Kanhaiyalal Mishra Prabhakar |कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ | UP Board Exam 2025
Kanhaiyalal Mishra Prabhakar | कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ का जन्म सन् 1906 में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जनपद के देवबंद नामक स्थान पर एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित मादत्त मिश्र था, जो कर्मकाण्डी ब्राह्मण थे। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण प्रभाकर जी की प्रारम्भिक शिक्षा ठीक प्रकार से नहीं हो पाई। कुछ समय तक इन्होंने खुर्जा की संस्कृत पाठशाला में अध्ययन किया।
वहीं एक दिन राष्ट्रीय नेता आसफ अली का भाषण सुनकर वे अत्यंत प्रभावित हुए और परीक्षा बीच में छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। इसके बाद उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन राष्ट्रसेवा के लिए समर्पित कर दिया। भारत के स्वतंत्र होने के बाद प्रभाकर जी ने पत्रकारिता को अपने कार्यक्षेत्र के रूप में चुना।
साहित्यिक सेवाएँ
प्रभाकर जी ( Kanhaiyalal Mishra Prabhaka ) हिन्दी के श्रेष्ठ रेखाचित्रकारों, संस्मरणकारों एवं निबंधकारों में गिने जाते हैं। उनकी रचनाओं में आत्मपरकता, चित्रात्मकता और संस्मरणात्मकता की विशेषता प्रमुख रूप से देखने को मिलती है। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में उन्होंने कई स्वतंत्रता सेनानियों के मार्मिक संस्मरणों की रचना की। रिपोर्ताज, संस्मरण तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण और अविस्मरणीय है।
प्रमुख कृतियाँ
प्रभाकर जी ( Kanhaiyalal Mishra Prabhaka ) की प्रमुख प्रकाशित रचनाएँ इस प्रकार हैं:

- रेखाचित्र: नई पीढ़ी के विचार, ज़िन्दगी मुस्कराई, माटी हो गई सोना, भूले-बिसरे चेहरे
- लघुकथाएँ: आकाश के तारे, धरती के फूल
- संस्मरण: दीप जले शंख बजे
- ललित निबंध: क्षण बोले कण मुस्काए, बाजे पायलिया के घुंघरू
- सम्पादन कार्य: नया जीवन तथा विकास नामक समाचार-पत्रों का सम्पादन किया, जिनमें उनके सामाजिक, राजनीतिक एवं शैक्षिक विचार प्रकाशित हुए।
- विशेष कृति: महके आँगन चहके द्वार भी उनकी अत्यंत चर्चित रचना रही है।
भाषा-शैली
प्रभाकर जी ( Kanhaiyalal Mishra Prabhaka ) की भाषा मुख्यतः शुद्ध, तत्सम प्रधान तथा साहित्यिक खड़ी बोली है। उसमें सहजता, स्पष्टता और संप्रेषणीयता है। मुहावरों एवं लोकोक्तियों के प्रयोग से उनकी भाषा और भी अधिक प्रभावशाली हो जाती है। उनका वाक्य विन्यास सरल, सशक्त तथा संप्रेषण में सक्षम है। उन्होंने भावात्मक, चित्रात्मक, वर्णनात्मक और व्यंग्यात्मक शैली का भी कुशलतापूर्वक प्रयोग किया है।
हिन्दी साहित्य में स्थान
कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ ( Kanhaiyalal Mishra Prabhaka ) मौलिक प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। उन्होंने हिन्दी गद्य को विविध रूपों में समृद्ध किया। वे एक सजग मानवतावादी तथा सामाजिक मूल्यों के संरक्षक लेखक के रूप में सदैव स्मरण किए जाएँगे।
रॉबर्ट नर्सिंग होम में ( Kanhaiyalal Mishra Prabhakar |कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’)
कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर'( Kanhaiyalal Mishra Prabhaka ) द्वारा रचित ‘रॉबर्ट नर्सिंग होम में’ एक अत्यंत संवेदनशील और मार्मिक रिपोर्ताज है, जो मानवीय संवेदनाओं, सेवा, समता, परोपकार, और एकता का गहरा संदेश प्रस्तुत करता है। लेखक ने इंदौर स्थित रॉबर्ट नर्सिंग होम की एक साधारण घटना के माध्यम से यह दर्शाया है कि सच्ची मानवता धर्म, जाति, या राष्ट्र की सीमाओं से परे होती है। इस पाठ का उद्देश्य न केवल मानवता की उपासना करना है, बल्कि यह यह भी बताना है कि सच्ची सेवा केवल संवेदनशीलता और प्रेम से ही हो सकती है, और यह किसी भी संकीर्ण सीमा से परे है।
लेखक का परिचारक बनना
यह कहानी एक साधारण घटना से प्रारंभ होती है, जब लेखक अपने मित्र के घर पर ठहरे होते हैं और उनकी गृहस्वामिनी अचानक बीमार हो जाती है। लेखक अपनी मित्र को इंदौर के रॉबर्ट नर्सिंग होम में भर्ती कराते हैं और स्वयं उनके परिचारक बन जाते हैं। इस अनुभव से लेखक ( Kanhaiyalal Mishra Prabhaka ) को सेवा और ममता के वास्तविक अर्थ का एहसास होता है। लेखक ( Kanhaiyalal Mishra Prabhaka ) के इस अनुभव से यह पता चलता है कि सच्ची मानवता और सेवा में केवल एक असल भावना और समर्पण की आवश्यकता होती है, और ये दोनों ही गुण समाज के हर व्यक्ति में समाहित हो सकते हैं।
मदर मार्गरेट: सेवा की प्रतिमूर्ति
लेखक ( Kanhaiyalal Mishra Prabhaka ) की मुलाकात नर्सिंग होम में मदर मार्गरेट से होती है। उनका व्यक्तित्व छोटा था, परंतु उनके भीतर एक विशेष प्रकार की ऊर्जा, फुर्ती और ममता थी। वे चालीस वर्षों से भारत में सेवा कार्य कर रही थीं, और उनकी हँसी मोतियों की तरह बिखरती थी। उनके कार्य में कोई भी भेदभाव नहीं था, और उनका सेवा कार्य मशीन से भी तेज था। लेखक ( Kanhaiyalal Mishra Prabhaka ) ने उन्हें “मक्खियों को आदमी बनाने वाला जीवन का जादू” कहा है, क्योंकि उनके कार्यों से निराश रोगियों में एक नई उम्मीद और ऊर्जा का संचार होता था। यह उनके सेवा भाव का ही परिणाम था कि उनका हर कार्य एक मिसाल बन गया।
मदर मार्गरेट ने यह साबित कर दिया कि सेवा किसी यांत्रिक प्रक्रिया का नाम नहीं, बल्कि एक संवेदनशील और समझदार हृदय की क्रिया है। उनका यह संदेश था कि जब तक हम सेवा करते हैं, तब तक हमें किसी भेदभाव, धर्म, जाति या राष्ट्र के बारे में नहीं सोचना चाहिए।
मदर टेरेसा और क्रिस्ट हैल्ड: मानवता की मिसाल
लेखक( Kanhaiyalal Mishra Prabhaka ) ने मदर टेरेसा और क्रिस्ट हैल्ड का उल्लेख किया है, जो एक फ्रांसीसी और जर्मन नर्स थीं। ये दोनों नर्सें दो विरोधी देशों से थीं, फिर भी उनके बीच प्रेम और आत्मीयता का संबंध था। ये दोनों नर्सें अपने-अपने राष्ट्रों की युद्धों में शामिल रही थीं, लेकिन जब वे रॉबर्ट नर्सिंग होम में एक साथ सेवा कर रही थीं, तो उनके बीच कोई भेदभाव नहीं था। लेखक ( Kanhaiyalal Mishra Prabhaka ) का कहना है कि मानवीय भावनाएं देशों और धर्मों से परे होती हैं। उन्होंने कहा, “हिटलर बुरा था, उसने लड़ाई छेड़ी, पर उससे इस लड़की का भी घर ढह गया और मेरा भी; हम दोनों एक।” इस वाक्य से यह स्पष्ट होता है कि मानवीयता की भावना युद्ध और देश की सीमाओं से परे होती है।
लेखक ( Kanhaiyalal Mishra Prabhaka ) ने यह अनुभव किया कि भले ही ये दोनों नर्सें भिन्न देशों से थीं, लेकिन मानवता के नाम पर उनके बीच कोई भेदभाव नहीं था। यह चित्रण इस तथ्य को स्थापित करता है कि मानवता का कोई रंग, धर्म, या राष्ट्र नहीं होता।
भेदभाव की दीवारें: मनुष्य द्वारा निर्मित
लेखक ( Kanhaiyalal Mishra Prabhaka ) ने अपने अनुभव से यह निष्कर्ष निकाला कि धर्म, जाति, वर्ग और राष्ट्र जैसी भेदभाव की दीवारें केवल मनुष्य ने खुद बनाई हैं। समाज में जो दीवारें खड़ी की गई हैं, वे वास्तव में मानसिकता और स्वार्थ की उपज हैं। लेखक ने इस बारे में एक महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किया, “मनुष्य-मनुष्य के बीच मनुष्य ने ही कितनी दीवारें खड़ी की हैं—ऊँची दीवारें, मजबूत फौलादी दीवारें, भूगोल की दीवारें, जाति-वर्ग की दीवारें, कितनी मनहूस, कितनी नगण्य, पर कितनी अजेय।” इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि भेदभाव केवल समाज में संकीर्ण दृष्टिकोण के कारण उत्पन्न होते हैं।
लेखक ( Kanhaiyalal Mishra Prabhaka ) ने इस बात को स्वीकार किया कि समाज में भेदभाव की दीवारों का कोई वास्तविक आधार नहीं है। ये केवल मनुष्य के स्वार्थ की वजह से खड़ी की जाती हैं। अगर हम इन दीवारों को तोड़ दें, तो हम एक बेहतर और सशक्त समाज की नींव रख सकते हैं। इस तरह, लेखक ने मानवता की असली पहचान को दिखाने के लिए इन दीवारों को दूर करने की आवश्यकता बताई।
परोपकार और मानवीयता
पाठ में नर्सों द्वारा दिखाई गई परोपकार और मानवीयता का जिक्र किया गया है। ये नर्सें नि:स्वार्थ भाव से काम करती थीं और उनका कार्य न केवल चिकित्सकीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत प्रभावशाली था। लेखक ने इन नर्सों के कार्यों को गीता के सिद्धांतों से जोड़ा, और यह बताया कि सेवा के वास्तविक रूप को केवल वे लोग समझ सकते हैं, जो इसे अपने जीवन में उतारते हैं।
लेखक ने यह भी कहा कि, “हम भारतीय तो गीता को पढ़ते हैं, समझते हैं और याद रखते हैं। इतना करके ही हम अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं, लेकिन ये महिला नर्सें तो उस गीता के सार को अपने जीवन में उतारती हैं।” इसका मतलब यह है कि हम भारतीय गीता के सिद्धांतों को सिर्फ पढ़ते हैं, जबकि इन नर्सों ने उन सिद्धांतों को अपने कार्यों के माध्यम से सही मायनों में आत्मसात किया है।
निष्कर्ष
‘रॉबर्ट नर्सिंग होम में’ पाठ मानवता, सेवा और समता का जीवंत उदाहरण है। यह पाठ हमें सिखाता है कि सच्ची मानवता किसी भी धर्म, जाति या राष्ट्र की सीमाओं से परे होती है। लेखक ने अपने अनुभवों के माध्यम से यह संदेश दिया है कि हमें उदार मन, सद्भावना और नि:स्वार्थ भाव से मानव सेवा करनी चाहिए। यह पाठ न केवल एक प्रेरणा है, बल्कि यह हमें यह भी बताता है कि परोपकार और मानवता को अपने जीवन में उतारने से ही समाज में वास्तविक बदलाव लाया जा सकता है।
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