सूत पुत्र नाटक का सारांश 2022-2023।
डॉ गंगा सहाय प्रेमी द्वारा रचित सूत पुत्र नाटक महाभारत कालीन प्रसिद्ध पात्र करण के जीवन की घटनाओं पर आधारित है। सूत पुत्र नाटक में पौराणिक कथा को आधार बनाकर वर्तमान भारतीय समाज की जाति वर्ण वर्ग एवं नारी समाज की विसंगतियों पर प्रहार किया गया है।
सूत पुत्र नाटक में महाभारत के मनस्वी संघर्षशील एवं कर्मठ व्यक्तित्व के स्वामी करण के प्रति पाठकों एवं दर्शकों की सहानुभूति उत्पन्न करने के अतिरिक्त नाटककार ने उन सामाजिक समस्याओं की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया है जो आधुनिक समाज में भी व्याप्त हैं। नाटककार ने प्रस्तुत रचना में ऐतिहासिक तथ्यों के साथ अपनी कल्पना का सुंदर समायोजन किया है।
सूत पुत्र नाटक में नाटककार का उद्देश्य ऐतिहासिक तथ्यों के माध्यम से भारतीय समाज की विसंगतियों की ओर समाज व पाठक का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया गया है नाटककार ने सभी अंकों को एक सूत्र में पिरोने का सफल प्रयास किया है। सूत पुत्र नाटक में नारी शिक्षा की समस्या नारी की समाज में विवशता एवं मजबूरियां आदि का चित्रण करके नाटककार ने इसे आज के परिपेक्ष में प्रसांगिक बनाया है।
सूत पुत्र नाटक के प्रथम अंक का सारांश
डॉक्टर गंगा सहाय प्रेमी द्वारा लिखित सूत पुत्र नाटक के प्रथम अंक का प्रारंभ महर्षि परशुराम के आश्रम के दृश्य से होता है। धनुर्विद्या के आचार्य एवं श्रेष्ठ धनुर्धर परशुराम उत्तराखंड में पर्वतों के बीच तपस्या लीन है। परशुराम ने व्रत ले रखा है कि वह केवल ब्राह्मणों को ही धनुर्विद्या सिखाएंगे। सूत पुत्र कर्ण की हार्दिक इच्छा है कि वह एक कुशल लक्ष्य भेदी धनुर्धारी बने। इसी उद्देश्य से वह परशुराम जी के आश्रम में पहुंचता है और स्वयं को ब्राह्मण बताकर परशुराम से धनुर्विद्या की शिक्षा प्राप्त करने लगता है।
सूत पुत्र नाटक का सारांश की शुरुआत में नाटक के प्रथम अंक में इसी दौरान एक दिन करण की जंघा पर सिर रखकर परशुराम सोए होते हैं तभी एक कीड़ा कार्ड की जगह को काटने लगता है जिससे रक्त स्राव होता है। करण उस दर्द को सेंड करता है क्योंकि वह अपने गुरु परशुराम की नींद तोड़ना नहीं चाहता। रक्त स्राव होने से परशुराम की नींद टूट जाती है। अतः सूत पुत्र नाटक में करण की सहनशीलता को देखकर उन्हें उसके क्षत्रिय होने पर संदेह होता है।
उनके पूछने पर कर उन्हें सत्य बता देता है। परशुराम अत्यंत क्रोधित होकर कर्ण को श्राप देते हैं कि मेरे द्वारा सिखाई गई विद्या को तुम अंतिम समय में भूल जाओगे और इसका प्रयोग नहीं कर पाओगे। करण वहां से वापस चला आता है।
सूत पुत्र नाटक के द्वितीय अंक की कथावस्तु।
सूत पुत्र नाटक का द्वितीय अंक द्रौपदी के स्वयंवर से आरंभ होता है। राजकुमार और दर्शक एक सुंदर मंडप के नीचे अपने अपने आसन पर विराजमान हैं। खोलते तेल के कड़ाहे के ऊपर एक खंभे पर लगातार घूमने वाले चक्र पर एक मछली है। स्वयंवर में विजई बनाने के लिए तेल में देखकर उस मछली की आंख को भेजना है।
अनेक राजकुमार लक्ष्य भेजने की कोशिश करते हैं और असफल होकर बैठ जाते हैं। प्रतियोगिता में कर्ण के भाग लेने पर राजा द्रुपद आपत्ति करते हैं और उसे अयोग्य घोषित कर देते हैं।
सूत पुत्र नाटक के द्वितीय अंक में दुर्योधन उसी समय करण को अंग देश का राजा घोषित करता है। इसके बावजूद करण का क्षत्रियता एवं उसकी पात्रता सिद्ध नहीं हो पाती है और कर्ण निराश होकर बैठ जाता है। उसी समय ब्राह्मण वेश में अर्जुन एवं भीम सभा मंडप में प्रवेश करते हैं। लक्ष्य भेद की अनुमति मिलने पर अर्जुन मछली की आंख भेज देते हैं तथा राजकुमारी द्रोपदी उन्हें वरमाला पहना देती है।
अर्जुन द्रौपदी को लेकर चले जाते हैं। सुने सभा मंडप में दुर्योधन एवं कर्ण रह जाते हैं। दुर्योधन कर्ण से द्रोपदी को बलपूर्वक छीनने के लिए कहता है जैसे करण नकार देता है। दुर्योधन ब्राह्मण वेश धारी अर्जुन एवं भीम से संघर्ष करता है और उसे पता चल जाता है कि पांडवों को रक्षा गृह में जलाकर मारने की उसकी योजना असफल हो गई है। कर्ण पांडवों को बड़ा भाग्यशाली बताता है। यहीं पर द्वितीय अंक समाप्त हो जाता है।
सूत पुत्र नाटक के तृतीय अंक की कथावस्तु।
सूत पुत्र नाटक के तृतीय अंक की शुरुआत में अर्जुन एवं करण दोनों देवपुत्र हैं। दोनों के पिता क्रमशः इंद्र एवं सूर्य को युद्ध के समय अपने अपने पुत्रों के जीवन की रक्षा की चिंता हुई। इसी पर केंद्रित तीसरे अंक की कथा है। यह अंक नदी के तट पर करण की सूर्य उपासना से प्रारंभ होता है। करण द्वारा सूर्य देव को पुष्पांजलि अर्पित करते समय सूर्य देव उसकी सुरक्षा के लिए उसे स्वर्ण के दिव्य कवच एवं कुंडल प्रदान करते हैं। वह इंद्र की भाभी चांद से भी उसे सतर्क करते हैं तथा करण को उसके पूर्व वृतांत से परिचित कराते हैं। इसके बावजूद वे कार्ड को उसकी माता का नाम नहीं बताते।
कुछ समय पश्चात इंद्र अपने पुत्र अर्जुन की सुरक्षा हेतु ब्राह्मण का वेश धारण कर करण से उसका कवच कुंडल मांग लेते हैं। इसके बदले इंद्रकरण को एक अमोघ शक्ति वाला अस्त्र प्रदान करते हैं जिसका वार कभी खाली नहीं जाता। इंद्र के चले जाने के बाद गंगा तट पर कुंती आती है। वह कर्ण को बताती है कि वही उसका जेष्ठ पुत्र है।
सूत पुत्र नाटक के तृतीय अंक के अंत में वह कुंती को आश्वासन देता है कि वह अर्जुन के सिवा किसी अन्य पांडव को नहीं मारेगा। दुर्योधन का पक्ष छोड़ने संबंधी कुंती के अनुरोध को करण अस्वीकार कर देता है। कुंती कर्ण को आशीर्वाद देकर चली जाती है और इसी के साथ नाटक के तृतीय अंक का समापन हो जाता है
सूत पुत्र नाटक के चतुर्थ अंक की कथावस्तु
डॉ गंगा सहाय प्रेमी द्वारा रचित सूत पुत्र नाटक के चौथे एवं अंतिम अंक की कथा का प्रारंभ कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि से होता है। सर्वाधिक रोचक एवं प्रेरणादायक इस अंक में नाटक के नायक करण की जान वीरता वीरता पराक्रम दृढ़ प्रतिज्ञा संकल्प जैसे गुणों का उद्घाटन होता है। अंक के प्रारंभ में एक और श्री कृष्ण एवं अर्जुन तो दूसरी और करण एवं शल्य है।
संध्या एवं करण में वाद विवाद होता है और शल्य करण को प्रोत्साहित करने की अपेक्षा हतोत्साहित करता है। करण एवं अर्जुन के बीच युद्ध शुरू होता है। अतः कार्ड अपने बाणों से अर्जुन के रथ को पीछे धकेल देता है। श्री कृष्ण कर्ण की वीरता एवं योग्यता की प्रशंसा करते हैं जो अर्जुन को अच्छा नहीं लगता।
कड के रथ का पहिया दलदल में फंस जाता है। वह जब पैसा निकालने की कोशिश करता है तो श्री कृष्ण के संकेत पर अर्जुन ने हत्याकांड पर बाढ़ वर्षा प्रारंभ कर देते हैं जिससे करण मृमांतक रूप से घायल हो जाता है। और गिर पड़ता है। संध्या हो जाने पर युद्ध बंद हो जाता है।
सूत पुत्र नाटक के चतुर्थ अंक के अंत में श्री कृष्ण की दानवीरता की परीक्षा लेने के लिए युद्ध भूमि में पड़े करण से सोना मांगते हैं करण अपना सोने का दांत तोड़ कर और उसे जल्द से शुद्ध कर ब्राह्मण वेशधारी श्री कृष्ण को देता है।
सूत पुत्र नाटक का उद्देश्य।
सूत पुत्र नाटक के नाटककार का उद्देश्य महाभारत कालीन ऐतिहासिक तथ्यों को प्रस्तुत कर के वर्तमान समय में भारतीय समाज की विसंगति की ओर पाठकों एवं दर्शकों का ध्यान आकर्षित करना है। नाटककार ने इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर नाटक में ऐतिहासिक तथ्यों के साथ अपनी कल्पना का सुंदर समायोजन किया है जिसे निम्न बिंदुओं से निरूपित किया जा सकता है–
- जाति एवं वर्ग व्यवस्था संबंधी विसंगतियों को कर्ण परशुराम संवाद द्वारा दर्शाया गया है।
- जाति वर्ण व्यवस्था की विडंबना को करण द्रुपद संवाद द्वारा भी दर्शाया गया है।
- नारी की सामाजिक स्थिति को कर्ण कुंती संवाद से स्पष्ट किया गया है।
- उच्चारण की मंदाअंधता को कर्ण संवाद रेखांकित
करता है।
इस प्रकार प्रस्तुत सूत पुत्र नाटक के माध्यम से नाटककार ने समाज की कुरीतियों को अपने नाटक द्वारा रेखांकित किया है उन पर प्रतिघात किया है।
सूत पुत्र नाटक के आधार पर नायक का चरित्र चित्रण।
गंगा सहाय प्रेमी द्वारा लिखित सूत पुत्र नाटक के नायक कर्ण के चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएं मौजूद है–
- गुरु भक्ति करण सच्चा गुरु भक्त वह अपने गुरु के लिए सर्वस्व त्याग करने को तत्पर है। अत्यधिक कष्ट होने के पश्चात भी वह अपने गुरु परशुराम की निद्रा को बाधित नहीं होने देता है। गुरुद्वारा साहब दिए जाने के बावजूद वह अपने गुरु की निंदा सुनना पसंद नहीं करता। द्रौपदी स्वयंवर के समय उसकी गुरु भक्ति स्पष्ट रूप से दिखती है।
- प्रवीण धनुर्धारी करण धनुर्विद्या में अत्यधिक प्रवीण है। वहां अपने समय का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी है जिसके सामने अर्जुन को टिकना भी मुश्किल लगता है। इसलिए इंद्र देवता ने अर्जुन की रक्षा के लिए करण से ब्राह्मण वेश धारण कर कवच और कुंडल मांग लिए।
- प्रबल नैतिक वादी कर्ण उच्च स्तर के संस्कारों से युक्त है। वह नैतिकता को अपने जीवन में विशेष महत्व देता है। इसी नैतिकता के कारण वह द्रोपदी के अपहरण संबंधी दुर्योधन के प्रस्ताव को अस्वीकार कर देता है।
- दानवीरता करण अपने समय का सर्वश्रेष्ठ दानवीर था। उसकी दानवीरता अनुपम है। युद्ध में अर्जुन की विजय को सुनिश्चित करने के लिए इंद्र ने कवच कुंडल मांगा सारी वस्तुस्थिति समझते हुए भी करण ने उसका दान दे दिया। इतना ही नहीं युद्ध भूमि में मृत्यु शैया पर पड़े करण ने श्री कृष्ण द्वारा ब्राह्मण वेश में सोना दान में मांगने पर करने अपना सोने का दांत उखाड़ कर दे दिया।
- महान योद्धा एक महान योद्धा है तथा वह एक सच्चा महारथी है। वहां अर्जुन के रथ को अपनी बाण वर्षा से पीछे धकेल देता है जिस पर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण बैठे हुए थे।
- नारी के प्रति श्रद्धा भाव नारी जाति के प्रत्येक चरण में गहरी निष्ठा एवं श्रद्धा है। वह नारी को विधाता का वरदान मानता है।
- सच्चा मित्र करण अपने जीवन के अंत समय तक अपने मित्र दुर्योधन के प्रति गहरी निष्ठा रखता है। दुर्योधन के प्रति उसकी मित्रता को कोई भी व्यक्ति कम नहीं कर सका।
अंततः कहा जा सकता है कि करण का व्यक्तित्व अनेक श्रेष्ठ मानवीय भावों से परिपूर्ण है।
सूत पुत्र नाटक के आधार पर श्री कृष्ण का चरित्र चित्रण।
डॉक्टर गंगा सहाय प्रेमी द्वारा लिखित सूत पुत्र नाटक कर्ण के बाद सबसे प्रभावशाली एवं केंद्रीय चरित्र श्री कृष्ण का है।
जिन के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएं हैं–
- महा ज्ञानी श्री कृष्ण एक ज्ञानी पुरुष के रूप में प्रस्तुत हुए हैं तथा युद्ध भूमि में अर्जुन के व्याकुल होने पर वे उन्हें जीवन का सार एवं रहस्य समझाते हैं। वह तो स्वयं भगवान के ही रूप है। अतः उनसे अधिक संसार के बारे में और किसी को क्या ज्ञान हो सकता है।
- कुशल राजनीतिज्ञ श्री कृष्ण का चरित्र एक ऐसे कुशल राजनीतिज्ञ के रूप में प्रस्तुत किया गया है जिसके कारण अर्जुन महाभारत के युद्ध में विजई बनाने में सक्षम हो सके। करण को इंद्र से प्राप्त अमोघ अस्त्र को श्री कृष्ण ने घटोत्कच पर चलवा कर अर्जुन की विजय सुनिश्चित कर दी।
- वीरता या उच्च कोटि के गुणों के प्रशंसक अर्जुन के पक्ष में शामिल होने के बावजूद श्री कृष्ण कर्ण की वीरता की प्रशंसा किए बिना रह नहीं सके। वे करण की धनुर्विद्या की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हैं।
- कुशल वक्ता श्री कृष्ण एक कुशल एवं चतुर वक्ता के रूप में सामने आते हैं। श्रीकृष्ण अपनी कुशल बातों से अर्जुन को हर समय प्रोत्साहित करते रहते हैं तथा अंततः युद्ध में उन्हें विजई करवाते हैं।
- अवसर का लाभ उठाने वाले वस्तुतः श्री कृष्ण समय अवसर के महत्व को पहचानते हैं। आया हुआ अफसर फिर लौटकर नहीं आता और उनकी रणनीति आए हुए प्रत्येक अवसर को भरपूर लाभ उठाने की रही है। वे अवसर को चूकते नहीं है यही कारण है कि कारण पराजित हो जाता है और अर्जुन को विजय प्राप्त होती है।
- पश्चाताप की भावना श्री कृष्ण भगवान के स्वरूप होते हुए भी मानवीय भावनाएं रखते हैं इसलिए उनमें पश्चाताप की भावनाएं भी आती हैं। उन्हें इस बात का पश्चाताप है कि उन्होंने करण के साथ न्याय उचित व्यवहार नहीं किया। नियमितीकरण पर अर्जुन द्वारा बाढ़ वर्षा करा कर उन्होंने नैतिक रूप से उचित व्यवहार नहीं किया। उन्हें इस बात का गहरा पश्चाताप है लेकिन कूटनीति एवं रणनीति इसी व्यवहार को उचित ठहराती है। इस प्रकार श्री कृष्ण का चरित्र नाटक में कुछ समय के लिए ही सामने आता है लेकिन वह अत्यंत ही प्रभावशाली एवं सशक्त है जो पाठकों एवं दर्शकों पर गहरा प्रभाव डालता है।
सूत पुत्र नाटक के आधार पर कुंती का चरित्र चित्रण।
डॉ गंगा साहेब प्रेमी द्वारा रचित सूत पुत्र नाटक की प्रमुख नारी पात्र कुंती है उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं–
- तेजस्वी व्यक्तित्व प्रस्तुत नाटक के तीसरे अंक में कुंती के दर्शन होते हैं जब वह कर्ण के पास जाती है उस समय वह विधवा वेश में होती है। उसके बाल काले और लंबे हैं शरीर पर उसने सोयत साड़ी धारण कर रखी है वह अत्यंत सुंदर दिखाई देती है। उसका व्यक्तित्व भारतीय विधवा का पवित्र मनोहारी एवं तेजस्वी व्यक्तित्व है।
- मातृ भावना कुंती का हृदय मात्र भावना से परिपूर्ण है। जैसे ही वह युद्ध का निश्चय सुनती है वह अपने पुत्रों के लिए व्याकुल हो उठती है। उसने आज तक करण को पुत्र रूप में स्वीकार नहीं किया था किंतु फिर भी अपने मातृत्व के बल पर वह उसके पास जाती है और उसके सामने सत्य को स्वीकार करती है कि वह उसकी पहली संतान है जिसका उसने परित्याग कर दिया था।
- स्पष्टवादिता कुंती स्पष्ट वादी है। मां होकर भी वह कर के सामने उसके जन्म और अपनी भूल की कथा को स्पष्ट कह देती है। करण द्वारा यह पूछे जाने पर कि किस आवश्यकता की पूर्ति के लिए तुमने सूर्यदेव से संपर्क स्थापित किया था। वह कहती है पुत्र तुम्हारी माता के मन में वासना का भाव बिल्कुल नहीं था।
- वाकपटु कुंती बातचीत में बहुत कुशल है। वह अपनी बात इतनी कुशलता से कहती है कि करण एक मां की व्यवस्था को समझकर तथा उसकी फूलों पर ध्यान न देकर उसकी बात मान लेता है। वह पहले कर्ण को पुत्र और बाद में कर कह कर अपने मन के भावों को प्रकट करती हैं।
- सूक्ष्म दृष्टि कुंती में प्रत्येक विषय को परखने और उसके अनुसार कार्य करने की सूक्ष्म दृष्टि थी। करण जब उससे कहता है कि तुम यह कैसे जानती हो कि मैं तुम्हारा वही पुत्र हूं जिसे तुम ने गंगा की धारा में प्रवाहित कर दिया था वह कहती है क्या तुम्हारे पैरों की उंगलियां मेरे पैर की उंगलियों से मिलती-जुलती नहीं है?
- कुशल नीतिज्ञ कुंती को राजनीति का सहज ज्ञान प्राप्त था। वह महाभारत युद्ध की समस्त राजनीति भली-भांति समझ रही थी। वह कार्ड को अपने पक्ष में करना चाहती है क्योंकि वह यह जानती है कि दुर्योधन की हटवा देता कार्ड के बल पर टिकी है और उसी के भरोसे वह पांडवों को नष्ट करना चाहता है। जब करण यह कहता है कि पांडव यदि सार्वजनिक रूप से मुझे अपना भाई स्वीकार करें तो उनकी रक्षा करना मेरा कर्तव्य हो सकता है तो वह तत्काल कह देती है करण तुम्हारे पांचों भाई तुम्हें अपना अग्रस विकार करने को प्रस्तुत है यद्यपि पांचों पांडवों को तब तक यह पता भी नहीं था कि कर्ण उसके बड़े भाई हैं।
इस प्रकार नाटककार ने कुंती का चरित्र चित्रण अत्यंत कुशलता से किया है उन्होंने थोड़े ही विवरण में कुंती के चरित्र को कुशलता से दर्शाया है।
सूत पुत्र नाटक के आधार पर परशुराम का चरित्र चित्रण।
डॉ गंगा सहाय प्रेमी द्वारा रचित सूत पुत्र नाटक में परशुराम को ब्राह्मण एवं क्षत्रिय के मिले-जुले रूप वाले महान तेजस्वी और योद्धा के रूप में चित्रित किया गया है। परशुराम कर्ण के गुरु हैं। वह धनुर्विद्या के अद्वितीय ज्ञाता हैं। उन की चारित्रिक विशेषताएं निम्नलिखित हैं–
- व्यक्तित्व परशुराम का व्यक्तित्व शौर्य से परिपूर्ण है। नाटककार के शब्दों में परशुराम का व्यक्तित्व इस प्रकार है–परशुराम की अवस्था 200 वर्ष के लगभग है वह हष्ट पुष्ट शरीर वाले सुंदर व्यक्ति हैं चेहरे पर श्वेत लंबी घनी दाढ़ी और शीश पर लंबी-लंबी जटाएं हैं।
- महान धनुर्धर परशुराम अद्वितीय धनुर्धर है एवं दूर-दूर से ब्राह्मण बालक उनके आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते हैं। भीष्म पितामह भी इनके शिष्य माने जाते हैं जो शिष्य परशुराम से शिक्षा ग्रहण करते थे उन्हें अद्वितीय योग्यता संपन्न माना जाता था।
- सच्चे ब्राह्मण परशुराम सच्चे अर्थों में ब्राह्मण है तथा धन के लोभी ब्राह्मणों को वे नीच मानते हैं। उनके अनुसार विद्यादान ब्राह्मण का सर्व प्रमुख कार्य है। वह कहते हैं ब्राह्मण क्षत्रिय का गुरु हो सकता है सेवक अथवा व्यस्त होगी नहीं गुरुकुल लोभी और शिक्षा का व्यापारी कदापि नहीं होना चाहिए।
- अचूक पारखी परशुराम मानव स्वभाव के अचूक पारखी है तथा वे करण के व्यवहार से जान जाते हैं कि वह बालक ब्राह्मण न होकर छत्रिय पुत्र हैं। वे कहते हैं कि तुम क्षत्रिय हो कर्ण तुम्हारे माता-पिता दोनों ही छत्रिय रहे हैं।
- आदर्श शिक्षक आदर्श शिक्षक हैं एवं शिष्यों को पुत्र व स्नेह करते हैं। एक बार करंट की गंगा में एक किट काट लेता है जिससे रक्त की धारा प्रवाहित होने लगती है। इससे परशुराम रवि भूत होते हैं और तुरंत ही गांव पर नखरे चीनी का प्रयोग करते हैं करण को सांत्वना देते हैं। यह घटना परशुराम के सहृदय होने का प्रतीक है।
- उदार प्रवृत्ति परशुराम अत्यंत उदार हैं। वे वज्र के समान कठोर है लेकिन दूसरों की दयनीय दशा देखकर शीघ्र ही द्रवित भी हो जाते हैं। करण ब्राह्मण का छद्म वेश धारण करके उनसे शिक्षा ग्रहण करने आता है इस सत्य का पता चलने पर वह उसे श्राप दे देते हैं लेकिन जब उसकी दयनीय और सोचनीय दशा को देखते हैं तो उसके प्रति सहृदय हो जाते हैं।
इस प्रकार परशुराम तेजस्वी ब्राह्मण होने के साथ-साथ आदर्श शिक्षक भी है उदार हृदय वाले भी हैं। वे बाल ब्रह्मचारी हैं तथा निस्वार्थ भाव से शिक्षा का दान करने वाले हैं। ब्राह्मणों तथा क्षत्रियों के सभी गुण उनमें विद्यमान हैं।
इस प्रकार से सूत पुत्र नाटक की कहानी समाप्त हो जाती है।
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