हिन्दी गद्य साहित्य का इतिहास एवं विकास।
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हिन्दी गद्य साहित्य का इतिहास एवं विकास के बारे में सम्पूर्ण जानकारी आपको आज हम उपलब्ध कराने वाले है। हिन्दी गद्य साहित्य का इतिहास एवं विकास बहुत ही समृद्ध शैली का है। हिन्दी गद्य साहित्य का इतिहास एवं विकास के बारे में बहुत सरे रोचक तथ्य अभी आपके सामने आयने वाले है।
हिन्दी गद्य साहित्य का इतिहास का स्वरूप एवं विकास
भारतेंदु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी गद्य का प्रवर्तक माना जाता है। इनसे पहले गद्य साहित्य की व्यवस्थित परंपरा नहीं मिलती है। हिंदी भाषा एवं साहित्य दोनों पर भारतेंदु हरिश्चंद्र का प्रभाव बहुत गहरा पड़ा। इनसे पहले मुंशी सदा सुख लाल की भाषा पंडिता ओपन लिए हुई थी। जबकि लल्लू लाल व सदल मिश्र की भाषा में क्रमशः ब्रज भाषा व पूर्वी भाषा का प्रभाव था राजा से प्रसाद का उर्दू 1 शब्दों से आगे बढ़कर वाक्य विन्यास में भी समाया हुआ था गद्य का निकला हुआ सामान्य रूप भारतेंदु की कला के साथ ही प्रकट हुआ।

मुद्रण यंत्र के चैनल शिक्षण संस्थाओं की स्थापना धार्मिक सामाजिक एवं बौद्धिक आंदोलनों के उत्थान पत्र-पत्रिकाओं के प्रसार आदि के कारण जीवन में जैसे-जैसे यांत्रिक एवं चिंतन की प्रतिष्ठा हुई वैसे वैसे गद्य साहित्य का भी विकास होता गया। आधुनिक काल में गद्य के विकास की अधिकता को देखते हुए इसे आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने गद्य काल की संज्ञा दी है। गंदे का संबंध व्यवहारिक जीवन से अधिक होता है व्यवहारिक जीवन का बुद्धि से और बुद्धि का विचारों से घनिष्ठ संबंध होने के कारण गद्य का संबंध व्यवहारिकता बौद्धिकता एवं वैचारिकता से अधिक जोड़ता है।
हिंदी गद्य के विकास को दो भागों में विभाजित किया गया है।
- आधुनिक काल से पूर्व हिंदी गद्य
- आधुनिक काल में हिंदी गद्य
आधुनिक काल से पूर्व हिंदी गद्य
भाषा की दृष्टि से आधुनिक काल से पूर्व के हिंदी गद्य को चार भागों में विभाजित किया गया है
- राजस्थानी गद्य
- मैथिली गद्य
- ब्रजभाषा गद्य
- खड़ी बोली के प्रारंभिक गद्य
( 1 ) राजस्थानी गद्य
हिंदी गद्य का प्राचीनतम रूप राजस्थानी गण 10 वीं सदी के आसपास का गद्य है इसकी प्राचीनतम उपलब्ध रचनाएं जैसे आराधना अति विचार बाल शिक्षा मुनि जैन विजय द्वारा संपादित प्राचीन गुजराती गद्य संदर्भ में संग्रहित है।
( 2 ) मैथिली गद्य
प्राचीनतम उपलब्ध ग्रंथ वर्ण रत्नाकर जो त्रिशा द्वारा रचित विद्यापति – कीर्ति लता जो की राजा कीर्ति सिंह का बखान है। और कीर्ति पताका जो की महाराजा शिवसिंह का बखान है।
( 3 ) ब्रजभाषा गद्य
प्राचीनतम उपलब्ध ग्रंथ गोरखनाथ कृत गोरखसार । गोस्वामी विट्ठलनाथ द्वारा रचित ग्रंथ श्रंगार रस मंडल यमुनाष्टक नवरत्न सटीक आदि है। स्वामी गोकुलनाथ द्वारा रचित चौरासी वैष्णव की वार्ता 252 वैष्णव की वार्ता आदि।
( 4 ) खड़ी बोली के प्रारंभिक गद्य।
दक्खिनी के गद्य – खड़ी बोली का विकास मुख्यतः ब्रजभाषा एवं राजस्थानी गद्य से हुआ है। कुछ लोग इसे दक्षिणी एवं अवधि गद्य का मिश्रित रूप भी मानते हैं। दक्षिणी गद्दे की पहली रचना मिराजुल आशिकी ख्वाजा बंदा नवाज गेसूदराज ने 1346 से 1423 ईस्वी में लिखी थी जो दक्षिणी हिंदी के प्रथम गद्य लेखक भी थे।
उत्तरी भारत में खड़ी बोली के गद्य प्राची प्रथम गद्य रचना चंद चंद वर्णन की महिमा 1570 इसी में कवि गंग द्वारा रचित ब्रिज मिश्रित खड़ी बोली की रचना थी गोरा बादल की कथा 1623 ईस्वी में जटमल द्वारा रचित की गई तथा भाषा योग वशिष्ठ 1741 ईस्वी में खड़ी बोली गद्य की सर्वाधिक मान्य एवं व्यवस्थित भाषा में रचित प्रथम पुस्तक थी इसके अलावा रामप्रसाद निरंजनी द्वारा रचित पदम पुराण 1761 में पंडित दौलतराम द्वारा रचित की गई।
हिन्दी गद्य की कुछ महत्वपूर्ण प्रारंभिक रचनाये।
रचनाएँ | रचनाकार |
वैशाख माहात्म्य | बैकुण्ठमणि शुक्ल |
अष्टयाम | नाभादास |
बनारसीदास विलास | बनारसीदास |
भक्तमाल प्रसंग | वैष्णवदास |
रानी केतकी की कहानी | इंसा अल्ला खां |
सुखसागर | मुंशी सदासुख लाल |
प्रेमसागर | लल्लूलाल |
माधव विलास | लल्लूलाल |
नासिकेतोपाख्यान | सदल मिश्र |
भाग्यवती | श्रद्धाराम फुल्लौरी |
योगवाशिष्ठ के चुने हुए श्लोक | राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द |
उपनिषद सार राजा शिवप्रसाद | सितारेहिन्द |
वामा मनोरंजन राजा शिवप्रसाद | सितारेहिन्द |
आलसियों का कोड़ा | राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द |
विद्यांकुर | राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द |
राजा भोज का सपना | राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द |
इतिहास तिमिर नाशक | राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द |
बेताल पचि सी | सुरति मिश्र |
संयोगिता स्वयंवर | लाला श्री निवास दास |
शिकारनामा | गेसूदराज बन्दनवाज |
निसहाय हिन्दू | राधाकृष्ण दास |
ए डिक्सनरी ऑफ़ इंग्लिश एंड हिंदुस्तानी | गिलक्राइस्ट |
ए ग्रामर ऑफ़ द हिंदुस्तानी | गिलक्राइस्ट लेंग्वेज |
आधुनिक काल से पूर्व हिंदी गद्य
हिंदी गद्य संबंधी कुछ महत्वपूर्ण तथ्य नीचे दर्शाए गए हैं जो आपका मार्गदर्शन हिंदी गद्य के नजरिए से उचित ढंग से कर पाएंगे इन्हें आप ध्यान पूर्वक देखें।
- अट्ठारह सौ ईसवी में कोलकाता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना डॉक्टर जॉन बर्थ रेट गिलक्रिस्ट ने की अध्यक्षता में हुई
- बाइबल का हिंदी एवं उर्दू अनुवाद हेनरी मार्टिन द्वारा 18 सो 9 ईस्वी में किया गया।
- कोलकाता स्कूल बुक सोसाइटी की स्थापना 18 सो 17 ईस्वी में हुई।
- आगरा स्कूल बुक सोसायटी की स्थापना 1833 इस्वी में हुई।
- संस्कृत प्रेस के संस्थापक लल्लू लाल थे
- संयुक्त प्रांत उत्तर प्रदेश के दफ्तरों की भाषा उर्दू की गई 18 सो 37 ईस्वी में
- स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा हिंदी गद्य में लिखी गई रचना सत्यार्थ प्रकाश जो 18 सो 75 ईस्वी में प्रकाशित हुई।
- वर्ष उन्नीस सौ में कचहरी ओं में नगरी लिपि की पुनः प्रतिष्ठा करने वाले व्यक्ति पंडित मदन मोहन मालवीय थे।
- हिंदी का पहला समाचार पत्र उदंत मार्तंड जो के 18 से 26 ईसवी में पंडित युगल किशोर के संपादन नेतृत्व में संपादित किया गया था इस साप्ताहिक पत्र को हिंदी की प्रथम पत्रिका भी माना गया है।
- हिंदी के अतिरिक्त बांग्ला अंग्रेजी फारसी में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र बंगदूत जो 18 सो 29 ईस्वी में राजा राममोहन राय के संपादन में संपादित हुआ था। इन्होंने वेदांत सूत्र का हिंदी अनुवाद भी किया था।
- बनारस अखबार जो सन 18 सो 44 ईस्वी में प्रकाशित हुआ वह राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद की प्रेरणा से प्रकाशित हुआ था।
- राजा शिवप्रसाद उर्दू भाषा के समर्थक थे।
- राजा शिवप्रसाद की कृतियों में से मुख्य कृतियां हैं राजा भोज का सपना, मानव धर्मसार, भूगोल हंसता मलक, इतिहास तिमिरनाशक आदि।
- राजा लक्ष्मण सिंह संस्कृत निष्ठ हिंदी भाषा के समर्थक थे।
- राजा लक्ष्मण सिंह की कृतियां– शकुंतला, रघुवंश, मेघदूत।
- राजा लक्ष्मण सिंह ने कौन सा समाचार पत्र निकाला?– प्रजा हितैषी।
काल क्रमानुशार खड़ीबोली गद्य के प्रथम चार आचार्य एवं उनकी शैली।
आचार्य | भाषा शैली |
मुंशी सदासुख लाल | सहज एवं प्रवाहमयी भाषा |
इंशा अल्ला खां | अलंकृत, चुटीली एवं मुहावरेदार भाषा |
लल्लूलाल जी | ब्रजभाषा के साथ उर्दू का प्रयोग |
सदल मिश्र | पूरबीपन बहुल भाषा |
गद्य के विकास की द्रष्टि से हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन
काल का नाम | काल का समय काल |
पूर्व भारतेन्दु युग | 13 वीं शताब्दी से 1850 ई. तक |
भारतेन्दु युग | 1850 से 1900 ई. तक |
द्विवेदी युग | 1900 से 1918 ई. तक |
छायावादी युग | 1918 से 1938 ई. तक |
छायावादोत्तर युग | 1938 ई. से अब तक |
भारतेंदु युगीन गद्य।
भारतेंदु युगीन गद्य से हिंदी गद्य का विकास माना जाता है। इसी युग में भारतेंदु मंडल ने हिंदी गद्य की विधाओं में निबंध नाटक उपन्यास आदि की रचना की।
- हिंदी नई चाल में ढली कथन भारतेंदु हरिश्चंद्र ने 18 सो 70 ईस्वी में हरिश्चंद्र मैगजीन में कहा था।
- हिंदी भाषा की शुद्धता एवं परिष्कार के प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी को माना जाता है।
- नागरी प्रचारिणी सभा काशी की स्थापना 18 सो 93 ईस्वी में हुई।
- नागरी प्रचारिणी सभा काशी के संस्थापक श्यामसुंदर दास राम नारायण मिश्र एवं शिव कुमार सिंह थे।
- अंजुमन लाहौर नामक सभा की स्थापना नवीन चंद्र राय द्वारा लाहौर में की गई।
- धर्म एवं ईश्वर संबंधी विचारों के प्रचार अर्थ तभी समाज की स्थापना भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा 1873 में की गई।
- कवि वचन सुधा का प्रकाशन 18 सो 68 ईस्वी में भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा काशी से किया गया।
हिंदी गद्य की प्रमुख विधाएं एवं उनके प्रथम रचना एवं रचनाकार।
प्रथम रचना | रचना | रचनाकार |
हिंदी का प्रथम नाटक | नहुष | गोपालचंद्र गिरिधरदास |
हिंदी का प्रथम उपन्यास | परीक्षा गुरु | लाला श्रीनिवास दास |
हिंदी का प्रथम कहानी | इन्दुमती | किशोरीलाल गोश्वामी |
हिंदी का प्रथम यात्रा वृतान्त | सरयू पार की यात्रा | भारतेन्दु हरिश्चंद्र |
हिंदी भाषी क्षेत्र में जन जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली संस्थाएं उनकी स्थापना वर्ष एवं संस्थापक।
संस्थाए | स्थापना वर्ष | संस्थापक |
ब्रह्म समाज | 1829 ई. | राजा राममोहन राय |
रामकृष्ण मिशन | 1867 ई. | स्वामी विवेकानंद |
प्रार्थना समाज | 1867 ई. | महादेव गोविन्द रानाडे |
आर्य समाज | 1867 ई. | स्वामी दयानन्द सरस्वती |
थियोसोफिकल सोसायटी | 1882 ई. | एनी बेसेण्ट |
भारतेंदु मंडल के प्रसिद्ध लेखक एवं उनके नाटक।
लेखक | नाटक |
भारतेन्दु हरिचन्द्र | वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, विषष्य विषमोषधम, भारत दुर्दशा, नील देवी, अंधेर नगरी, सती प्रताप आदि |
प्रतापनारायण मिश्र | गौ संकट, कलिप्रभाव, भारत-दुर्दशा |
बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन | भारत सौभाग्य, प्रयाग रमागमन |
प. बालकृष्ण भटट | कलिराज की सभा, रेल का विकट खेल, बाल विवाह |
राधाचरण गोस्वामी | अमर सिंह राठौर, बूढ़े मुँह मुहासे |
राधाकृष्ण दास | दुःखिनी बाला, महाराणा प्रताप |
किशोरी लाल गोस्वामी | प्रणयिनी परिणय, मयंक मंजरी |
लाला श्रीनिवास दास | रणधीर, प्रेम मोहिनी, सयोंगिता स्वयंवर |
प्रमुख पत्र एवं पत्रिकाएं
लेखक | पत्र एवं पत्रिकाएं |
भारतेन्दु | हरिचन्द्र मैग्जीन, हरिचन्द्र चन्द्रिका, बालाबोधिनी |
बालकृष्ण भटट | हिन्दी-प्रदीप |
प्रतापनारायण मिश्र | ब्राह्मण |
कार्तिक प्रसाद खत्री | हिन्दी दीप्ति प्रकाश |
बद्रीनारायण चौधरी | आनन्द कादम्बिनी |
द्विवेदी युगीन गद्य
नीचे दिए गए तथा द्वारा आपको द्विवेदी युगीन गद्य के बारे में समझाया गया है इन तथ्यों को ध्यानपूर्वक पढ़ें।
- द्विवेदी युग का नामकरण आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर किया गया है।
- नागरी प्रचारिणी सभा की प्रेरणा से सरस्वती पत्रिका द्विवेदी युग की सर्वप्रथम पत्रिका का प्रकाशन वर्ष उन्नीस सौ से प्रारंभ हुआ इसके प्रकाशक एवं प्रथम संपादक थे चिंतामणि घोष।
- पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी वर्ष 1903 में सरस्वती पत्रिका के संपादक बने।
- द्विवेदी जी से पहले सरस्वती पत्रिका के संपादक डॉ श्याम सुंदर दास थे।
- द्विवेदी युग को जागरण सुधार काल की संज्ञा डॉ नागेंद्र ने दी है।
- बीसवीं सदी के आरंभिक चरण का विश्वकोश सरस्वती पत्रिका का माना गया है।
- महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचनाएं जैसे संपत्तिशास्त्र, जनकश्य दंड, रसाज्ञ रंजन, sukhvi sankirtan, कवि और कविता एवं आत्म निवेदन इत्यादि।
- भाषा की शुद्धि तथा वर्तनी की एकरूपता के प्रबल समर्थक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी को माना जाता है।
- भारतेंदु युग तथा द्विवेदी युग को जोड़ने वाली कढ़ी के कवि बालमुकुंद गुप्त को माना जाता है। हिन्दी गद्य साहित्य का इतिहास एवं विकास
द्विवेदी युग के महत्वपूर्ण नाटक।
नाटककार | नाटक |
राधाचरण गोस्वामी | श्रीदामा ( पौराणिक ) |
शिवनन्दन सहाय | सुदामा ( पौराणिक ) |
ब्रजनन्दन सहाय | उद्धव ( पौराणिक ) |
गंगा प्रसाद | रामभिषेक ( पौराणिक ) |
गंगा प्रसाद गुप्त | वीय जयमल ( ऐतिहासिक ) |
वृंदावनलाल वर्मा | सेनापति ऊदल ( ऐतिहासिक ) |
भगवती प्रसाद | वृद्ध विवाह ( सामयिक ) |
लाला सीताराम | मृछीकटिकम ( अनुदित ) |
सदानन्द अवस्थी | नागानन्द ( अनुदित ) |
उल्लेखनीय उपन्यास।
उपन्यासकार | उपन्यास का नाम |
देवकीनन्दन खत्री | चन्द्रकान्ता।, चन्द्रकान्ता सन्तति , भूतनाथ अनूठी बेगम |
किशोरीलाल गोस्वामी | तारा , रजिया बेगम |
गोपालदास गहमरी | सरकटी लाश , जासूस की भूल |
लज्जाराम शर्मा | आदर्श दम्पति , आदर्श हिन्दू |
अयोद्धा सिंह उपाधया ,हरिओध।, | अधलिखा फूल , ठेठ हिंदी का ठाठ |
द्विवेदी युग की महत्वपूर्ण कहानियां एवं कहानीकार।
कहानीकार | कहानी |
किशोरीलाल गोस्वामी | इन्दुमती |
लाला भगवदीन | प्लेग की चुड़ैल |
रामचन्द्र शुकल | ग्यारहवर्ष का समय |
बंगमहिला | दुलाईवली |
चंद्रधर शर्मा गुलेरी | उसने कहा था |
द्विवेदी युग के महत्वपूर्ण जीवन चरित्र एवं उनके लेखक
जीवन चरित्र | लेखक |
माधवप्रसाद मिश्र | ‘विशुध्द चरितावली ‘ |
बाबू शिवनन्दन सहाय | ‘हरिशचंद्र का जीवन परिचय ‘ |
शिवनन्दन सहाय | ‘गोस्वामी ‘ तुलसीदास का जीवन चरित्र |
आचार्य रामचंद्र शुक्ल | बाबू राधाकृष्ण दास |
छायावाद युगीन गद्य।
छायावाद युगीन गद्य में हिंदी साहित्य की विविध गद्य विधाओं की रचना अपनी चरम सीमा पर थी जिसका विवरण निम्नलिखित है।
नाटक के क्षेत्र में जयशंकर प्रसाद के रूप में एक युगांतर उपस्थित हुआ जिनके नेतृत्व में अनेक रचनाएं सामने आई जैसे कल्याणी ध्रुवस्वामिनी चंद्रगुप्त स्कंदगुप्त। उसके बाद हरि कृष्ण प्रेमी की रचनाएं सामने आती है जैसे स्वर्ण विहीन रक्षाबंधन प्रतिशोध। उसके बाद लक्ष्मी नारायण मिश्र की कुछ रचनाएं सामने आती है जैसे सन्यासी और मुक्ति का रहस्य। हिन्दी गद्य साहित्य का इतिहास एवं विकास
उपन्यास के क्षेत्र में प्रेमचंद के उपन्यास सम्राट माना जाता है इनकी प्रमुख रचनाओं में सेवा सदन रंगभूमि कर्मभूमि निर्मला कायाकल्प भवन गोदान आदि शामिल है। प्रेमचंद के अलावा विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक आचार्य चतुरसेन शास्त्री शिवपूजन सहाय पांडेय बेचन शर्मा उग्र भगवती चरण वर्मा आदि उल्लेखनीय उपन्यासकार है।
निबंध के क्षेत्र में आचार्य रामचंद्र शुक्ल का महत्वपूर्ण स्थान है इनकी रचनाएं हैं भाव्या मनोविकार घृणा क्रोध साधार करण और व्यक्तिगत चित्रवाद एवं काव्य में रहस्यवाद इत्यादि। इनके सभी निबंध चिंतामणि निबंध संग्रह में संकलित हैं इनके अतिरिक्त शिवपूजन सहाय पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी पांडेय बेचन शर्मा उग्र वियोगी हरि श्रीराम शर्मा गुलाब राय संपूर्णानंद उल्लेखनीय निबंधकार है।
छायावादोत्तर युगीन गद्य
हिंदी गद्य की सर्वाधिक उन्नति का युग माना जाता है। हिन्दी गद्य साहित्य का इतिहास एवं विकास
महत्वपूर्ण गद्य लेखकों की लेखन शैली की विशेषताएं।
लेखक | विशेषतएं |
आचार्य हजारीप्रदास दुवेदी | पाण्डित्य एंव चिन्तन केसाथ सहजता एंव सरसता का समन्वय |
शान्तिप्रिय दुवेदी | प्रभावगररहिणी प्रज्ञा और भावोच्छवासि शैली |
रामधारी सिंह ‘दिनकर ‘ | विचारशीलता , विषय -वैविध्य एंव व्यक्तितत्व -व्यंजन |
भगवतीचरण वर्मा | सहज ,व्यावहारिक , प्रवाहपूर्ण एंव व्यंजकभृत |
जैनेन्द्र कुमार | दार्शिनक मुद्रा एंव मनोवैज्ञानिक निगूढ़ता |
अज्ञेय | बौद्धौकता |
डॉ. नागेन्द्र | तर्क प्रधान , विश्लेषणपरक एंव आत्मविशवास |
रामवृक्ष बेनीपुरी | शव्द चित्रों के लिए प्रिशिद्ध |
बनारसीदास चतुर्वेदी | संस्मरण ,जीवनियों एंव रेखाचित्र |
वासुदेवशरण मिश्र | सांस्कृतिक एंव आध्यातिमिक गरिमा |
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर | राजनितिक संस्मरण एंव रिपोर्ताज |
विधानिवासी मिश्र | ऐतिहासिक घटनाओं का भावपूर्ण नाटकीय शैली में प्रस्तुतीकरण |
हरिशंकर परसाई | वैज्ञानिक दृस्टि , सांस्कृतिक चेतना , लोक -साम्प्रतिक एवं आधुनिक जीवन -बोध |
फणीश्वरनाथ रेणु | ध्वनि -बिंबो का सक्षम प्रयोग |
धर्मवीर भारती | गम्भीर एंव विचारपूर्ण गध |
शिवप्रसाद सिंह | आंचलिकता या लोकचेतना से सम्पृक्त व्यापक मानवीय चेतना का वाहक |
प्रयोगवाद
- साहित्य में प्रयोगवाद के प्रवर्तक अज्ञ कहलाए इनकी रचनाएं हैं नदी के द्वीप को कोठरी की बात शरणार्थी कहानी।
- कथा साहित्य में मार्क्स के समाजवाद तथा फ्रायड के मनोविश्लेषण वाद का विशेष प्रभाव पड़ा।
- रचनाओं में पीढ़ी का जीवन संघर्ष आकांक्षाएं उठाएं विद्रोह तथा नवीन जीवन मूल्यों की तलाश और योग्यता स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है जैसे शेखर एक जीवनी बहती गंगा सूरज का सातवां घोड़ा आदि उपन्यासों में है। हिन्दी गद्य साहित्य का इतिहास एवं विकास
गद्य की विभिन्न विधाएं।
गद्दे की विभिन्न प्रमुख विधाओं में निबंध नाटक एकांकी आलोचना उपन्यास कहानी यात्रा वृतांत आत्मकथा जीवनी रिपोर्ताज रेखाचित्र संस्मरण आदि शामिल है।
नाटक
नाटक शब्द की व्युत्पत्ति नट धातु से हुई है जिसका अर्थ सात्विक भावों का प्रदर्शन है नट यानी अभिनय करने वाला से अभिनीत होने के कारण भी यह नाटक कहलाता है। नाटक एक दृश्य काव्य है जिसमें श्रव्य काव्य होने के गुण भी विद्यमान है। जिस नाटक में व्यंग तथा सुरुचिपूर्ण हास्य का पुट देकर सामाजिक धार्मिक एवं राजनीतिक समस्याओं का उद्घाटन किया जाता है वह प्रशासन या रचनात्मक नाटक है। हिन्दी गद्य साहित्य का इतिहास एवं विकास
हिंदी नाटक की विकास की परंपरा।
- भारतेंदु युग
- द्विवेदी युग
- प्रसाद युग
- प्रसादोत्तर युग
- समकालीन नाटक
भारतेंदु युग के प्रमुख नाटक।
नाटककार | नाटक |
भारतेन्दु हरिचन्द्र | विधा सुन्दर , चन्द्रावली चरित्र |
श्रीनिवासदास | तप्त संवरण , प्रहाद चरित्र |
अयोध्या सिंह उपाध्या | प्रधुमन विजय |
सीताराम वर्मा | अभिमन्यु वध |
काशीनाथ खत्री | विधवा विवाह |
राजा लक्ष्मण सिंह | शकुन्तला (अनुदित ) |
द्विवेदी युग के प्रमुख नाटक
नाटककार | नाटक |
कृष्ण पप्रकाश सिंह | पनना |
बद्रीनाथ भट्रट | चन्द्रगुप्त |
हरिदास मनिका | सयोगीता हरण |
जीवानन्द शर्मा | भारत विजय |
बनवारीलाल | कृष्ण कथा , कंस वध |
माखन लाल चतुर्वेदी | कृष्णार्जुन -युद्ध |
रामगुलाम लाल | धनुष यज्ञ लीला |
प्रसाद युग के प्रमुख नाटक
नाटककार | नाटक |
जयशंकर प्रसाद | सज्जन ,विशाख ,अजातशत्रु |
हरिशंकर प्रेमी | रक्षाबंधन ,पाताल विजय ,प्रितरोध |
प्रेमचंद | कबरला ,संग्राम |
पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र ‘ | महात्मा ईसा , चुंबन।,डिक्टेटर |
रामवृक्ष बेनीपुरी | अंबपाली |
सुर्दशन | अंजना |
विष्वंभर नाथ शर्मा ‘कौशिक ‘ | हिन्दू विधवा नाटक |
उदय शंकर भटटा | कमला |
रामनरेश त्रिपाठी | सुभद्रा |
मैथलीशरण गुप्त | तिलोत्तमा |
लक्ष्मीनारायण मिश्र | अशोक ,राजयोग ,सिंदूर की होली , अधिरत |
विष्णु प्रभारकर | युगे युगे क्रान्ति |
प्रसादोत्तर युग के प्रमुख नाटक
नाटककार | नाटक |
उदयशंकर भटटा | राधा ,अश्व्थामा ,असुर ,सुंददरी ,की होली ,डिक्टेटर |
पाण्डेय बेचैन शर्मा ‘उग्र ‘ | गंगा का बेटा |
हरिकृष्ण प्रेमी | आहुति , |
वृंदावन लाल वर्मा | |
गोविन्द वल्ल्भ पंत | |
सेठ गोविन्द दास |
समकालीन नाटक।
नाटककार | नाटक |
मोहन राकेश | आधे अधूरे, शायद, आषाढ़ का एक दिन |
भीष्म साहनी | हानूश, माधवी, आलमगीर, रंग दे बसंती चोला |
जगदीश चन्द्रमाथुर | कोणार्क, पहला राजा, दशरथनन्दन |
लक्ष्मीनारायण लाल | दर्पण, सुर्यमुख, गुरु, कजरीवन, गंगामाटी |
एकांकी
नाटक का ही एक स्वरूप जिसमें केवल एक ही अंत में संपूर्ण नाटक समाप्त हो जाता है उसे एकांकी कहते हैं। एकांकी के प्रचलित प्रमुख वेद एवं उपभेद निरूपक संगीत रूपक रेडियो प्रसन्न स्वागत नाटय आदि। भारतेंदु की एकांकी जैसी प्रमुख रचनाएं विषस्य विषमौषधम् धनंजय विजय अंधेर नगरी वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति भारत दुर्दशा। जयशंकर प्रसाद का एक घूंट सर्वमान्य रूप से हिंदी का प्रथम एकांकी माना जाता है। हिन्दी गद्य साहित्य का इतिहास एवं विकास
डॉ रामकुमार वर्मा ने कहा कि नाटकों का प्रथम संग्रह पृथ्वीराज की आंखें वर्ष 1936 में लिखी। अन्य लेखकों में भुवनेश्वर प्रसाद सेठ गोविंद दास उदय शंकर भट्ट जगदीश चंद्र माथुर उपेंद्र नाथ अश्क विष्णु प्रभाकर गणेश प्रसाद द्विवेदी भगवती चरण वर्मा आदि लेखकों का एकांकी लेखन में उल्लेखनीय योगदान है।
उपन्यास
उपन्यास अर्थात सामने रखना इसमें प्रसाधन का भाव भी नित है अर्थात किसी घटना को इस प्रकार सामने रखना जिससे दूसरों को प्रसन्नता हो।
हिंदी उपन्यास की विकास परंपरा
- पूर्व प्रेमचंद युग
- प्रेमचंद युग
- प्रेमचंदोत्तर युग
पूर्व प्रेमचंद युग के उपन्यास एवं उपन्यासकार
उपन्यास | उपन्यासकार |
नूतन ब्रह्मचारी | बालकृष्ण भटट |
लवंगलता, कनक कुसुम, प्रणयनी परिणय | किशोरीलाल गोस्वामी |
चंद्रकांता, चन्द्रकान्ता सन्तति, भूतनाथ | देवकीनंदन खत्री |
अदभुत लाश, गुप्तचर | गोपालराम गहमरी |
राधाकान्त, सौन्दर्योपासक | ब्रजनन्दन सहाय |
प्रेमचंद युग
उपन्यास | उपन्यासकार |
सेवा सदन, निर्मला, गबन, रंगभूमि, कर्मभूमि, गोदान | प्रेमचन्द |
कंकाल, तितली, इरावती | जयशंकर प्रसाद |
माँ, भिखारिणी, संघर्ष | विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक |
देहाती दुनिया | शिवपूजन सहाय |
दिल्ली का दलाल, शराबी | पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र |
चन्द हसीनों के खतूत | आचार्य चतुरसेन शास्त्री |
आत्मदाह, व्यभिचार, हृदय की परख | सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला |
अप्सरा, अलका, निरुपमा, प्रभावती प्रेमपथ, अनाथ पत्नी, मुस्कान | भगवती प्रसाद वाजपेयी |
प्रेमचंदोत्तर
उपन्यास | उपन्यासकार |
परख, सुनीता, त्यागपत्र | जैनेन्द्र |
जहाज का पंछी, घ्रणापथ | इलाचन्द्र जोशी |
शेखर : एक जीवनी, नदी के द्वीप | अज्ञेय |
ढलती रात, स्वप्नमयी, कोई तो, संकल्प | विष्णु प्रभाकर |
पतन, तीन वर्ष, रेखा गोसाईं | भगवतीचरण वर्मा |
मधुर स्वप्न, जय योधेय, जीने के लिए | राहुल सांकृत्यायन |
महाकाल, करवट, पीढ़ियाँ | अमृतलाल नागर |
बाणभटट की आत्मकथा, पुनर्नवा | आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी |
जुलूष, दीर्घतय, मैला आँचल | फणीश्वरनाथ रेणु |
तमस, बसंती, माड़ी, कुन्तो | भीष्म साहनी |
कहानी
कहानी का उद्देश्य एक क्षण में घनीभूत जीवन दृश्य का अंकन अर्थात जीवन का खंड चित्र प्रस्तुत करना होता है। कहानीकार का मर्म जीवन के किसी मार्मिक क्षण में सम्मिलित होकर उसे कलात्मक एवं रोचक ढंग से रूपाय करना। हिंदी की प्रथम आधुनिक कहानी इंदुमती किशोरी लाल गोस्वामी द्वारा रचित है। हिंदी कहानी अर्थात एक नई दिशा की ओर मुड़ी वर्ष 1935 से हिन्दी गद्य साहित्य का इतिहास एवं विकास
अन्य सामयिक कहानियाँ
कहानी | कहानीकार |
दुलाईवाली | बंगमहिला |
ग्यारह वर्ष का समय | रामचन्द्र शुक्ल |
उसने कहा था | प. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी |
निबन्ध
अंग्रेजी के ‘ ऐसे ‘ शब्द का पर्याय निबन्ध है जिसका अर्थ है ‘ प्रयास ‘ अर्थात किसी भी विषय के सन्दर्भ में कुछ कहने का प्रयास करना। सामान्यतः निबन्ध का अर्थ है बन्धन में बंधी हुई कोई वस्तु। इसके चार प्रकार होते हैं – वर्णात्मक, विवरणात्मक, विचारात्मक एवं भावात्मक।
इसके उत्कृष्ट निबंधकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हुए हैं इनके निबन्ध-संग्रह का नाम चिन्तामणि। अन्य प्रसिद्ध निबंधकार – बाबु गुलाबराय (ठलुआ क्लब ), चतुरसेन शास्त्री (अंतस्थल ), पदुमलाल पुन्नालाल (पंच पात्र )
आलोचना
आलोचना का अभिप्राय – किसी पदार्थ, तथ्य, वास्तु की परख सही रूप में करना या किसी वस्तू को भली प्रकार देखना। आलोचना प्रक्रिया के प्रमुख क्षेत्र – सिद्धांत निरूपण एवं व्याख्या। आलोचना के दो भेद – सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक आलोचना। हिन्दी गद्य साहित्य का इतिहास एवं विकास
द्विवेदी युग में आलोचना
महावीरप्रसाद द्विवेदी | कालिदास की निरंकुशता |
मिश्र बन्धु | हिन्दी नवरत्न |
पदमसिंह शर्मा | बिहारी सतसई की भूमिका |
श्यामसुन्दर दास | साहित्यालोचन, रूपक रहस्य |
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी | विश्व साहित्य |
रामचन्द्र शुक्ला | हिन्दी साहित्य का इतिहास, जायसी ग्रंथावली की भूमिका, गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास |
अन्य विधाएँ
आत्मकथा
हिन्दी के आत्मकथा साहित्य में प्रथम आत्मकथा – जैन कवि बनारसीदास की अर्द्धकथा
साहित्यकार | साहित्य |
भारतेन्दु | कुछ आप बीती, कुछ जग बीती |
अम्बिकादत्त व्यास | निज वृतांत |
स्वामी श्रद्धानन्द | कल्याण का पथिक |
स्वामी सत्यानन्द अग्निहोत्री | मुझमें देव जीवन का विकाश |
भाई परमानन्द | आप बीती |
सुभाषचन्द्र बोस | तरुण स्वप्न |
जवाहरलाल नेहरू | मेरी कहानी |
राधाकृष्ण | सत्य की खोज |
के.एम. मुंशी | आधे रास्ते और सीधी चटटान |
डॉ. राजेंद्र प्रसाद | मेरी आत्मकथा |
स्वामी भवानीदयाल | सन्यासी प्रवासी की आत्मकथा |
सत्यदेव परिव्राजक | स्वतंत्रता की खोज |
बाबू श्यामसुन्दर दास | मेरी कहानी |
राहुल सांकृत्यायन | मेरी जीवन यात्रा |
वियोगी हरि | मेरा जीवन प्रवाह |
बाबू गुलाब राय | मेरी असफलताएँ |
सुमित्रानन्दन पन्त | साठ वर्ष : एक रेखांकन |
शांतिप्रिय द्विवेदी | परिव्राजक की प्रजा |
यशपाल | सिंहावलोकन |
डॉ. हरिवंशराय बच्चन | क्या भूलूँ क्या याद करुँ, नींद का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दासद्वार से सोपान तक |
जीवनी
इतिहास जैसी प्रमाणिकता एवं तथ्यपूर्णता के साथ-साथ साहित्यकता के तत्वों से परिपूर्ण। राष्ट्रीय महापुरुषों की जीवनियाँ अपेक्षाकृत कम लिखी गई।
कलम का सिपाही ( प्रेमचन्द की जीवनी ) | अमृतराय |
कलम का मजदूर ( प्रेमचन्द की जीवनी ) | मदन गोपाल |
निराला की साहित्य साधना ( निराला की जीवनी ) | डॉ. रामविलास शर्मा |
सुमित्रानन्दन पन्त : जीवन और साहित्य | शांति जोशी |
आवारा मसीहा ( शरत चन्द्र की जीवनी ) | विष्णु प्रभाकर |
चैतन्य महाप्रभु | अमृतलाल नागर |
संस्मरण
संस्मरण= सम + स्मरण अर्थात सम्यक स्मरण। बाबूबालमुकुन्द गुप्त ने वर्ष 1907 में प. प्रतापनारायण मिश्र संश्मरण लिखकर इस विधा का सूत्रपात किया
रिपोर्ताज
किसी घटना का यथा तथ्य साध्य वर्णन रिपोर्ताज कहलाता है लेखक का घटना से प्रथम साक्षात्कार आवश्यक होता है। हिंदी में इस विधा का सूत्रपात बंगाल के भयानक अकाल वर्ष 1943 में डॉ रंगे राघव द्वारा तूफानों के बीच से हुआ। हिन्दी गद्य साहित्य का इतिहास एवं विकास
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