न्यायपालिका
समस्त न्यायालयों को सामूहिक रूप से न्यायपालिका कहते हैं। न्यायालयों में शक्ति विभाजन नहीं होता है| भारतीय न्याय-प्रणाली में छोटे-छोटे न्यायालयों के ऊपर प्रत्येक जिले का जिला न्यायालय, उनके ऊपर राज्यों के उच्च न्यायालय और सबसे ऊपर सर्वोच्च
न्यायालय है । 😆
सर्वोच्च न्यायालय
भारत की न्यायिक व्यवस्था इकहरी और एकीकृत है, जिसके सर्वोच्च शिखर पर भारत का सर्वोच्च न्यायारुय है। सर्वोच्च न्यायलय दिल्ली में स्थित है । न्यायपालिका
सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना, गठन, अधिकारिता, शक्तियों के विनियमन से संबंधित विधि-निर्माण की शक्ति भारतीय संसद को प्राप्त है। सर्वोच्च न्यायाठछय का गठन संबंधी प्रावधान अनुच्छेद- 24 में दिया गया है। न्यायपालिका
सर्वोच्च न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) संशोधन विधेयक-209 के अनुसार सर्वोच्च न्यायलय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा 33 अन्य न्यायाधीश हैं। न्यायपालिका
सर्वोच्च न्यायलय में मुख्य न्यायधीश सहित कुल 8 न्यायधीश की व्यवस्था संविधान में मूलत: की गई थी । बाद में काम के बढ़ते दबाब को देखते हुए 1956 ई. में सर्वोच्च न्यायलय अधिनियम में संशोधन कर न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाकर 11 की गई । तद॒परानत 1960 ई. में यहा संख्या पुनः बढ़कर 14, 1978 ई. में 18 तथा 1986 ई. में 26 और 2009 में 31 की गयी। न्यायपालिका
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति
सर्वोच्च न्यायालय के समस्त न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होती है। मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते समय वह इसी न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों से परामर्श कर सकता है; परंतु अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति सदैव मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से करता है। वह चाहे तो सर्वोच्च न्यायालय एवं राज्य के उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीश से भी परामर्श कर सकता है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पद एवं गोपनीयता की शपथ राष्ट्रपति दिलाता है | न्यायपालिका
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के लिए योग्यताएं
सर्वोच्च न्यायलय के न्यायधीश के लिए योग्यताओ का वर्णन निम्नलिखित में विस्तृत रूप में किया गया है-
- वह भारत का नागरिक ही।
- वह किसी उच्च न्यायाल्य अथवा दो या दो से अधिक न्यायालयों में छुगातार कम-से-कम 5 वर्षों तक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुका हो। या, किसी उच्च न्यायालय या न्यायालयों में रूगातार वर्षों तक अधिवक्ता रह चुका हो। या, राष्ट्रपति की दृष्टि में कानून का उच्च कोटि का ज्ञाता हो।
न्यायाधीश के वेतन एवं भत्ते ( न्यायपालिका )
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को ₹ 2,80,000 प्रति माह व अन्य न्यायाधीशों को ₹ 2,50,000 प्रतिमाह वेतन मिलता है। इसके अलावे उन्हें निःशुल्क आवास और अन्य सुविधाएँ, जैसे चिकित्सा, कार, टेलीफोन आदि भी मिलती है। न्यायाधीशों + ८ वेतन 6 उसे मिलनेवाली अन्य सुविधाएँ उसके कार्यकाल में कम नहीं किया जा सकता। न्यायपालिका
सैवानिवृत मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों का पेंशन उनके अंतिम माह के वेतन का 50% निर्धारित है।
पद विमुक्ति
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की पद विमुक्ति के लिए संसद के दोनों सदन एक प्रस्ताव पारित करते हैं जिसे प्रार्थना कहते हैं जिसमें
वह किसी न्यायाधीश को सिद्ध भ्रष्टाचार अथवा .असमर्थता के कारण पद से हटाना चाहते हैं।न्यायपालिका
यह प्रस्ताव दोनों सदनों में, कुल सदस्य संख्या के स्पष्ट बहुमत से पारित होना चाहिए तथा साथ ही यह भी आवश्यक है कि प्रस्ताव पर मतदान के समय जितने सदस्य उपस्थित हैं व मतदान में भाग लेते हैं उनका दो-तिहाई बहुमत उस प्रस्ताव का समर्थन करें।
जब इस प्रकार पास हुआ प्रस्ताव संसद राष्ट्रपति के पास प्रार्थना (समावेदन) के रूप में भेजती है तभी वह आदेश जारी करके संबद्ध न्यायाधीश को हटा सकता है। न्यायपालिका
सबसे अधिक समय तक मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहने वाले न्यायाधीश यशवंत विष्णु चन्द्रचुड़ (22 फरवरी, 1978 से 11 जुलाई
1985 तक 2696 दिन) थे ।
सबसे कम समय तक मुख्य न्यायधीश के पद पर रहने वाले न्यायाधीश कमल नारायण सिंह (25 नवंबर, 1991 से 12 दिसंबर 1991 तक 17 दिन) थे ।
[su_note class=”text alin center”]जब भारतीय न्यायिक पद्धति में लोकहित युकदमा गया तब भारत के मुख्य न्यायमूर्ति पी. एन. भगवती थै।[/su_note]
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश अवकाश प्राप्त करने के बाद भारत में किसी भी न्यायालय या किसी भी अधिकारी के सामने वकालत नहीं कर सकते हैं। न्यायपालिका
मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति लेकर, दिल्ली की अतिरिक्त अन्य किसी स्थान पर सर्वोच्च न्यायाल्य की बैठक बुला सकता है। अब तक हैदराबाद और श्रीनगर में इस प्रकार की बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं।
सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार
1-प्रारम्भिक क्षैत्राधिकार: यह निम्न मामलों में प्राप्त है–
1. संघ तथा एक या एक से अधिक राज्यों के मध्य उत्पन्न विवादों में ।
2. भारत संघ तथा कोई एक राज्य या अनेक राज्यों या एक या एक से अधिक राज्यों के बीच विवादों में ।
3. दो या दो अधिक राज्यों के बीच ऐसे विवाद में, जिसमें उनके वैधानिक अधिकारों का प्रश्न निहित है। न्यायपालिका
» प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय उसीं विवाद को निर्णय के लिए स्वीकार करेगा, जिसमें किसी तथ्य या विधि का प्रश्न शामिल है।
2-अपीलीय क्षेत्राधिकार : देश का सबसे बड़ा अपीलीय नन््यायाल्रूय सर्वोच्च न्यायालय है। इसे भारत के सभी उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार है। इसके अन्तर्गत तीन प्रकार के प्रकरण आते हैं—] . सांविधानिक, 2. दीवानी और 3. फौजदारी | न्यायपालिका
3-परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार : राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह सार्वजनिक महत्व के विवादों पर सर्वोच्च न्यायालय का परामर्श माँग सकता है (अनुच्छेद-143) | न्यायालय के परामर्श को स्वीकार या अस्वीकार करना राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करता है।
4. पुनर्विचार संबंधी क्षेत्राधिकार : संविधान के अनुच्छेद-37 के अनुसार सर्वोच्च न्यायाह्य को यह अधिकार प्राप्त है कि वह
स्वयं द्वारा दिये गये आदेश या निर्णय पर पुनर्विचार कर सके तथा यदि उचित समझे तो उसमें आवश्यक परिवर्तन कर सकता है |
5. अभिलेख न्यायालय : संविधान का अनु.-29 सर्वोच्च न्यायालय को अभिलेख न्यायालय का स्थान प्रदान करता है। इसका आशय
यह है कि न्यायालय के सभी निर्णयों को रिकॉर्ड या अभिलेख के रूप में सुरक्षित रखा जाता है। इन विषयों को भविष्य में देश के
किसी भी न्यायालय में नजीर के रूप में पेश किया जा सकता है ।
6. मौलिक अधिकारों का रक्षक : भारत का सर्वोच्च न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का रक्षक है | अनुच्छेद 32 सर्वोच्च न्यायालय को विशेष रूप से उत्तरदायी ठहराता है कि वह मौलिक अधिकारों $ को णागू कराने के छिए आवश्यक कार्रवाई करे |
न्यायलय मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेथ, अधिकार पच्छा-लेख और उद्लेषण के लेख जारी कर सकता है। न्यायपालिका
[su_note class=”text alin center”]सर्वीच्च न्यायालय में संविधान के निर्वचन से सम्बंधित मामले की सुनवाई करने के लिए न्यायाधीशों की स॑ख्या कम-से-कम पाँच होनी चाहिए [ अनुच्छेद-145 (3) ][/su_note]
उच्च न्यायलय
>- संविधान के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायलय होगा (अनु.-274), लेकिन संसद विधि द्वारा दो या दो से अधिक
राज्यों और किसी संघ राज्य क्षेत्र के लिए एक ही उच्च न्यायारूय स्थापित कर सकती है (अनु.-237) |
>- वर्तमान में भारत में 25 उच्च न्यायलय हैं, जिनमें से तीन उच्च न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र एक राज्य से अधिक है।
>- केन्द्रशासित प्रदेश दिल्ली और जम्मू कश्मीर में उच्च न्यायलय है । न्यायपालिका
>- प्रत्येक उच्च न्यायलय का गठन एक मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों से मिछाकर किया जाता है। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति
के द्वारा होती है (अनुच्छेद-272) भिन्न-भिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या अछूग-अछग होती है।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए योग्यताएँ
1. भारत का नागरिक हो।
2. कम-से-कम दस वर्ष तक न्यायिक पद धारण कर चुका हो अथवा, किसी उच्च न्यायारूय में या एक से अधिक उच्च न्यायालयों में
लगातार 10 वर्षों तक अधिवक्ता रहा हो । न्यायपालिका
उच्च न्यायारूय के न्यायाधीश को उस राज्य, जिसमें उच्च न्यायालय स्थित है, का राजयपाल उसके पद की शपथ दिलाता है। उच्च न्यायाकय के न्यायाधीशों का अवकाश ग्रहण करने की अधिकतम उम्र सीमा 62 वर्ष (65 वर्ष प्रस्तावित) है | उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अपने पद से, राष्ट्रपति को संबोधित कर, कभी भी त्याग-पत्र दे सकता है।
>” उच्च न्यायाल्रूय के न्यायाधीश को उसी प्रकार अपदस्थ किया जा सकता है, जिस प्रकार उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश पद मुक्त
किया जाता है। न्यायपालिका
>- जिस व्यक्ति ने उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायाधीश के रूप में कार्य किया है, वह उस न्यायालय में वकाछत नहीं कर सकता | किन्तु
वह किसी दूसरे उच्च न््यायाल॒य में अथवा उच्चतम न्यायालय में वकाछूत कर सकता है।
>- राष्ट्रपति आवश्यकतानुसार किसी भी उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि कर सकता है अथवा अतिरिक्त न्यायाधीशों
की नियुक्ति कर सकता है।
>- राष्ट्रपति उच्च न्यायाढ॒य के किसी अवकाशणप्राप्त न्यायाधीश को भी उच्च न्यायालूय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करने का अनुरोध
कर सकता है। न्यायपालिका
>> उच्च न््यायारूय एक अभिलेख न्यायारूय होता है। उसके निर्णय आधिकारिक माने जाते हैं तथा उनके आधार पर न््यायारूय अपना निर्णय देते हैं (अनुच्छेद-275) भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श कर राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश का स्थानांतरण किसी दूसरे उच्च न्यायालय में कर सकता है।
उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार
प्रारंभिक क्षेत्राधिकार : प्रत्येक उच्च न्यायालय को नौकाधिकरण, इच्छा-पत्र, तछाक, विवाह, (कस्पनी-कानून) न््यायारृूय की
अवमानना तथा कुछ राजस्व संबंधी प्रकरणों नागरिकों के मौलिक अधिकारों के क्रियान्वयन (अनुच्छेद-226) के लिए आवश्यक
निर्देश विशेषकर बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, निषेध, उद्रेषण तथा अधिकार-पृच्छा के छेख जारी करने के अधिकार प्राप्त हैं।
लोक अदालत : लोक अदालत कानूनी विवादों के मैत्रीपूर्ण समझौते के लिए वैधानिक मंच है। विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 (संशोधन 2002) द्वारा लोक उपयोगी सेवांओं के विवांदों के संबंध में मुंकदमेबाजी पूर्व सुरूह और निर्धारण के लिए स्थायी लोक अदालतों की स्थापना के लिए प्रावधान करता है। न्यायपालिका
ऐसे फौजदारी विवादों को छोड़कर जिनमें समझौता नहीं किया जा सकता, दीवानी, फौजदारी, राजस्व अदालतों में लंबित सभी कानूनी विवाद मैत्रीपूर्ण समझौते के लिए छोक अदाछत में लाये जा सकते हैं। कानूनी विवादों को छोक अदालतें मुकदमा दायर होने से पूर्व भी अपने यहाँ स्वीकार कर सकती हैं।
छोक अदाछत के निर्णय अन्य किसी दीवानी न्यायारूय के समान ही दोनों पक्षों पर छागू होते हैं। यह निर्णय अंतिम होते हैं। छोक अदालतों द्वारा दिये गये निर्णयों के विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती | देश के छगभग सभी जिलों में स्थायी तथा सतत छोक अदालतें स्थापित की गई हैं। लोक अदालत ₹ 5 लाख तक के दाबे पर विचार कर सकती है।
[su_note class=”text alin center”]दिल्ली में पहली लोक अदालत अक्टूबर 1985 को बैठी थी तथा इसने एक दिन में दुर्धटना के शिकार लोगों के मुआवजे संबंधी 150 मामले निपटाए थे। [/su_note]
2. अपीलीय क्षेत्राधिकार : फौजदारी मामलों में अगर सत्र न्यायाधीश ने मृत्युदंड दिया हो, तो उच्च न्यायारूय में उसके विरुद्ध अपील हो सकती है। 2. दीवानी मामलों में उच्च न्यायारूय में उन सब मामलों की अपील हो सकती है, जो ₹ 5 छाख या उससे अधिक संपत्ति से संबद्ध हो। 3. उच्च न््यायाक॒य पेटेंट और डिजाइन, उत्तराधिकार, भूमि-प्राप्ति, दिवालियापन और संरक्षकता आदि मामलों में भी अपील सुनता है। न्यायपालिका
3. उच्च न्यायालय में मुकदमों का हस्तांतरण : यदि किसी उच्च न्यायालय को ऐसा छगे कि जो अभियोग अधीनस्थ न्यायालय में
द विचाराधीन है, वह विधि के किसी सारगर्भित प्रश्न से संबद्ध है॥ ता वह उसे अपने यहाँ हस्तांतरित कर, या तो उसका निषटारा स्वय कर देता है या विधि से संबद्ध प्रश्त को निपषटाकर अधीनस्थ न्यायालय को निर्णय के लिए बापस भेज देता है।
4. प्रशासकी अधिकार : उच्च न्यायालय को अपने अधीनस्थ में नियुक्त, पदावनति, पदोन्नति तथा छुट्टियों के संबंध में नियम बनाने का अधिकार है। न्यायपालिका
[su_note class=”text alin center”]उच्च न्यायालय राज्य में अपील का सर्वोच्च न्यायालय नहीं है। राज्य सूची से संबद्ध विषयों में थी उच्च न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील हो सकती है।[/su_note]
उपभोक्ता संरक्षण
>-भारत सरकार ने उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 पारित किया।
– उपभोक्ता समस्याओं के निपटारे के लिए जिला स्तर पर, जिला तथा राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग का गठन किया गया।
>- जिला फोरम 20 लाख तक के मामलों की, राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग 20 लाख से एक करोड़ तक के मामलों की एवं
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग एक करोड़ से अधिक कीमत वाले मामलों की सुनवाई करता है। न्यायपालिका
यह भी पड़े -> भारतीय नागरिकता।