श्रवण कुमार। खंडकाव्य। class-12th|
डॉक्टर शिवबालक शुक्ला द्वारा रचित श्रवण कुमार अध्याय में 9 सर्ग है प्रत्येक शर्मा का वर्णन निम्न प्रकार से दिया गया है। श्रवण कुमार का चरित्र चित्रण अपने आप में एक सीख है।
प्रथम सर्ग (अयोध्या )
अयोध्या के गौरवशाली इतिहास में अनेक महान राजाओं की गौरव गाथा छिपी हुई है अनेक राजाओं जैसे पृथु इस्साकू ध्रुव सगर दिलीप रघु ने अयोध्या को प्रसिद्धि एवं प्रतिष्ठा के शिखर पर पहुंचाया। इसी अयोध्या में सत्यवादी हरिश्चंद्र और गंगा को पृथ्वी पर लाने वाले राजा भागीरथ ने शासन किया। राजा रघु के नाम पर ही स्कूल का नाम रघुवंश पड़ा।
महाराज दशरथ राजा अज के पुत्र थे। अयोध्या के प्रतापी शासक राजा दशरथ ने राज्य में सर्वस्व शांति थी। चारों ओर कला कौशल उपासना संयम तथा धर्म साधना का साम्राज्य था। सभी वर्ग संतुष्ट थे। महाराज दशरथ स्वयं एक महान धनुर्धर थे जो शब्दभेदी बाण चलाने में सिद्धहस्त थे।
द्वितीय सर्ग (आश्रम)
सरयू नदी के तट पर एक आश्रम था जहां श्रवण कुमार अपने वृद्धि एवं नेत्र हीन माता-पिता के साथ सुख एवं शांति पूर्वक निवास करता था। वह अत्यंत आज्ञाकारी एवं अपने माता पिता का भक्त था। उनकी तपस्या के प्रभाव से हिंसक पशु भी अपने हिंसा भूल गए थे।
तृतीय सर्ग (आखेट)
1 दिन गोधूलि बेला में राजा दशरथ विश्राम कर रहे थे तभी उनके मन में आखेट की इच्छा जागृत हुई। उन्होंने अपने साथी को बुलावा भेजा। रात्रि में सोते समय राजा ने एक विचित्र स्वप्न देखा कि एक हिरण का बच्चा उनके बाण से मर गया और हिरनी खड़ी आंसू आ रही है।
राजा सूर्योदय से बहुत पहले जग कर आखेट हेतु वन की ओर प्रस्थान कर देते हैं। दूसरी ओर श्रवण कुमार माता पिता की आज्ञा से जल लेने के लिए नदी के तट पर जाता है। जल में पात्र डुबाने की धूनी को किसी हिंसक पशु की ध्वनि समझकर राजा दशरथ शब्दभेदी बाण चला देते हैं।
यह बात सीधी श्रवण कुमार को जाकर लगता है वह चित्रकार कर उठता है श्रवण कुमार की चीख सुन राजा दशरथ चिंतित होते हैं।
चतुर्थ सर्ग (श्रवण)
राजा दशरथ के बाण से घायल श्रवण कुमार को यह समझ में नहीं आता है कि उसे किस ने बाण मारा वह अपने अंधे माता पिता की चिंता में व्याकुल है कि अब उसके माता-पिता की देखभाल कौन करेगा
वह बड़े दुखी मन से राजा से कहता है कि उन्होंने एक नहीं बल्कि एक साथ तीन प्राणियों की हत्या कर दी है। उसने राजा से अपने माता-पिता को जल पिलाने का आग्रह किया। इतना कहते ही उसकी मृत्यु हो गई। राजा दशरथ अत्यंत दुखी हुए और से जल लेकर श्रवण कुमार के माता पिता के पास गए।
पंचम सर्ग (दशरथ)
राजा दशरथ दुख एवं चिंता से भरकर सिर झुकाए आश्रम की ओर जा रहे थे। वे अत्यंत आत्मग्लानि एवं अपराध भावना से भरे हुए थे। पश्चाताप आशंका और भय से भर कर के आश्रम पहुंचते हैं।
षष्ठ सर्ग (संदेश)
श्रवण के माता पिता अपने आश्रम में पुत्र के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। वह इस बात से आशंकित थे कि अभी तक उनका पुत्र लौटकर क्यों नहीं आया।
उसी समय उन्होंने किसी के आने की आहट सुनी। वे राजा दशरथ को श्रवण कुमार ही समझ रहे थे। जब राजा ने उन्हें जल लेने के लिए कहा तो उनका भ्रम दूर हुआ। राजा दशरथ ने उन्हें अपना परिचय दिया और जल लाने का कारण बताया। श्रवण की मृत्यु का समाचार सुनकर उसके वृद्ध माता-पिता अत्यंत व्याकुल हो उठे।
सप्तम सर्ग (अभिशाप)
सप्तम सर्ग में ऋषि दंपति के करुण विलाप का चित्रण है वह आंसू बहाते हुए विलाप करते हुए नदी के तट पर पहुंचे और विलाप करते करते राजा दशरथ से कहते हैं कि यद्यपि यह प्राप्त में अनजाने में हुआ है पर इसका दंड तो तुम्हें भुगतना ही होगा।
वह शराब देते हैं कि जिस प्रकार पुत्र शोक में मैं प्राण त्याग रहा हूं उसी प्रकार एक दिन तुम भी पुत्र वियोग में प्राण त्याग दोगे।
अष्टम सर्ग (निर्वाण)
श्रवण कुमार के माता-पिता द्वारा दिए गए सर आपको सुनकर राजा अत्यंत दुखी होते हैं। श्रवण के माता पिता जब रो-रोकर शांत होते हैं तो उन्हें श्राप देने का दुख होता है।
अब पिता को आत्मबोध होता है और वे सोचते हैं कि यह तो नियति का विधान था। तभी श्रवण कुमार अपने दिव्य रूप में प्रकट हुआ और उसने अपने माता-पिता को सांत्वना दी। पुत्र सुख में व्याकुल माता-पिता भी अपने प्राण त्याग देते हैं।
नवम सर्ग (उपसंहार)
राजा दशरथ दुखी मन से अयोध्या लौट आते हैं। वे इस घटना का जिक्र किसी से नहीं करते हैं परंतु राम जब वन को जाने लगते हैं तो उन्हें उस सर आपका स्मरण हो आता है और वह यह बात अपनी रानियों को बताते हैं।
श्रवण कुमार खंडकाव्य का उद्देश्य
डॉक्टर शिवबालक शुक्ला द्वारा रचित प्रस्तुत खंडकाव्य का उद्देश्य है कि पाश्चात्य सभ्यता के रंग में रंगी युवा पीढ़ी जीवन मूल्यों से दूर ना हो बच्चे अपने कर्तव्य से विमुख न हो बल्कि वह बड़ों का यथा चित्र सम्मान करें।
आज युवा पीढ़ी में अनैतिकता उद्दंडता और अनुशासनहीनता बढ़ती जा रही है वह अपने गुरुजनों और माता पिता के प्रति श्रद्धा रहित होती जा रही है। अतः आवश्यकता इस बात की है युवा वर्ग में त्याग सहिष्णुता दया परोपकार क्षमा सिलता उच्च संस्कार भावात्मक एकता आदि नैतिक आदर्शों एवं जीवन मूल्यों की प्राण प्रतिष्ठा की जाए।
कवि ने इस खंडकाव्य के माध्यम से युवा वर्ग को श्रवण कुमार की भांति बनने की प्रेरणा दी है। उनकी बातें वह भी अपने जीवन में अपने आचरण में इन आदर्शों को उतार सकें और गर्व से यह कह सके कि मुझे बालों की चिंता नहीं सता रही है मुझे अपनी मृत्यु का भय नहीं है लेकिन मुझे अपने वृद्ध एवं नेत्रहीन माता-पिता की चिंता है कि मेरे बाद उनका क्या होगा?
श्रवण कुमार खंडकाव्य के शीर्षक की सार्थकता
डॉक्टर शिवबालक शुक्ला द्वारा रचित श्रवण कुमार खंडकाव्य का प्रमुख पात्र श्रवण कुमार के रूप में प्रस्तुत किया गया है इस प्रमुख पात्र की चरित्र गत विशेषताओं पर प्रकाश डालना ही कवि का प्रमुख उद्देश्य है। खंडकाव्य का मुख्य उद्देश्य होने के कारण इसका शीर्षक श्रवण कुमार रखा गया है जो कथा अनुसार पूर्णतः उपयुक्त प्रतीत होता है। श्रवण कुमार खंडकाव्य का सर्वाधिक महत्वपूर्ण व मार्मिक प्रसंग दशरथ का श्रवण कुमार के पिता द्वारा साबित होना है परंतु इस पसंद की अभिव्यक्ति का भान श्रवण कुमार के व्यक्ति से ही बद्ध है।
खंडकाव्य की कथावस्तु के अनुसार दशरथ का चरित्र सक्रियता की दृष्टि से सर्वाधिक है परंतु दशरथ के चरित्र के माध्यम से भी श्रवण कुमार के चरित्र की विशेषताएं ही प्रकाशित हुई है। इस खंडकाव्य के मुख्य पात्र श्रवण कुमार ही है और श्रवण कुमार शीर्षक उपयुक्त है।
श्रवण कुमार का चरित्र चित्रण
डॉक्टर शिवबालक शुक्ला द्वारा रचित श्रवण कुमार खंडकाव्य का नायक रिसीव पुत्र श्रवण कुमार है। वह सरयू नदी के तट पर अपने अंधे माता पिता के साथ एक आश्रम में रहता है। कवि ने श्रवण कुमार के चरित्र को बड़ी कुशलता पूर्वक चित्रित किया है उसकी चारित्रिक विशेषताएं निम्नलिखित हैं
- मातृ पितृ भक्त श्रवण कुमार एक आदर्श मातृ पितृ भक्त पुत्र है। वह हमेशा अपने माता-पिता की सेवा करता है। वह अपने माता-पिता का एकमात्र सहारा है। वह उन्हें कावड़ में बिठाकर विभिन्न तीर्थ स्थानों की यात्रा कराता है। मृत्यु के समीप पहुंचने पर भी उसे सिर्फ अपने माता-पिता की ही चिंता सताती है।
- सत्यवादी श्रवण कुमार सत्यवादी है। जब राजा दशरथ ब्रह्म हत्या की संभावना प्रकट करते हैं तो वह उन्हें साफ-साफ बता देता है कि वह ब्रह्म कुमार नहीं है। उसके पिता वैश्य और माता शुद्र है।
- क्षमाशील श्रवण कुमार सुभाष से ही बड़ा सरल है उसके मन में किसी के प्रति ईष्र्या द्वेष का भाव नहीं है। दशरथ द्वारा छोड़े गए बाढ़ से आहत होने पर भी उसके मन में किसी प्रकार का क्रोध उत्पन्न नहीं होता है इसके विपरीत वह उनका सम्मान ही करता है।
- भाग्यवादी श्रवण कुमार भाग्य पर विश्वास करता है अर्थात जो भाग्य में होता है वही मनुष्य को प्राप्त होता है। मनुष्य को भाग्य के अनुसार ही फल मिलता है उसे कोई टाल नहीं सकता यही जीवन का अटल सत्य है। दशरथ द्वारा बाढ़ लगने में वह उन्हें कोई दोष नहीं देता। इसे वह भाग्य का ही खेल मानता है।
- आत्म संतोषी श्रवण कुमार आत्मसंतोषी है। उसे भुवनेश्वर की कोई कामना नहीं है उसके मन में किसी वस्तु के प्रति कोई लोग लालच नहीं है। वह संतोषी जीव है उसके मन में किसी को पीड़ा पहुंचाने का भाव ही जागृत नहीं होता।
- भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेम वह भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी है वह माता पिता गुरु और अतिथि को ईश्वर मानकर उनकी पूजा करता है। अतः कहा जा सकता है कि श्रवण कुमार के चरित्र में सभी उच्च आदर्श विद्यमान है। वह मातृ पितृ भक्त है तो साथ ही क्षमाशील उधार संतोषी और भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी भी है वह खंडकाव्य का नायक है।
श्रवण कुमार खंडकाव्य के आधार पर राजा दशरथ का चरित्र चित्रण।
डॉक्टर शिवबालक शुक्ला द्वारा रचित श्रवण कुमार खंडकाव्य में दशरथ का चरित्र अत्यंत महत्वपूर्ण है। वह एक योग्य शासक एवं आखेट प्रेमी हैं। वह रघुवंशी राजा अज के पुत्र हैं। संपूर्ण खंडकाव्य में वह विद्यमान है। श्रवण कुमार के माता पिता का क्या नाम था?
उनकी चरित्र की विशेषताएं निम्न प्रकार से हैं–
- योग्य शासक राजा दशरथ योग्य शासक हैं वह अपनी प्रजा की देखभाल पुत्रवत करते हैं। उनके राज्य में प्रजा अत्यंत सुखी है। चोरी का नामोनिशान नहीं है। उनके शासन में चारों तरफ सुख समृद्धि का बोलबाला है। वह विद्वानों का यथोचित सत्कार करते हैं।
- उच्च कुल में उत्पन्न राजा दशरथ का जन्म उच्च कुल में हुआ था। पृथु त्रिशंकु सागर दिलीप रघु हरिश्चंद्र और अज जैसे महान राजा इनके पूर्वज थे।
- आखेट प्रेमी राजा दशरथ आखेट प्रेमी है। इसलिए सावन के महीने में जब चारों तरफ हरियाली छा जाती है तब उन्होंने शिकार करने का निश्चय किया। शब्दभेदी बाण चलाने में अत्यंत कुशल है।
- अंतर्द्वंद से परिपूर्ण शब्दभेदी बाण से जब श्रवण कुमार की मृत्यु हो जाती है तो वह सोचते हैं कि मैंने यह पाप कर्म क्यों कर डाला? यदि मैं थोड़ी देर और सोया रहता यार रथ का पहिया टूट जाता या कोई रुकावट आ जाती तो मैं इस पाप से बच जाता। उन्हें लगता है कि मैं अब श्रवण कुमार के अंधे माता पिता को कैसे समझाऊं गा कैसे उन्हें तसल्ली दूंगा। दुख तो इस बात का है कि अब युगों युगों तक उनके साथ या पाप कथा चलती रहेगी।
- उदार वे अत्यंत उदार हैं। श्रवण कुमार के माता-पिता द्वारा दिए गए सर आपको वह चुपचाप स्वीकार कर लेते हैं। किसी और को वह इस बारे में बताते नहीं है पर मन ही मन या पीड़ा होना खटकती रहती है।
- विनम्र एवं दयालु वह अत्यंत विनम्र एवं दयालु है। अहंकार उनमें लेश मात्र भी नहीं है। वह किसी का दुख नहीं देख सकते। श्रवण कुमार को जब उनका बार लगता है तुम्हें अत्यंत चिंतित हो उठते हैं। वह आत्मग्लानि से भर उठते हैं और उनके माता-पिता के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लेते हैं। इस तरह राजा दशरथ का चरित्र महान गुणों से परिपूर्ण है प्रायश्चित और आत्मग्लानि की अग्नि में तप कर वे शुद्ध हो जाते हैं।
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