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भारत की संचित निधि

भारत की संचित निधि। भारत सरकारें को प्राप्त सभी राजस्व (जैसे आयकर, निगम आयकर, सीसा शुल्क, उत्पादन शुल्क, ट्रैजरी बिल जारीं करके लिया गया ऋण, आंतरिक एवं बाह्य ऋण, दिए गए ऋण की अदायणगी से प्राप्त राशि आदि) की एक निधि है जिसे भारत की संचित निधि’ कहा जाता है।

संचित निधि में से कोई धनराशि संसद द्वारा विनियोग विधेयक पारित कर दिये जाने के पश्चात्‌ ही निकाली या व्यय की जा सकती है अन्यथा नहीं। अत: विनियोग विधेयक को हर हालत में नए वित्तीय वर्ष के प्रारंभ ( 1 अप्रैल) से पहले पारित करा लेती है किन्तु कभी-कभी ऐसी परिस्थिति आ जाती है जब बजट प्रक्रिया एक अप्रैल से प्रहले संपन्न नहीं हो पाती है। भारत की संचित निधि 

भारत की संचित निधि


इसके लिए जब तक बजट प्रक्रिया घूरी नहीं हो जाती है उस दौरान व्यय के लिए लेखानुदान पारित कर घन की व्यवस्था की जाती है। यानी लेखानुदान सरकार के व्यय पक्ष से संबंधित होता है जो बजट प्रक्रिया पूरी न होने के चलते व्यय की व्यवस्था करने के लिए पारित किया जाता है।लेखानुदान का प्रावधान स्थायी एवं अस्थायी दोनों प्रकार की सरकारों के द्वारा किया जा सकता है।भारत की संचित निधि

चुनावी वर्ष में लोकसभा के विघटन से पहले और नई सरकार के गठन होने तक वित्तीय वर्ष के एक भाग के लिए व्यय की व्यवस्था के लिए अंतरिम बजट का प्रावधान किया जाता है । लेखाचुवान और अंतरिम बजद के बीच अंतर यह है कि लेखाचुवान पारित करने के कारण व्यय के लिए धन की व्यवस्था करना होता है। भारत की संचित निधि।

जबकि अंतरिम बजट में व्यय एवं प्राप्तियों दोनों का विवरण होता है। अंतरिम बजट, सामान्य बजट से इस रूप में अलग होता है कि उसे चुनावी वर्ष में नई सरकार के गठन तक की अवधि के लिए किया जाता है। आगे नई सरकार अपने हिसाब से बजट प्रस्तुत करती है।

भारत की संचित निधि पर भारित व्यय निम्न हैं- 1. राष्ट्रपति का वेतन व भत्ता और अन्य व्यय, 2. राज्यसभा सभापति और उपसभापति
तथा छोकसभा अध्यक्ष और उप्राध्यक्ष के वेतन एवं भत्ते, 3. सर्वोच्च न्यायलय  के न्यायाधीशों का वेतन, भत्ता तथा पेंशन और उच्च
न्यायालय के न्यायाधीशों का पेंशन । 4. भारत के नियंत्रक-महालेखा-परीक्षक का वेतन, भत्ता तथा पेंशन, 5.ऐसा ऋण-भार, जिनका
दायित्व भारत सरकार पर है, 6. भारत सरकार पर किसी न्यायलय द्वारा दी गयी डिक्री या पंचाट, 7. कोई अन्य व्यय जो संविधान
द्वारा या संसद निधि द्वारा इस प्रकार भारित घोषित करे।

भारत के लोक बित्त पर संसदीय नियंत्रण की विधियाँ

  1. संसद के सम्मुख वार्षिक वित्तीय विवरण का बन प्रस्तुत किया जाना : लोक वित्त पर नियंत्रण रखने के लिए अनुच्छेद 112 में प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के संदर्भ में संसद के दोनों सदनों के समक्ष वार्षिक वित्तीय विवरण प्रस्तुत करवाएगा | भारत की संचित निधि।
  2. बिनियोजन विधेयक के पारित होने के बाद ही भारत की संचित निधि से मुद्रा निकाल पाना : भारत की संचित निधि से राशि
    तभी निकाली जा सकती है जब इसके लिए विनियोग विधेयक को पारित करा लिया जाये।
  3. अनुपूरक अनुदानों तथा लेखानुदान का प्रावधान : अनुपूरक अनुदानों एवं लेखानुदान के माध्यम से भी लोक वित्त पर प्रभावी नियंत्रण रखा जाता है। अनुपूरक अनुदान की माँग को उस समय सरकार के द्वारा लोक सभा में लाया जाता है जब कभी वित्तीयवर्ष की समाप्ति से पहले सरकार को यह अनुभव होता है कि पहले स्वीकृत किया गया अनुदान उस प्रयोजन के लिए अपर्याप्त है। इसी प्रकार, जब एक अप्रैल से पूर्व सरकार विनियोग विधेयक पारित नहीं करा पाती तो सरकार लेखानुदान के माध्यम से तब तक के खर्च का प्रबंध करती है, जब तक कि पुत्र: विनियोग विधेयक न पारित करा लिया जाये। ऐसा सामान्यतः चुनावी वर्ष या लोकसभा के विघटन होने की स्थिति में होता है।
  4. संसद में वित्त विधेयक का प्रस्तत किया जाना : संसद में वित्त विधेयक के द्वारा भी लोक वित्त पर नियंत्रण रखा जाता है। वित्त विधेयक को बजट सन्न में विनियोग विधेयकों के साथ-साथ पारित  किया जाता है।

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