनुदान देने में किसी भी तरह की भेदभाव नहीं करेगी।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार

संवैधानिक उपचारों के अधिकार को डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने संविधान की आत्मा कहा है।
अनुच्छेद 32 इसके अंतर्गत मौलिक अधिकारों को प्रवर्तन कराने के लिए समुचित कार्यवाही ओं द्वारा उच्चतम न्यायालय में आवेदन करने का अधिकार प्रदान किया गया है। इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय को 5 तरह की समादेश निकालने की शक्ति प्रदान की गई है।
- बंदी प्रत्यक्षीकरण यह उस व्यक्ति की प्रार्थना पर जारी किया जाता है जो यह समझता है कि उसे अवैध रूप से बंदी बनाया गया है। उसके द्वारा न्यायालय वंदीकरण करने वाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बंदी बनाए गए व्यक्ति को निश्चित स्थान और निश्चित समय के अंदर उपस्थित करें जिससे न्यायालय बंदी बनाए जाने के कारणों पर विचार कर सके।
- परमादेश परमादेश का लेख उस समय जारी किया जाता है जब कोई पदाधिकारी अपने सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वाह नहीं करता है। इस प्रकार की आज्ञा पत्र के आधार पर पदाधिकारी को उसके कर्तव्य का पालन करने का आदेश जारी किया जाता है।
- प्रतिषेध लेख यह आज्ञा पत्र सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय द्वारा निम्न न्यायालयों व अर्ध न्यायिक न्यायाधिकरण को जारी करते हुए आदेश दिया जाता है कि इस मामले में अपने यहां कार्यवाही न करें क्योंकि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है।
- उत्प्रेषण इसके द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों को यह निर्देश दिया जाता है कि वे अपने पास लंबित मुकदमों के न्याय निर्णयन के लिए उसे वरिष्ठ न्यायालय को भेजें।
- अधिकार प्रेक्छा लेख जब कोई व्यक्ति ऐसे पदाधिकारी के रूप में कार्य करने लगता है जिस के रूप में कार्य करने का उसे वैधानिक रूप से अधिकार नहीं है तो न्यायालय अधिकार प्रछा के आदेश के द्वारा उस व्यक्ति से पूछता है कि वह किस अधिकार से कार्य कर रहा है और जब तक वह इस बात का संतोषजनक उत्तर नहीं देता वह कार्य नहीं कर सकता। मौलिक अधिकार pdf
मौलिक अधिकार में संशोधन
- गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य 1967 ईस्वी के निर्णय से पूर्व दिए गए निर्णय में यह निर्धारित किया गया था कि संविधान के किसी भी भाग में संशोधन किया जा सकता है जिसमें अनुच्छेद 368 एवं मूल अधिकार को शामिल किया गया था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य वाद 1967 ईस्वी के निर्णय में अनुच्छेद 368 में निर्धारित प्रक्रिया के माध्यम से मूल अधिकारों में संशोधन पर रोक लगा दी अर्थात संसद मूल अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती है।
- 24 वें संविधान संशोधन 1971 ईस्वी द्वारा अनुच्छेद 13 और 368 में संशोधन किया गया तथा यह निर्धारित किया गया के अनुच्छेद 368 में दी गई प्रक्रिया द्वारा मूल अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है।
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य बाद के निर्णय में यह इस प्रकार के संशोधन को विधि मान्यता प्रदान की गई अर्थात गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य के निर्णय को निरस्त कर दिया गया।
- 42 वें संविधान संशोधन 1976 ईस्वी द्वारा अनुच्छेद 368 में खंड 4 और 5 जोड़े गए तथा यह व्यवस्था की गई थी इस प्रकार किए गए संशोधन को किसी न्यायालय में प्रश्न गत नहीं किया जा सकता है।
- मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ 1980 के निर्णय के द्वारा यह निर्धारित किया गया कि संविधान के आधारभूत लक्षणों की रक्षा करने का अधिकार न्यायालय को है और न्यायालय इस आधार पर किसी भी संशोधन का पुनरावलोकन कर सकता है। इसके द्वारा 42 वें संविधान संशोधन द्वारा की गई व्यवस्था को भी समाप्त कर दिया गया। मौलिक अधिकार pdf
यह भी पढ़े – भारतीय संविधान की अनुसूची।भारतीय संविधान।