कुहासा और किरण नाटक का सारांश 2022-2023
कुहासा और किरण नाटक का सारांश। प्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित कुहासा और किरण नाटक में स्वाधीनता व स्वाधीन भारत के सामाजिक और राजनीतिक जीवन से संबंधित समस्याओं को प्रस्तुत किया गया है। कुहासा और किरण नाटक का सारांश में देश की शासन व्यवस्था बुद्धिजीवी वर्ग तथा अर्थव्यवस्था के आधार व्यापारी वर्ग तीनों एक दूसरे से मिलकर अपनी स्वार्थ सिद्धि हेतु अपने पदों का दुरुपयोग कर रहे हैं।
इसी भ्रष्टाचार रूपी कुआं से का यथार्थ चित्रण देखने को मिलता है। इस नाटककार ने समाज के तथाकथित नेताओं संपादकों तथा व्यापारियों के पाखंड एवं छद्म वेश का भंडाफोड़ किया है।स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय जनता में व्याप्त भ्रष्टाचार पाखंड एवं छद्म वेश में छाए हुए क्वासे को कृष्ण चैतन्य बिपिन बिहारी उमेश चंद्र जैसे स्वार्थी चरित्रों के माध्यम से चित्रित किया गया है।
तो इस कोहरे को दूर करने के लिए देश प्रेम कर्तव्य निष्ठा आस्था एवं नव चेतना की किरणों को अमूल्य सुनंदा गायत्री जैसे उदात्त चरित्र के माध्यम से चित्रित किया गया है जो अन्याय के विरुद्ध खड़े होकर को कुहासे रूपी भ्रष्टाचार को मिटाने का प्रयास करते हैं।
नाटक का कथानक
प्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर द्वारा लिखित कुहासा और किरण नाटक आधुनिक भारतीय समाज की सामाजिक एवं राजनीतिक समस्याओं को राष्ट्रीय परिवेश में रंजीत करता हुआ समाज में मौजूद भ्रष्टाचारियों एवं मुखौटा धारियों पर सीधा वार करता है। मुल्तान में हुए वर्ष 1942 के राष्ट्रीय आंदोलन में स्वतंत्रता सेनानियों के विरुद्ध मुखबिर करने वाला कृष्णदेव अपने पाखंड से स्वयं को कृष्ण चैतन्य नाम से स्वतंत्रता सेनानी एवं राष्ट्रप्रेमी के रूप में प्रतिष्ठित कर लेता है। संपूर्ण नाटक 3 अंकों में विभाजित है।
नाटक के प्रथम अंक की कथावस्तु
नाटक का आरंभ कृष्ण चैतन्य के निवास पर अमूल्य और कृष्ण चैतन्य की सचिव सुनंदा के वार्तालाप से होता है। कृष्ण चैतन्य के 60 वें जन्म दिवस के अवसर पर अमूल्य एवं चैतन्य के अलावा उमेश चंद्र विपिन बिहारी प्रभा आदि उन्हें बधाई देते हैं।
पाखंडी कृष्ण चैतन्य को राष्ट्र के प्रति सेवाओं के बदले ₹250 मासिक पेंशन मिलती है। वह अनेक प्रकार के गैर कानूनी कार्य करता है। उसके गणित कार्य से तंग आकर ही उसकी पत्नी गायत्री भी उसे छोड़कर अपने भाई के पास चली जाती है। देशभक्त राजेंद्र के पुत्र अमूल्य से कृष्ण चैतन्य हमेशा शशंकित रहता है।
अतः उसे अपने यहां से हटाकर बिपिन बिहारी के यहां हिंदी सप्ताहिक का संपादन करने के लिए नियुक्त कर देने की सूचना देता है। अमूल्य के रिश्तो की एक बहन प्रभारी अधिकार को लेकर लिखे गए अपने उपन्यासों को कृष्ण चेतन के माध्यम से छपवाना चाहती है। मुल्तान षड्यंत्र केस जिसमें कृष्ण चैतन्य ने मुखबिरी की थी के दल के नेता डॉक्टर चंद्रशेखर की पत्नी मालती राजनीतिक पेंशन दिलाने का आग्रह करने हेतु कृष्ण चैतन्य के पास आती है और उसे पहचान लेती है। प्रभा एवं मालती के बीच बहस होती है।
पुरानी स्मृतियों एवं कलई खुलने के भय से कृष्ण चैतन्य मानसिक रूप से व्याकुल हो जाता है। वहां उपस्थित अमूल्य को भी उसकी असलियत का आभाष हो जाता है।
यही हमारे नाटक कुहासा और किरण के प्रथम अंक की कथावस्तु थी जिसके बारे में अभी आपने ऊपर पड़ा।
नाटक के द्वितीय अंक की कथावस्तु
कुहासा और किरण नाटक का सर्वाधिक आकर्षण स्थल द्वितीय अंत में ही है इस अंक का प्रारंभ विपिन बिहारी के निजी कक्ष से होता है। बिपिन बिहारी पत्र-पत्रिकाओं का संपादक है जो पत्रिका छापने के लिए मिलने वाले सरकारी कोटे के कागज को ब्लैक करता है। यह ब्लैक मार्केटिंग उमेश चंद्र अग्रवाल की दुकान से होती है। यह दोनों देश की भ्रष्ट संपादकों एवं व्यापारियों के प्रतिनिधि हैं। दोनों का चरित्र आडंबर पूर्ण एवं कृत्रिम है। जिन्हें एक अन्य भ्रष्टाचारी कृष्ण चैतन्य का संरक्षण प्राप्त है।
अमूल्य द्वारा मुल्तान षड्यंत्र केस के बारे में जानकारी दिए जाने तथा उसमें कृष्ण चित्र निक्की देशद्रोही की भूमिका को पत्रिका के माध्यम से उजागर करने संबंधी दिए गए सुझाव को बिपिन बिहारी अस्वीकार कर देता है। वहां कृष्ण चैतन्य के विरुद्ध कुछ भी छापने से इंकार कर देता है। वह कृष्ण चैतन्य के खिलाफ कुछ भी लिखने में असमर्थता व्यक्त करता है।
वह सुनंदा प्रभा एवं अमूल्य को कृष्ण चैतन्य के विरुद्ध कोई भी कार्य न करने के लिए कहता है इसी बीच वहां पुलिस स्पेक्टर आकर अमूल्य को 50 रिंग कागज ब्लैक में बेचने के अपराध में गिरफ्तार कर लेता है। सुनंदा और प्रभा कृष्ण चैतन्य के इस कुकृत्य से क्रोधित होती है। तभी उमेशचंद्र आकर उन्हें अमूल्य द्वारा आत्महत्या करने के असफल प्रयास की सूचना देता है। सुनंदा इस संपूर्ण घटना के विषय में गायत्री को सूचित करती है।
इस घटना के पश्चात विपिन बिहारी आत्मग्लानि का अनुभव कर कृष्ण चैतन्य के सम्मुख अपराध की स्मारक को छोड़ने की अपनी इच्छा प्रकट करता है लेकिन वह करेंगे हम तीनों देंगे हम तीनों के घर उसका विरोध करता है। इसी बीच गायत्री की कार दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है। पत्नी की मृत्यु के बाद कृष्ण चेतन को आत्म ग्लानि होती है। यहीं पर दूसरा अंक समाप्त हो जाता है।
नाटक का तृतीय अंक
कृष्ण चैतन्य अपने निवास पर गायत्री देवी के चित्र के सम्मुख स्तब्ध भाव से बैठा अपनी पत्नी के बलिदान की मानता का अनुभव करता है। सुनंदा मृत्यु से पूर्व गायत्री देवी द्वारा लिखे गए पत्र की सूचना पुलिस को देकर जीवित व्यक्तियों के मुखोटे को उतारना चाहती है। इसी समय सीआईडी के अधिकारी आते हैं। बिपिन बिहारी उन्हें अपने पत्रों के स्वामित्व परिवर्तन की सूचना देता है। प्रभा उन्हें बताती है कि अब मूल्य निर्दोष है।
कृष्ण चेतना कागज की चोरी का रहस्य स्पष्ट करते हुए कहता है कि वास्तव में चोरी की है कहानी एक जालसाजी थी क्योंकि अमूल्य उसका राज जान गया था कि वहां कृष्ण चैतन्य नहीं बल्कि कृष्णदेव है जो मुल्तान षड्यंत्र का मुखबिर है। इसके बाद वह विपिन एवं उमेश के भ्रष्टाचार एवं चोर बाजारी का रहस्य खोल देता है। सीआईडी के अधिकारी पास आप सभी को अपने साथ ले जाने लगते हैं तभी पेंशन न मिलने से विक्षिप्त सी हो गई मालती आकर अपनी पेंशन की बात कहती है।
कृष्ण चैतन्य अपना सबकुछ मालती को सौंप देता है। कृष्ण चैतन्य के साथ-साथ बिपिन बिहारी एवं उमेश अग्रवाल भी गिरफ्तार कर दिए जाते हैं तथा निर्दोष होने के कारण अमूल्य को छोड़ दिया जाता है। अमूल्य प्रभा आदि सभी को अपने अंतर्यामी हृदय के चोर दरवाजों को तोड़ने तथा मुखौटा लगाकर घूम रहे मगरमच्छों को पहचानने का संदेश देता है। बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता इस कथन के साथ नाटक समाप्त हो जाता है।
नाटक का उद्देश्य
कुहासा और किरण नाटक में नाटक कार का एक प्रत्यक्ष उद्देश्य –आधुनिक भारत की सामाजिक एवं राजनीतिक समस्या को राष्ट्रीय परिवेश में स्पष्ट करके भ्रष्ट आचरण एवं मुखौटा धारियों पर सीधा कुठाराघात करना। वह कृष्ण चैतन्य उमेश चंद्र बिपिन बिहारी सुनंदा प्रभा और मालती की जीवन घटनाओं को आधार बनाकर अमूल्य की करुण कहानी के माध्यम से समाज के तथाकथित नेताओं संपादकों तथा व्यापारियों के पाखंड एवं छद्म वेश का भंडाफोड़ करता है।
इसी कारण नाटक में सामाजिक व्यंग का पुट सर्वत्र विद्यमान है। भ्रष्टाचारियों के मुखोटे को बेनकाब करना मुखबिर के रहस्य को खोलना व्यक्ति के हृदय में व्याप्त चोर दरवाजों को तोड़ना ही नाटक का उद्देश्य है। जिसे लेखक विभिन्न पात्रों के कथन में स्थान स्थान पर स्पष्ट रूप से व्यक्त करता है। इस प्रकार नाटककार का उद्देश्य देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की ओर ध्यान आकर्षित करके उससे देश को बचाकर आदर्श स्थिति की ओर ले जाना तथा देश प्रेम एवं राष्ट्रीय चेतना की रक्षा करने का संदेश देना है।
कुहासा और किरण नाटक के नायक का चरित्र चित्रण।
कथा संगठन पात्र विशिष्टता उद्देश्य और संदेश की दृष्टि से प्रधान पात्र अमूल्य है जो उस पीढ़ी का प्रतिनिधि है जिसका जन्म भारत की स्वतंत्रता के साथ या बाद में हुआ तथा जिसके पिता राजेंद्र ने मुल्तान षड्यंत्र केस में 15 वर्ष की कठोर जल यात्रा से कर अपने जीवन को देश के लिए बलिदान कर दिया। नाटक के केंद्रीय पात्र अमूल्य के चरित्र की निम्न विशेषताएं हैं
- देशभक्त अमूल्य के व्यक्तित्व में अपने माता पिता से विरासत में मिली देश भक्ति का गुण कूट कूट कर भरा है। उसका मानना है कि देश का स्थान सबसे ऊपर है जिसे किसी भी स्थिति में कलंकित नहीं होने देना चाहिए।
- कर्तव्य परायणता अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक अमूल्य किसी भी काम को पूरी निष्ठा एवं परिश्रम के साथ संपन्न करता है।
- सत्यवादी कृष्ण चैतन्य जैसे व्यक्ति के संग में आने के बावजूद वह अपनी ईमानदारी एवं सच्चाई पर कोई आंच नहीं आने देता।
- निर्भीकता एवं साहसीपन अपने निर्भीकता का परिचय देते हुए वह सबके सामने बिपिन बिहारी को बेईमान कहता है।
- आदर्श मार्गदर्शक अमूल्य का व्यक्तित्व आधुनिक युवा वर्ग के लिए एक आदर्श मार्गदर्शक का है। वह भ्रष्ट आचरण करने वालों एवं फोटो को जोड़कर अपनी निजता को छिपाने वाले लोगों को बेनकाब करता है।
कुहासा और किरण नाटक में इस तरह कहां जा सकता है कि नाटक का सबसे महत्वपूर्ण एवं जीवंत पात्र अमूल्य भ्रष्टाचार एवं निराशा पूर्ण कुहासे को भेदकर कर्तव्यनिष्ठा दृढ़ता सत्यवादिता देशभक्ति निर्भीकता आदि जैसी किरणों से समाज को आलोकित करना चाहता है।
कुहासा और किरण नाटक के आधार पर सुनंदा का चरित्र चित्रण।
विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित कुहासा और किरण नाटक की सर्वाधिक प्रमुख नारी सुनंदा दूरदर्शी, साहसी, चतुर, विनोदी, कर्तव्यपरायण, दृढ़ संकल्पित एवं कर्मशील युवती है।
सुनंदा की चारित्रिक विशेषताएं निम्नलिखित है–
- भ्रष्टाचारियों एवं मुखौटा धारियों की विरोधी सुनंदा का व्यक्तित्व ईमानदारी एवं कर्तव्य निष्ठा से भरपूर है वह भ्रष्टाचार को समाप्त करने तथा पाखंडी ओं का रहस्य खोलने में अंत तक अमूल्य का साथ देती है।
- जागरूकता को महत्व जागरूकता को महत्वपूर्ण मानने वाली सुनंदा समाचार पत्रों के महत्व एवं उनमें निहित शक्ति को समझती है।
- वाकपटुता सुनंदा के व्यक्तित्व का अत्यंत विशिष्ट पहलू उसकी वाकपटुता है। उसकी रंगों से भरी वाकपटुता गलत मार्ग पर जा रहे लोगों को सही मार्ग पर लाने तथा उनकी आत्मा को झकझोरने में काफी हद तक सफल रहती है।
- सहृदयता सुनंदा अमूल्य की विवशता को समझती है। वह मूल्य को फसाए जाने का विरोध करते हुए अन्याय से जूझने के लिए तत्पर है। नारी सुलभ गुणों के साथ-साथ उसमें युग अनुरूप चेतना एवं जागृति का भाव भी लक्षित है।
कुहासा और किरण नाटक में इस तरह कहां जा सकता है कि सुनंदा एक प्रगतिशील व्यवहार कुशल दृढ़ संकल्पित देश प्रेमी एवं तार्किक बौद्धिक क्षमता वाली नव युवती है जो समाज को बेहतर बनाने के लिए हर संभव प्रयत्न करती है।
कुहासा और किरण नाटक के आधार पर गायत्री देवी का चरित्र चित्रण।
विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित कुहासा और किरण नाटक मैं गायत्री देवी पाखंडी कृष्ण चैतन्य की पत्नी है, जिसमें सामान्य नारी सुलभ गुण दोष विद्यमान है। वह अपने पति कृष्ण चैतन्य के कपट पूर्ण व्यवहार का विरोध करती है। उनके चरित्र को निम्नलिखित विशेषताओं से प्रदर्शित किया जा सकता है–
- अंतरात्मा को महत्व गायत्री अपने पति कृष्ण चैतन्य के पाखंडी व्यक्तित्व का समर्थन नहीं करने के बावजूद प्राप्त होने वाले यश प्रतिष्ठा एवं समृद्धि का लोभ त्याग नहीं पाती, लेकिन मुल्तान षड्यंत्र केस के देश भक्तों के दल के नेता डॉक्टर चंद्रशेखर की पत्नी मालती को देखने के बाद वह अंतरात्मा की आवाज पर अपने पति का घर छोड़ देती है। अंतरात्मा की आवाज सुनकर ही वह अमूल्य पर किए जाने वाले अत्याचार या उसे फंसाने के लिए बुने गए जाल के विरुद्ध स्वयं का उत्सर्ग कर देती है और अपने पति को एक तरह से दंडित करती है।
- साहित्य प्रेमी गायत्री को साहित्य एवं समाज के परस्पर संबंध का पर्याप्त ज्ञान है। वहां एक विदुषी है। वह प्रभा के उपन्यास की सूक्ष्म आलोचना करती है तथा उसमें भ्रष्टाचारियों एवं मुखबिर की कलई खोलने के लिए सुझाव देती है।
- भावुक हृदय भावुक हृदय की स्वामिनी गायत्री अमूल्य को झूठे मामलों में फंसाने के अपने पति के कृत्य को सह नहीं पाता और व्याकुल होकर आत्महत्या के मार्ग को चुन लेती है।
- पति के हृदय परिवर्तन में सहायक वह अपने पति को उचित मार्ग पर लाने हेतु सोया का बलिदान कर देती है। गायत्री की मृत्यु के बाद कृष्ण चैतन्य का यथार्थ में हृदय परिवर्तन हो जाता है और वह अपने अपराध को स्वीकार कर लेता है।
कुहासा और किरण नाटक में इस तरह गायत्री एक सच्ची भारतीय नारी को प्रतिबिंबित करती है जो आंख में बलिदान करके अपने पति को सही मार्ग पर लाने में सफल होती है। अपनी कमियों के बावजूद वह सम्मान एवं श्रद्धा की अधिकाऋणी बन जाती है।
कुहासा और किरण नाटक के आधार पर कृष्ण चैतन्य का चरित्र चित्रण।
कुहासा और किरण नाटक मैं कृष्ण चैतन्य खलनायक के रूप में उभरकर सामने आता है। नाटककार ने कृष्ण चेतन के माध्यम से आज के पाखंडी एवं आडंबर पूर्ण जीवन जीने वाले भ्रष्ट नेताओं की कलाई खोली है। चेतन की चारित्रिक विशेषताएं निम्नलिखित हैं–
- देशद्रोही एवं कपटी कृष्ण चैतन्य मुल्तान संयंत्र केस में मुखबिर बनकर अपनी जान की रक्षा करता है तथा अपने साथियों की मृत्यु का कारण बनता है। वह अपनी जान बचाने के लिए अपने साथियों को फसा देता है जिसमें उन सभी की असामीज मृत्यु हो जाती है। उसका चरित्र कृत्रिम एवं आडंबर पूर्ण है। देशभक्ति का चोला पहनकर वह सरकार एवं जनता को धोखा देता है।
- भ्रष्टाचारी वह भ्रष्ट नेता है जो लोगों को ब्लैकमेल करता है। वह बिपिन बिहारी एवं उमेश चंद्र के साथ मिलकर भ्रष्टाचार में लिप्त रहता है।
- दूरदर्शिता अपनी दूरदर्शिता के कारण ही वह अपना नाम परिवर्तित करके कृष्णदेव से कृष्ण चेतन रखता है विपिन बिहारी के यहां अमूल्य को नियुक्त करवाना उसे फसाना उसकी दूरदर्शिता का ही परिणाम था।
- आत्म परिष्कार की भावना पत्नी गायत्री देवी का बलिदान उसमें प्रायश्चित का भाव उत्पन्न कर देता है। वहां अपने अपराधों को स्वीकार करके अपने दुष्कर्म से सभी को परिचित कराता है।
इस प्रकार कृष्ण चैतन्य का व्यक्तित्व कुछ विरोधाभासी गुणों से युक्त है और मूलतः धूर्तता छिपी है।
कुहासा और किरण नाटक के आलावा और भी कुछ पढ़े– शिक्षा