ध्रुव यात्रा की कहानी।ध्रुव यात्रा का सारांश तथा उद्देश्य।
ध्रुव यात्रा के नायक रिपुदमन का चरित्र चित्रण एवं ध्रुव यात्रा की कहानी तथा ध्रुव यात्रा का सारांश तथा उद्देश्य और ध्रुव यात्रा कहानी के लेखक सभी के बारे में जानें।
इस प्रश्न पर आधारित 5 अंकों के कथा साहित्य से संबंधित दो प्रश्न पूछे जाते हैं जिसमें कथा की विशेषता एवं उसके तत्व तत्व एवं घटनाएं चरित्र चित्रण तथा भाषा एवं कहानी कला की दृष्टि से समीक्षा संबंधी प्रश्न होते हैं कहानियों पर आधारित जो प्रश्न पूछे जाते हैं वह प्रायः कहानी कला के तत्वों के आधार पर समीक्षात्मक रूप से किसी एक या दो तत्व के आधार पर ही पूछे जाते हैं कहानी में विशेष रुप से कथानक चरित्र चित्रण तथा उद्देश्य तत्व पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
इस प्रकार के प्रश्नों को हल करने के लिए अधिकतम शब्द सीमा 80 शब्द तक होती है 80 शब्द के अंदर आपको इस प्रश्न का उत्तर देना ही होता है इससे ज्यादा न तो अधिक हो जाए मेरा मतलब है कि ऐसा ना हो कि 100 से ऊपर हो जाएं और ऐसा भी ना हो कि 50 से कमरे जाए तो जो एक एवरेज शब्द सीमा होती है उसका मतलब यह है कि 80,70 या 90 इनके बीच में प्रश्न हल हो जाना चाहिए।
ध्रुव यात्रा के नायक रिपुदमन का चरित्र चित्रण कीजिए।
ध्रुव यात्रा के नायक रिपुदमन का चरित्र चित्रण – वचन और प्रेम के प्रति राजा रिपुदमन समर्पित व्यक्ति हैं निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत उनका चरित्र चित्रण किया जा सकता है
- विवाह का विरोधी–राजा रिपुदमन विवाह के विरोधी हैं। इसी कारण उनका मानना है कि विवाह से व्यक्ति रुकता है वह बंधता है। वह तब सब का नहीं हो सकता। अपना एक कोलू बनकर उसमें जूता हुआ चक्कर में ही घूम सकता है। अपनी इसी विचारधारा के कारण वह बिना विवाह के ही 1 पुत्र के पिता बन जाते हैं।
- पश्चातापी–अपनी गलतियों का जब व्यक्ति को एहसास होता है तो वह पश्चाताप की अग्नि में जलने लगता है जब अपनी इस भूल का अहसास राजा रिपुदमन को होता है कि उन्होंने अपनी प्रेयसी उर्मिला को अकेला छोड़कर उसके साथ न्याय नहीं किया है, जबकि वह उनके पुत्र की मां बन चुकी है तब उन्हें अपने किए पर अत्यंत पश्चाताप होता है।
- यशकामी व्यक्ति–राजा रिपुदमन यस कमाने की कामना रखने वाले व्यक्ति हैं। यही कारण है कि स्वयं से संतुष्ट न होते हुए और केवल अपनी इच्छा से ध्रुव यात्रा न करने की बात को जानते हुए भी वह कहीं भी मीडिया से इस बात की चर्चा नहीं करते उनकी सफल ध्रुव यात्रा में उनकी प्रियसी उर्मिला का महत्वपूर्ण स्थान है। विषय को यात्रा की सफलता का श्रेय देते हुए मीडिया के सम्मुख चुप्पी साधे रहे, क्योंकि वह जानते थे कि यदि वे वास्तविकता का उद्घाटन कर देंगे तो उनकी यात्रा की सफलता का श्रेय उर्मिला को चला जाएगा।
- स्वयं से असंतुष्ट–उत्तरी ध्रुव की यात्रा करके राजा रिपुदमन ने भले ही सारे संसार में प्रसिद्ध हो गए हैं, किंतु स्वयं से संतुष्ट नहीं है, क्योंकि वे यह जानते हैं कि उस यात्रा की सफलता के श्रेया की वास्तविक हकदार उनकी प्रियसी उर्मिला है उसे उस तरह से वंचित रखा गया है।
ध्रुव यात्रा की कहानी का सारांश (ध्रुव यात्रा का सारांश )
ध्रुव यात्रा का सारांश ध्रुव यात्रा की कहानी एक मनोवैज्ञानिक कहानी है यह कहानीकार जैनेंद्र की उत्कृष्ट कहानियों में से एक है इसका सारांश इस प्रकार है–
राजा रिपुदमन बहादुर उर्मिला नामक एक प्रेमिका है जिससे वह पहले विवाह के विषय में अपनी लक्ष्य सिद्धि के कारण मना कर चुका था वह उत्तरी ध्रुव की यात्रा के लिए जाने से पूर्व अपनी प्रेमिका से पति पत्नी में संबंध बना चुका था जिसके परिणाम स्वरूप उनका एक पुत्र भी उत्पन्न हो चुका था। उत्तरी ध्रुव की यात्रा तो उसने पूर्ण कर ली लेकिन उसका मन व्याकुल रहने लगा।
वह भारत लौटा उसके स्वागत की जोर शोर से तैयारियां हुई। वह मुंबई से दिल्ली आ गया। यह सब समाचार उर्मिला समाचार पत्रों में पढ़ती रही। रिपुदमन को नींद कम आती थी, उसका मन पर काबू नहीं रहता था अतः वह उपचार हेतु मारुति आचार्य के पास पहुंचा।
मारुति ने उसे विजेता कहकर पुकारा तो उसने कहा कि मैं रोगी हूं विजेता छल है। उसने रिपुदमन से अगले दिन 3:20 पर आने को कहा तथा डायरी में पूर्ण दिनचर्या एवं खर्च लिखने को कह कर उसे विदा कर दिया। अगले दिन वह समय पर पहुंचा। आचार्य ने सब कुछ देख कर कहा तुम्हें कोई रोग नहीं है। तुम्हें अच्छे संबंध मिल सकते हैं उन्हें चुल्लू विवाह अनिष्ट वस्तु नहीं है वह तो गृहस्थ आश्रम का द्वार है।
लेकिन रिपुदमन ने कोई जवाब नहीं दिया। पति ने परसों मिलने की बात कही। अगले दिन वह सिनेमा गया जहां पर उसकी बेटी उर्मिला से हो गई । वहां बच्चे को लाई थी रिपुदमन ने बच्चे को लेना चाहा लेकिन और मिला उसे अपने कंधे से चिपकाए जीने पर चढ़ती चली गई। उसने घंटी बजा कर एक आदमी को बॉक्स पर बुलाया और दो आइसक्रीम लाने का आदेश दिया। रिपुदमन ने उर्मिला से बच्चे के नाम के बारे में पूछा तो उस ने मुस्कुराते हुए कहा कि अब नाम तुम ही रखोगे।
उसने दो नाम सुझाए लेकिन उर्मिला ने कहा मैं इसे मधु कहती हूं। सिनेमा देखना बीच में छोड़कर दोनों ने बीती जिंदगी की चर्चा की। रिपुदमन ने कहा उर्मिला तुम अभी भी मुझसे नाराज हो। उर्मिला बोली मैं तुम्हारे पुत्र की मां हूं। तुम अपने भीतर के वेग को शिथिल न करो तीर की भांति लक्ष्य की ओर बढ़ो। याद रखना कि पीछे एक है जो इसी के लिए जीती है। राजा तुम्हें रुकना नहीं है पर अनंत हो यही गति का आनंद है।
राजा ने कहा मैं आचार्य मारुति के यहां गया था और उसने विवाह का सुझाव दिया है। उर्मिला उसे ढोंगी कहती है तथा कहती है कि वह प्रगति शीलता में बाधक है तेजस्विता का अपहरण है। रिपुदमन कहता है कि मुझे जाना ही होगा, तुम्हारा प्रेम दया नहीं जानता। इसके बाद वह दिए गए समय अनुसार मारुति आचार्य से मिलने जाता है। उनके पूछने पर वह उर्मिला के विषय में बताता है।
आचार्य कहता है ठीक है तुम उसी से शादी कर लो, वह धनंजय की बेटी है। वह मेरी ही बेटी है, मैं उसे समझा दूंगा। उर्मिला आचार्य से मिलती है तो वह भी अनेक प्रकार से उसे समझाता है। फिर रिपुदमन उर्मिला से पूछता है कि क्या तुम आचार्य से मिली? अब बताओ मुझे क्या करना है।
वह कहती है कि तुम्हें अब दक्षिणी ध्रुव जाना है। वह सर लैंड द्वीप के लिए जहाज तय कर लेता है तथा परसों जाने की बात कहता है। इस पर उर्मिला कहती है, नहीं राजा, परसों नहीं जाओगे। रिपुदमन कहता है, मिस्त्री की बात नहीं सुनना, मुझे प्रेमिका के मंत्र का वरदान है। यह खबर सर्वत्र फैल जाती है कि रिपुदमन दक्षिणी ध्रुव की यात्रा पर जा रहा है। और मेला भी कल्पना में खोई रहती है–राष्ट्रपति की ओर से दिया गया भोज हो रहा होगा राष्ट्रदूत होंगे सब नायक सब दल पति।
तीसरे दिन उसने अखबार में पढ़ा कि राजा रिपुदमन सवेरे खून में शनि पाए गए गोली का कनपटी के आर पर निशान है अखबारों ने अपने विशेष अंकों में मृतक के तकिए के नीचे मिले पत्र को भी छापा था, उसमें यात्रा को निजी कारणों से किया जाना बताया गया था। कहां था कि इस बार मुझे वापस नहीं आना था दक्षिणी ध्रुव के एकांत में मृत्यु सुखकर होती।
उस पत्र की अंतिम पंक्ति थी मुझे संतोष है कि मैं किसी की परिपूर्णता में काम आ रहा हूं। मैं पूरे होशो हवास में अपना काम तमाम कर रहा हूं। भगवान मेरे प्रिय के अर्थ मेरी आत्मा की रक्षा करें। लक्ष्य के प्रति उड़ान भरी कहानी का करुणामई रूप से अंत हो जाता है।
इस प्रकार हम देखते हैं की कहानी ध्रुव यात्रा एक मनोवैज्ञानिक कहानी है इसमें लक्ष्य प्राप्ति की बात पर कथा नायक राजा रिपुदमन सिंह की अपनी प्रेमिका से खटक गई थी प्रेमिका ने अपने प्रेमी की लक्ष्य निष्ठा पर शान चढ़ाई जिसकी चरम परिणति नायक का करोड़ अंत हुआ अत्यंत संस्था संसार बंधनों से ऊपर होती है कथाकार ने इसी तथ्य को कहानी में साकार किया है रिपुदमन की एक भूल से उर्मिला चिढ़ गई तथा जीवन खंडहर हो गया।
ध्रुव यात्रा कहानी का कथानक।
ध्रुव यात्रा कहानी के कथानक ने प्रेम और त्याग की पराकाष्ठा के मनोवैज्ञानिक धरातल पर विस्तार पाया है। तथ्य की दृष्टि से कथानक अत्यंत संक्षिप्त है की विवाह अथवा संयोग स्त्री पुरुष के प्रेम की पराकाष्ठा अथवा लक्ष्य नहीं है वरन एक दूसरे के यश कीर्ति के मार्ग की बाधा बने बिना प्राप्त चिरवयोग भी प्रेम की पराकाष्ठा है। वास्तविक प्रेम दूसरे के लक्ष्य और भावनाओं की पूर्ति के लिए किए गए सर्वस्व त्याग में निहित है। कहानी के कथानक में प्रेम मैंने त्याग और समर्पण के अंतर्द्वंद को बड़ी कुशलता से व्यक्त किया गया है।
यद्यपि कहानी का कथानक स्पष्ट चुटीला और मार्मिक है किंतु पात्रों के अंतर्द्वंदओ की अभिव्यक्ति के कारण कुछ उलझ सा गया है। कहानी के कथानक का आरंभ बड़ी तेज गति के साथ हुआ मगर आगे चलकर उसकी गति धीमी होती चली गई। इतना सब होने के उपरांत भी कथानक के पात्रों के वैचारिक मंथन के कारण सर्वत्र कौतूहलता और रोचकता बनी रही हैं।
कथानक की एक विशेषता यह है कि पात्रों ने मानसिक द्वंद के साथ-साथ पाठकों के भीतर भी एक द्वंद निरंतर चलता रहता है कि अमुक पात्र का ऐसा सोचना क्या उचित है। उसे यहां ऐसा नहीं करना चाहिए उसे अब इस प्रकार का आचरण करना चाहिए। इसी धुंध में पाठक को अनेक बार लगता है कि कथानक का चरमोत्कर्ष आ गया है और इस कथा का अंत इस परिणीति के साथ होता है किंतु अगले ही क्षण उसे अपना मत बदलना पड़ता है। इस प्रकार कहानी का कथानक संक्षिप्त रोचक मार्मिक एवं व्यवस्थित है।
ध्रुव यात्रा कहानी का उद्देश्य
आलोचक कहानी ध्रुव यात्रा का मूल उद्देश्य प्रेम की पवित्रता और पराकाष्ठा की विवेचना एवं वचन पालन के महत्व को प्रतिष्ठित करना है। कहानीकार के अनुसार व्यक्तित्व सुखों की अपेक्षा सर्व भौमिक एवं अलौकिक उपलब्धि श्रेया कर हैं।
निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है कि ध्रुव यात्रा कहानी तत्वों की दृष्टि से एक सफल मनोवैज्ञानिक कहानी है। वास्तव में ध्रुव यात्रा की कहानी एक प्रेरणा जनक कहानी है। ध्रुव यात्रा की कहानी से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। ध्रुव यात्रा कहानी का उद्देश्य यही था।
ध्रुव यात्रा कहानी के लेखक कौन हैं
ध्रुव यात्रा कहानी के लेखक का नाम सुप्रसिद्ध कहानीकार जैनेन्द्र कुमार हैं।
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