आन का मान नाटक का सारांश 2022-2023
साहित्य का हरि कृष्ण प्रेमी द्वारा रचित आन का मान नाटक मुगल कालीन भारत के इतिहास पर आधारित है जिसमें राजपूत सरदार दुर्गादास की स्वभाविक वीरता कर्तव्य परायणता आदि को चित्रित कर उसके व्यक्तित्व की महानता दर्शाई गई है इस नाटक के माध्यम से नाटककार ने मानवीय गुणों को रेखांकित किया है तथा हिंदू मुस्लिम एकता यानी संप्रदायिक सौहार्द के संदेश को प्रसारित करने की सफल कोशिश की है।
आन का मान नाटक में वीर दुर्गादास जहां भारतीय हिंदू संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं वहीं उनके समांतर मुगल सत्ता को रखा गया है इस नाटक का मूल उद्देश्य भारतीय युवकों एवं नागरिकों में स्वदेश के प्रति गहन अपनत्व की भावना का प्रसार करना राष्ट्रीय एकता धार्मिक सहिष्णुता विश्व बंधुत्व सत्यता नैतिकता जैसे मानवीय भावनाओं का चित्रण कर समाज में उनकी स्थापना की प्रेरणा देना है। नारी के सम्मान की रक्षा मित्र के प्रति अपनी वचनबद्धता का निर्वाह कर्तव्य भावना को सर्वोपरि महत्व देना राजपूत जाति के प्रति गौरव की भावना का प्रदर्शन करना आदि उदाहरण आन का मान नाटक की सार्थकता को सिद्ध करते हैं।
आन का मान नाटक की कथावस्तु
मुगल कालीन भारत के इतिहास पर आधारित एवं श्री कृष्ण प्रेमी द्वारा लिखित आन का मान नाटक में राजपूत सरदार वीर दुर्गादास राठौर की स्वभाविक वीरता कर्तव्य परायणता राष्ट्रीयता मानवता आदि गुणों को चित्रित कर उनके व्यक्तित्व की महानता दर्शाई गई है यह नाटक 3 अंकों में विभाजित है तथा नाटक की कथावस्तु आपको 3 अंकों में बारी-बारी से पढ़ कर पता लग जाएगी जो कि निम्नलिखित दिए गए हैं। आन का मान नाटक का सारांश
आन का मान नाटक के प्रथम अंक का सारांश।
श्री हरि कृष्ण प्रेमी द्वारा रचित आन का मान नाटक का आरंभ रेगिस्तान के एक रेतीले मैदान से होता है। इस समय भारत की राजनीतिक सत्ता मुख्यतः मुगल शासक औरंगजेब के हाथों में थी और जोधपुर में महाराज जसवंत सिंह का राज्य था। वीर दुर्गादास राठौर महाराजा जसवंत सिंह का ही कर्तव्यनिष्ठ सेवक है और महाराजा की मृत्यु हो जाने के बाद वहां उनके अवयस्क पुत्र अजीत सिंह के संरक्षक की भूमिका निभाता है। अपने पिता औरंगजेब की अनेक नीतियों का विरोध करते हुए उसका पुत्र अकबर द्वितीय औरंगजेब से अलग हो जाता है और उसकी मित्रता दुर्गादास राठौर से हो जाती है।
आन का मान नाटक में औरंगजेब की एक चाल से अकबर द्वितीय को ईरान चले जाना पड़ा। अपनी मित्रता निभाते हुए अकबर द्वितीय की संतानों सफियत एवं बुलंद स्तर के पालन पोषण का दायित्व दुर्गादास ने अपने ऊपर ले लिया। समय के साथ साथ सभी युवा होते हैं और राजकुमार अजीत सिंह सफीयातुन्निसा पर आसक्त हो जाता है।
सफियत के डालने के बावजूद भी अजीत सिंह में उसके प्रति प्रेम की भावना अधिक बढ़ जाती है जिसके कारण दुर्गादास नाराज हो जाते हैं। दुर्गा दास द्वारा राजपूत एवं मान का ध्यान दिलाने पर अजीत सिंह अपनी गलती मान कर क्षमा मांग लेता है। युद्ध की तैयारियां प्रारंभ हो जाती है।
औरंगजेब की संधि प्रस्ताव को लेकर ईश्वरदास आता है। मुगल सूबेदार सुजात खान द्वारा सादे वेश में प्रवेश करने के बावजूद अजीत सिंह उस पर प्रहार करता है परंतु राजपूती परंपरा का निर्वाह करते हुए निशक्त व्यक्ति पर प्रहार होने से दुर्गादास बचा लेता है। अतः यही नाटक के प्रथम अंक की कहानी का समापन हो जाता है। आन का मान नाटक का सारांश
आन का मान नाटक के द्वितीय अंक का सारांश।
आन का मान नाटक के सर्वाधिक मार्मिक स्थलों से संबंधित दूसरे अंक की कथा भीम नदी के तट पर स्थित ब्रह्मपुरी से प्रारंभ होती है। ब्रम्हपुरी का नाम औरंगजेब ने इस्लाम पुरी रख दिया है। औरंगजेब की दो पुत्रियों मेहरून्निसा एवं जीनत निशा में से मैहर निशा हिंदुओं पर औरंगजेब द्वारा बनाए जाने वाले अत्याचारों का विरोध करती है जबकि जीनत अनुषा अपने पिता की नीतियों का समर्थन करती है।
अपनी दोनों पुत्रियों की बात सुनकर औरंगजेब मेहर रमसा द्वारा रेखांकित किए गए अत्याचारों को अपनी भूल मानकर पश्चाताप करता है। वह अपने बेटों कोशिश कर अकबर द्वितीय के प्रति की जाने वाली कठोरता के लिए भी दुखी होता है। आन का मान नाटक का सारांश
उसके अंदर अकबर द्वितीय की संतानों यानी अपने पुत्र पुत्री क्रमशः बुलंद एवं सफियत के प्रति स्नेह और बढ़ जाता है। औरंगजेब अपनी वसीयत में अपने पुत्रों को जनता से उधार व्यवहार के लिए परामर्श देता है। वह अपनी मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार को सादगी से करने के लिए कहता है। वसीयत लिखे जाने के समय ही ईश्वरदास वीर दुर्गादास राठौर को बंदी बना कर लाता है।
औरंगजेब अपने पुत्र पुत्री यानी बुलंद एवं सफियत को पाने के लिए दुर्गादास से सौदेबाजी करना चाहता है लेकिन दुर्गादास इसके लिए राजी नहीं होता है।
आन का मान नाटक के तृतीय अंक की कथावस्तु।
आन का मान नाटक के तृतीय अंक की कथा सफियत के गान के साथ प्रारंभ होती है और उसी समय अजीत सिंह वहां पहुंच जाता है। वहां सफियत को अपना जीवनसाथी बनाने का इच्छुक है लेकिन सफियत स्वयं को विधवा कहकर अजीत सिंह के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करती। अजीत सिंह द्वारा अनेक तर्क देने के बावजूद सफियत अजीत सिंह को लोक हित हेतु सहित को त्यागने का सुझाव देती है। वह वहां से जाना चाहती है लेकिन प्रेम के उद्वेग में बहता अजीत सिंह उसे अपने पास बिठा लेता है। आन का मान नाटक का सारांश
बुलंद अख्तर के आने से सफियत सकुचा जाती है तथा अपने भाई से अजीत सिंह के प्रेम एवं विवाह की इच्छा की बात बताती है। बुलंद इसका विरोध करता है और फिर वहां से चला जाता है। इसी समय दुर्गादास का प्रवेश होता है और वह इन सब बातों को सुनकर औरंगजेब के संदेह को उचित मानता है। दुर्गादास के विरोध को भी परवाह न करते हुए अजीत सिंह सफियत को साथ चलने के लिए कहता है यह देखकर सफियत के सम्मान की रक्षा हेतु दुर्गादास तैयार हो जाता है।
तभी मेवाड़ से अजीत सिंह का टीका आता है जिसे वह दुर्गादास की चाल समझता है। दुर्गादास पालकी मंगवा कर सफियत को बैठाकर चलने के लिए तैयार होता है तो अजीत सिंह पाल की रोकने की कोशिश करते हुए दुर्गादास को चेतावनी देता है।
“दुर्गा दास जी! मारवाड़ में आप रहेंगे या मैं रहूंगा।”
दुर्गादास सधे हुए शब्दों में कहता है – “आप ही रहेंगे महाराज! दुर्गादास तो सेवक मात्र है–उसने चाकरी निभा दी।”
ऐसा कहकर दुर्गादास जन्मभूमि को अंतिम बार प्रणाम करता है और यहीं पर नाटक की कथा समाप्त हो जाती है।
आन का मान नाटक के आधार पर प्रमुख पात्र दुर्गादास का चरित्र चित्रण।
आन का मान नाटक का नायक वीर दुर्गादास राठौर है। वह मानवीय गुणों से युक्त वीर पुरुष है। उसकी चारित्रिक विशेषताएं निम्नलिखित है –
- राजपूती शान दुर्गादास पूरे नाटक में राजपूती शान के साथ मौजूद है। वह न तो किसी से डरता है और न ही किसी के सामने झुकता है। वह निर्भीक होकर अपनी परंपरा के अनुरूप ही राजपूती शान के साथ लोगों से अंतः क्रिया करता है चाहे वह कोई सम्राट हो या कोई अत्यंत सामान्य व्यक्ति।
- स्वामी भक्ति राजपूती शान के अनुरूप वह अत्यंत निर्भीक है लेकिन इस निर्भीकता के साथ साथ वह अपने स्वामी के प्रति अत्यंत उदारवादी और उत्तरदाई है। वह अपने कर्तव्य को अच्छी तरह निभाता है और अपने स्वामी के प्रति एक निष्ठा समर्पित भाव रखता है।
- निर्भीकता स्वामी के प्रति अपनी एक निष्ठा रखते हुए भी वह स्वामी से भयभीत नहीं रहता है। वह उचित को उचित एवं अनुचित को अनुचित ही बताता है। वह भारत के तत्कालीन सम्राट औरंगजेब की बातों को भी नहीं मानता क्योंकि वे उसे उचित प्रतीत नहीं होती हैं।
- मानवतावादी दृष्टिकोण दुर्गादास का चरित्र मानवीय गुणों से परिपूर्ण है वह मानवता के विरुद्ध किसी भी सिद्धांत को आदर्श नहीं मानता। अकबर द्वितीय के मुसलमान होने के बावजूद उसे न केवल वहां अपना मित्र बनाता है बल्कि उसकी बेटी सफियत के सम्मान की रक्षा के लिए वह अपने प्राणों की भी परवाह नहीं करता। उसके मानवतावादी दृष्टिकोण में ही हिंदू मुस्लिम समन्वय की भावना भी निहित है।
- राष्ट्रीयता की भावना दुर्गादास में राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है। वहां एक आदर्श भारतीय समाज का निर्माण करना चाहता है जिसमें भाईचारा एवं प्रेम का अत्यधिक महत्व हो। वह कहता है–आज का सबसे बड़ा पाप है आपस की फूट… क्योंकि हमारे जीवन में नैतिकता नहीं है ईमानदारी नहीं है सच्ची वीरता नहीं है मानवता नहीं है।
- कर्तव्य परायणता अपने कर्तव्य के प्रति अधिक संवेदनशील रहने वाला दुर्गादास अपने कर्तव्यों का पालन अपने प्राणों की बाजी लगाकर भी करता है।
- सच्ची मित्रता दुर्गादास में सच्ची मित्रता को निभाना तथा ईमानदारी एवं सच्चाई के साथ मित्रता की रक्षा हेतु अपने दायित्व को पूरा करने की भावना भरी हुई है। दुर्गादास का अपने मित्र अकबर द्वितीय के प्रति किया जाने वाला व्यवहार इसका प्रमाण है। वहां सफियत एवं बुलंद अख्तर को अपने मित्र की पवित्र धरोहर मानता है।
इस तरह दुर्गादास की चारित्रिक विशेषताओं के आधार पर कहा जा सकता है कि वह एक और तलवार का धनी था तो दूसरी और उच्च स्तर का मनुष्य भी था। आन का मान नाटक का सारांश
आन का मान नाटक की नायिका का चरित्र चित्रण।
श्री हरि कृष्ण प्रेमी द्वारा रचित आन का मान नाटक की प्रमुख नारी पात्र है सफियत। जहां औरंगजेब के पुत्र अकबर द्वितीय की पुत्री है। उसके चरित्र की विशेषताएं निम्नलिखित है–
- अत्यंत रूपवती उसकी की आयु 17 वर्ष है। वह अत्यंत रूपवती है तथा वह इतनी सुंदर है कि नाटक के सभी पात्र उसकी सुंदरता पर मुग्ध है।
- संगीत में रुचि उच्च कोटि की संगीत शादी का है। उसे संगीत में अत्यधिक रुचि है उसका मधुर स्वर लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है।
- वाकपटु वह अत्यंत वाकपटु है वह विभिन्न परिस्थितियों में अपनी वाकपटुता का प्रदर्शन करती है उसके व्यंग पूर्ण कथन तर्क की कसौटी पर खरे उतरते हैं उसके कथन मर्म बेदी भी है
- शांतिप्रिय एवं हिंसा विरोधी वह शांतिप्रिय है वह चाहती है कि देश में सर्वत्र शांतिपूर्ण वातावरण हो सभी देशवासी सुखी और संबंध हो देश में हिंसा पूर्ण कार्यों का वह प्रबल विरोध करती है।
- देश प्रेमी वह अपने देश से अत्यंत प्रेम करती है वह त्याग और बलिदान की भावना से ओतप्रोत है देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए वहां उधर नजर आती है।
- आदर्श प्रेमी का वह जोधपुर के युवा शासक अजीत सिंह से प्रेम करती है। वह प्रत्येक परिस्थिति में अपना संतुलन बनाए रखती है। अजीत सिंह के बार-बार प्रेम निवेदन करने पर भी वह विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार कर देती है। अजीत सिंह को भी धीरज बनाती है और उसे लोकहित के लिए आत्महत्या करने का परामर्श देती है वह कहती है महाराज प्रेम केवल भोग की ही मांग नहीं करता वहां त्याग और बलिदान भी चाहता है। आन का मान नाटक का सारांश
इस प्रकार वह आदर्श नारी पात्र है वह अजीत सिंह से प्रेम करती है परंतु राज्य व अजीत सिंह के कल्याण के लिए विवाह के लिए तत्पर दिखाई नहीं देती।
आन का मान नाटक के आधार पर औरंगजेब का चरित्र चित्रण।
आन का मान नाटक में औरंगजेब के चरित्र को एक खलनायक के रूप में चित्रित किया गया है। धार्मिक दृष्टि से कट्टर मुस्लिम मुगल शासक औरंगजेब इस्लाम के अतिरिक्त अन्य धर्मों के प्रति अत्यंत संकीर्ण दृष्टिकोण रखता है।
उसकी चारित्रिक विशेषताएं निम्नलिखित हैं–
- कट्टरता एवं संकीर्णता औरंगजेब धर्मांधता के वशीभूत होकर मात्र इस्लाम धर्म को ही मानव के लिए श्रेष्ठ समझता है तथा अन्य सभी धर्म उसकी दृष्टि में व्यर्थ है वह अपनी संकीर्ण धार्मिक विचारधारा से कभी मुक्त नहीं हो पाता है।
- निर्दई सत्ता के लोग में अंधा औरंगजेब सत्ता प्राप्ति के लिए अपने बड़े भाइयों की हत्या तक कर देता है तथा अपने पिता पुत्र एवं पुत्री को कैद में डाल देता है।
- सादा जीवन यह औरंगजेब के चरित्र का एक उज्जवल पक्ष है सत्ता में रहने के बावजूद वह सुरासुंदरी से दूर रहता है तथा अपने व्यक्तिगत खर्च के लिए भी वह अपनी मेहनत से कमाई करता है। विलासिता पूर्ण जीवन से वहां कोसों दूर है तथा सरकारी खजाने पर व्यक्तिगत अधिकार नहीं समझता है।
- आत्मग्लानि समय बीतने पर वृद्धावस्था में वह अपने अंदर संस्कृतियों एवं अत्याचारों के प्रति ग्लानि महसूस करता है। अपने द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों से वह स्वयं ही दुखी होता है। वह खुद कहता है–हां थक गए हैं बेटी सिर काटते काटते।
- संतान के प्रति असीम स्नेह वृद्धावस्था में वह भावात्मक रूप से अत्यंत कमजोर हो जाता है तथा अपने जीवन में तलवार के बल पर सभी जगह शासन एवं अत्याचार करने वाला औरंगजेब वृद्धावस्था में अपनी संतानों के प्रति स्नेह से भर जाता है। वह अपने पुत्र अकबर द्वितीय को गले लगाना चाहता है। अपनी वसीयत में वह अपने पुत्रों से क्षमा करने के लिए लिखता है। आन का मान नाटक का सारांश
इस प्रकार कहा जा सकता है कि एक कठोर अन्याय क्रूज कट्टर धार्मिक एवं हिंदू धर्म विरोधी शासक औरंगजेब के चरित्र में वृद्धावस्था में परिवर्तन आता है जिस परिवर्तन का कोई लाभ तक नहीं होता जिस व्यक्ति ने जीवन भर निर्दोष हत्याओं का पाप उठाया हो उस व्यक्ति को वृद्धावस्था में अपने किए गए पापों को भान हो जाता है तो यह बिल्कुल भी सहानुभूति योग्य नहीं है।
यदि व्यक्ति जीवन भर कुकर्म करें और वृद्धावस्था में दयालु हो जाए ऐसे व्यक्ति का कोई चरित्र नहीं होता इस प्रकार के व्यक्तियों को जीवन पर यंत्र क्रूरता का ही प्रतीक माना जाएगा और मानना चाहिए। आन का मान नाटक का सारांश
आन का मान नाटक के आधार पर मेहरुन्निसा का चरित्र चित्रण।
श्री हरि कृष्ण प्रेमी द्वारा रचित नाटक आन का मान मैं इसका औरंगजेब की दूसरी पुत्री के रूप में परिचय मिलता है तथा उसकी चारित्रिक विशेषताएं निम्नलिखित हैं–
- गंभीर व्यक्तित्व इसकी आयु 34 35 वर्ष है अत्यंत गंभीर व्यक्तित्व वाली स्त्री पात्र जो अपने पिता औरंगजेब की क्रूर राजनीति के प्रति विचार विमर्श करती रहती है।
- अत्याचार व हिंसा का विरोधी वह औरंगजेब द्वारा की गई अपने सगे संबंधियों एवं अन्य लोगों की हत्या अत्याचार की हमेशा विरोध करती रहती है।
- व्यवहारिक बुद्धि वह कहती है कि स्त्री होने का अर्थ अंधी होना नहीं है तथा वह जीनत को बताती है किस सम्राट को अपने एक पुत्र और एक पुत्री के अतिरिक्त सारी संतानों का गला घोट देना चाहिए।
- तार्किक व विवेकी वह तर्कशील व विवेकी है। साम्राज्य के प्रति उसकी मानसिकता भिन्न है जो औरंगजेब की शासन प्रणाली से उत्पन्न हुई है। उसका मानना है कि सम्राट यह न करें कि मस्जिद बनवाएं और मंदिरों को तोड़ पाए या मंदिरों को बनवाएं और मस्जिदों को तुड़वाए। उच्च पदों पर धर्म के आधार पर नहीं योग्यता के आधार पर नियुक्तियां करें। सभी धर्मों के अनुयायियों पर समान कर लगाए जाएं और समान सुविधाएं उन्हें दी जाए।
- स्त्री भाव से ओतप्रोत स्त्री होने के साथ-साथ मां भी है वह कहती है पुत्रियां भले ही जिले लेकिन पुत्रों को मरना ही पड़ता है उसके बड़े होकर मरने से उसकी पत्नियां दे सारा हो जाती है अपमान से थी उनके बच्चे अनाथ हो जाते हैं उन्हें क्यों दंड दिया जाए।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि वह बुद्धिजीवी तार्किक व विवेकशील है। उसके हृदय में अपने पिता के प्रति क्रोध और घृणा है। जिस कारण वह अंत तक औरंगजेब को क्षमा नहीं कर पाती। आन का मान नाटक का सारांश
आन का मान नाटक के आधार पर अजीत सिंह का चरित्र चित्रण।
आन का मान नाटक में अजीत सिंह स्वर्गीय जसवंत सिंह का पुत्र है जिसका पालन पोषण दुर्गादास ने किया था। अजीत सिंह 20 वर्षीय नवयुवक है तथा सफियत के प्रति प्रेम भाव रखता है एवं उसके चारित्रिक विशेषताएं निम्नलिखित हैं–
- उत्तेजित स्वभाव अजीत सिंह 20 वर्ष का नवयुवक है जो सफियत के प्रति आकर्षित है। सफिया के उपवास करने पर शीघ्र ही अजीत सिंह उत्तेजित होकर कहता है राठौर का मस्तक शक्ति के आगे नहीं झुकता।
- सफियत के प्रति आसक्त अजीत सिंह सफियत के गीत को सुनकर अत्यंत भावविभोर हो जाता है क्योंकि वह सफियत के प्रति आसक्त है। वह कहता है घबराओ नहीं शहजादी राजपूत अतिथि का मान सम्मान करना जानता है। मारवाड़ का बच्चा-बच्चा आप के सम्मान के लिए अपने प्राण न्योछावर करने को प्रस्तुत है।
- संगीत प्रेमी अजीत सिंह संगीत प्रेमी है। वह कहता है कि संगीत में बहुत आकर्षक होता है विषधर काले ना खोना चाहता है भोला वाला हिरण उस पर मोहित हो अपने प्राण तक गंवा देता है।
- भावुक व्यक्तित्व अजीत सिंह बाल अवस्था में ही अनाथ हो जाता है जिस कारण वह स्वयं को अभागा समझता है। घोड़ों की पीटी उसके लिए मां की गोद रही है तलवार की जानकारी उसके मां की गाई हुई लोरी बनी है। इस स्वभाव से उसके बहाव प्रवृत्ति का प्रतिपादन होता है।
- प्रेम के प्रति पूर्णत समर्पित अजीत सिंह मारवाड़ का राजा बनने वाला है परंतु एक मुगल कन्या सफियत से प्रेम करने का साहस कर बैठता है। वह अपने प्रेम के लिए मारवाड़ की राजगद्दी तक छोड़ने के लिए तैयार हो जाता है।
- क्रथन एवं स्व केंद्रित अजीत सिंह सफियत से विवाह करना चाहता है परंतु दुर्गादास इसका विरोध करता है। प्रेम के वशीभूत अजीत सिंह अपने पालनहार दुर्गादास का भी अपमान करता है। वह अपने देश पर जान मान की चिंता न करके केवल खुद के बारे में सोचता है। वह दुर्गादास से कहता है मारवाड़ में आप रहेंगे या मैं रहूंगा।
अंततः कहा जा सकता है कि अजीत सिंह सिंह उत्तेजित हो उठने वाला स्थिर चित्त का हटी व्यक्ति है। वह सफियत से अपनी संपूर्ण भावनाओं के साथ स्नेह करता है इसी स्नेह के उन्माद में वह अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीन दिखाई पड़ता है। आन का मान नाटक का सारांश
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