सत्य की जीत खंडकाव्य का सारांश।
सत्य की जीत खंडकाव्य की कथा महाभारत के द्रोपति चीर हरण की अत्यंत संक्षिप्त किंतु मार्मिक घटना पर आधारित है। सत्य की जीत खंडकाव्य एक अत्यंत लघु काव्य है जिसमें कभी नहीं पुरातन आख्यान को वर्तमान संदर्भों में प्रस्तुत किया है।
दुर्योधन पांडवों को दूध क्रीडा में खेलने के लिए आमंत्रित करता है और छल प्रपंच से उनका सब कुछ छीन लेता है युधिष्ठिर जुए में स्वयं को हार जाते हैं अंत में वह द्रोपदी को भी दांव पर लगा देते हैं और हार जाते हैं। इस पर कौरव भरी सभा में द्रोपदी को वस्त्र हीन करके अपमानित करना चाहते हैं।
दुशासन द्रौपदी के केस खींचते हुए उसे सभा में लाता है। द्रोपदी के लिए यह अपमान असहाय हो जाता है। वह सभा में प्रश्न उठाती है कि जो व्यक्ति स्वयं को हार गया है उसे अपनी पत्नी को दांव पर लगाने का क्या अधिकार है।
अतः में कौरवों द्वारा विजित नहीं हूं। दुशासन उसका चीर हरण करना चाहता है। उसके इस कुकर्म पर द्रोपदी अपने संपूर्ण आत्मबल के साथ सत्य का सहारा लेकर उसे ललकार ती है और वस्त्र खींचने की चुनौती देती है।
“ओ–ओ! दुशासन निर्लज्ज!
देख तू नारी का भी क्रोध
किसे कहते हैं उसका अपमान
कर आऊंगी मैं इसका बोध।।”
तब दुशासन दुर्योधन के आदेश पर भी उसके चीर हरण का साहस नहीं कर पाता। दुर्योधन का छोटा भाई विकर्ण द्रोपदी का पक्ष लेता है। उसके समर्थन में अन्य सभासद भी दुर्योधन और दुशासन की निंदा करते हैं। क्योंकि वह सभी या अनुभव करते हैं कि यदि आज पांडवों के प्रति होते हुए अन्याय को रोका नहीं गया, तो इसका परिणाम बहुत बुरा होगा। अंततः धृतराष्ट्र पांडवों के राज्य को लौटा कर उन्हें मुक्त करने की घोषणा करते हैं।
सत्य की जीत खंडकाव्य में कवि ने द्रोपदी के चीर हरण की घटना में श्री कृष्ण द्वारा चीर बढ़ाए जाने की अलौकिकता को प्रस्तुत नहीं किया है। द्रोपदी का पक्ष सत्य न्याय का पक्ष है। तात्पर्य यह है कि जिसके पास सत्य और न्याय का बल हो असत्य रूपी दुशासन उसका चीरहरण नहीं कर सकता। द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी ने इस कथा को अत्यधिक प्रभावी और युग के अनुकूल सृजित किया है और नारी के सम्मान की रक्षा करने के संकल्प को दोहराया है।
इस प्रकार प्रस्तुत खंडकाव्य की कथावस्तु अत्यंत लघु रखी गई है कथा का संगठन अत्यंत कुशलता से किया गया है। इस प्रकार सत्य की जीत को एक सफल खंडकाव्य कहना सर्वथा उचित होगा।
सत्य की जीत खंडकाव्य शीर्षक की सार्थकता।
श्री द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी द्वारा रचित सत्य की जीत खंडकाव्य में द्रोपदी चीर हरण के प्रसंग का वर्णन किया गया है, किंतु यहां सर्वथा नवीन है। अत्याचारों को द्रोपदी चुपचाप स्वीकार नहीं करती वरुण पूर्ण आत्म बल से उसके विरुद्ध संघर्ष करती है। चिल्ड्रन के समय वह दुर्गा का रूप धारण कर लेती है जिससे दुशासन सहन जाता है। सभी गौरव द्रोपदी के सत्य बल तेज और सतीत्व के आगे कांत हीन हो जाते हैं। अंततः जीत उसी की होती है और पूरी राज्यसभा उसके पक्ष में हो जाती है।
सत्य की जीत खंडकाव्य के माध्यम से कवि का उद्देश्य सत्य को असत्य पर विजय प्राप्त करते हुए दिखाना है। खंडकाव्य के मुख्य आध्यात्मिक भाव सत्य की असत्य पर विजय है। अतः खंडकाव्य का शीर्षक सर्वथा उपयुक्त है।
सत्य की जीत खंडकाव्य का उद्देश्य।
सत्य की जीत खंडकाव्य में कवि का उद्देश्य असत्य पर सत्य की विजय दिखाना है सत्य की जीत खंडकाव्य का मूल उद्देश्य माननीय सद्गुणों एवं उदात्त भावनाओं को चित्रित करके समाज में इनकी स्थापना करना है और समाज के उत्थान में नर-नारी का समान रुप से सहयोग देना है।
खंडकाव्य में प्रस्तुत विचारों का प्रतिपादन
सत्य की जीत खंडकाव्य में निम्नलिखित विचारों का प्रतिपादन किया गया है जो निम्न प्रकार से प्रस्तुत है–
- नैतिक मूल्यों की स्थापना–सत्य की जीत खंडकाव्य में कवि ने दुशासन और दुर्योधन के छल कपट, दंभ ईर्ष्या, अनाचार, शस्त्र बल आदि की पराजय दिखा कर उन पर सत्य न्याय प्रेम मैत्री करुणा श्रद्धा आदि मानव मूल्यों की प्रतिष्ठा की है। कभी का विचार है कि मानव को भौतिकवाद के गड्ढे से निकलकर नैतिक मूल्यों की स्थापना करके ही निकाला जा सकता है।
“जहां है सत्य, जहां है धर्म, जहां है न्याय, वहां है जीत”
- नारी की प्रतिष्ठा–सत्य की जीत खंडकाव्य में कवि ने द्रोपदी को कोमलता एवं श्रंगार की मूर्ति के रूप में नहीं वरन दुर्गा के रूप में प्रतिष्ठित किया है। कवि ने द्रोपदी को उस नारी का स्वरूप प्रदान किया है जो अपने सतीत्व और मर्यादा की रक्षा के लिए चंडी और दुर्गा बन जाती है। यही कारण है की भारत में नारी की शक्ति को दुर्गा के रूप में स्वीकार किया गया है। द्रोपदी दुशासन से स्पष्ट कह देती है कि नारी का अपना अस्तित्व है वह पुरुष की संपत्ति या भोग्या नहीं है। समय पड़ने पर वहां कठोरता का प्रस्तुतीकरण भी कर सकती है।
- स्वार्थ एवं ईर्ष्या का विनाश–आज का मनुष्य स्वार्थी होता जा रहा है। स्वार्थ भावना ही संघर्ष को जन्म देती है। इनके वश में होकर व्यक्ति कुछ भी कर सकता है। इसी कवि ने द्रोपदी चीर हरण की घटना के माध्यम से दर्शाया है दुर्योधन पांडवों से ईर्ष्या रखता है तथा उन्हें जुए के खेल में छल से पराजित कर देता है और उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है वह द्रोपदी को निर्वस्त्र करके उसे अपमानित करना चाहता है कभी स्वार्थ और ईशा को पतन का कारण मानता है कभी इस खंडकाव्य के माध्यम से यह संदेश देता है कि स्वार्थपरता बैर भाव इस आदेश को हमें समाप्त कर देना चाहिए। और उसके स्थान पर मैत्री सत्य प्रेम त्याग परोपकार सेवा भावना आदि का प्रसार करना चाहिए।
- प्रजातांत्रिक भावना का प्रतिपादन–प्रस्तुत खंडकाव्य का संदेश यह भी है कि हम प्रजातांत्रिक भावनाओं का आदर करें कवि ने निरंकुश खंडन करके प्रजातंत्र की उपयोगिता का प्रतिपादन किया है निरंकुशता पर प्रजातंत्र एक अंकुश है राज्य सभा में द्रोपदी के प्रश्न पर जहां दुर्योधन दुशासन और कर अपना तर्क प्रस्तुत करते हैं वही धृतराष्ट्र अपना निर्णय देते समय जन भावनाओं को पूर्ण ध्यान में रखते हैं।
- विश्व बंधुत्व का संदेश–सत्य की जीत खंडकाव्य में कवि ने यह संदेश दिया है कि सहयोग और शब्दों से ही विश्व का कल्याण होगा।
“जिए हम और जीए सब लोग।”
इससे सत्य अहिंसा और न्याय मैत्री करुणा आदि को बल मिलेगा और समस्त संसार एक परिवार की भांति प्रतीत होने लगेगा।
- निरंकुशवाद के दोषों का प्रकाशन–रचनाकार ने स्वीकार किया है कि जब सत्ता निरंकुश हो जाती है तो वह अनैतिक कार्य करने में कोई संकोच नहीं करती। ऐसे राज्य में विवेक कुंठित हो जाता है। भीष्म द्रोण धृतराष्ट्र आदमी दुर्योधन की सत्ता की निरंकुशता के आगे हतप्रभ हैं।
सत्य की जीत खंडकाव्य में इस प्रकार सत्य की जीत एक विचार प्रधान खंडकाव्य है। इसमें सास्वत भारतीय जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा की गई है और स्वार्थ एवं ईर्ष्या के समापन की कामना भी की गई है। कवि पाठकों को सदाचार पूर्ण जीवन की प्रेरणा देना चाहता है। वह उन्नत मानवीय जीवन का संदेश देता है।
सत्य की जीत खंडकाव्य की नायिका द्रौपदी का चरित्र चित्रण।
सत्य की जीत खंडकाव्य में द्वारिका प्रसाद महेश्वरी द्वारा रचित खंडकाव्य सत्य की जीत की नायिका द्रोपदी है। कवि ने उसे महाभारत की द्रौपदी के समान सुकुमार निरीह रूप में प्रस्तुत न करके आत्मसम्मान से युक्त ओजस्वी सशक्त एवं वाकपटु वीरांगना के रूप में चित्रित किया है। सत्य की जीत खंड काव्य की नायिका द्रोपदी का चरित्र चित्रण की विशेषताएं निम्न प्रकार से प्रस्तुत है–
- स्वाभिमानी–द्रोपदी स्वाभिमानी है। वह अपमान सहन नहीं कर सकती। वहां अपना अपमान नारी जाति का अपमान समझती है। वह नारी के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने वाली किसी भी बात को स्वीकार नहीं कर सकती। सत्य की जीत खंडकाव्य की द्रोपदी महाभारत की द्रौपदी से बिल्कुल अलग है। वह असहाय और अगला नहीं है। वह अन्याय और अधर्म रूपी पुरुषों से संघर्ष करने वाली है।
- निर्भीक एवं साहसी–द्रोपदी निर्भीक एवं साहसी है। दुशासन द्रौपदी के बाल खींच कर भरी सभा में ले आता है और उसे अपमानित करना चाहता है। तब द्रौपदी बड़े साहस और निर्भीकता के साथ दुशासन को निर्लज्ज और पापी कहकर पुकारती है। जिससे पता चलता है कि द्रोपदी एक निर्भीक एवं साहसी महिला है।
- विवेकशील–द्रोपदी पुरुष के पीछे पीछे आंखें बंद करके चलने वाली नारी नहीं है बल्कि विवेक से काम लेने वाली है। वह भरी सभा में यह सिद्ध कर देती है कि जो व्यक्ति स्वयं को हार गया हो उसे अपनी पत्नी को दांव पर लगाने का अधिकार नहीं है। अतः वह कौरवों द्वारा जीती हुई वस्तु नहीं है। इस घटना से स्पष्ट रूप से सिद्ध हो जाता है कि नायिका द्रोपदी एक विवेकशील महिला है।
- सत्य निष्ठा एवं न्याय प्रिय–द्रोपदी सत्य निष्ठा है साथ ही न्याय प्रिय भी है। वहां अपने प्राण देकर भी सत्य और न्याय का पालन करना चाहती है। जब दुशासन द्रौपदी के सत्य एवं शील का हरण करना चाहता है तब वह उसे ललकार ती हुई कहती है।
“न्याय में रहा मुझे विश्वास,
सत्य में शक्ति अनंत महान।
मानती आई हूं मैं सतत,
सत्य ही है ईश्वर, भगवान।”
- वीरांगना–द्रोपदी विवश होकर पुरुष को क्षमा कर देने वाली असहाय और अबला नारी नहीं है। वह चुनौती देकर दंड देने की क्षमता रखने वाली वीरांगना है–
“ओ–ओ! दुशासन निर्लज्ज!
देख तू नारी का भी क्रोध
किसे कहते हैं उसका अपमान
कर आऊंगी मैं इसका बोध।।”
- नारी जाति का आदर्श–द्रोपदी संपूर्ण नारी जाति के लिए एक आदर्श है। दुशासन नारी को वासना एवं भोग की वस्तु कहता है, तो वह बताती है कि नारी वह शक्ति है, जो विशाल चट्टान को भी हिला देती है। पापियों के नाश के लिए वह भैरवी भी बंद सकती है वह कहती है–
“पुरुष के पौरुष से ही सिर्फ,
बनेगी धरा नहीं यह स्वर्ग।
चाहिए नारी का नारीत्व,
तभी होगा यहां पूरा सर्ग।”
अतः संक्षेप में कहा जा सकता है द्रोपदी पांडव कुलवधू,वीरांगना, स्वाभिमानी, आत्म गौरव संपन्न, सत्य और न्याय की पक्षधर, सती साध्वी, नारीत्व के स्वाभिमान से मंडित एवं नारी जाति का आदर्श है।
सत्य की जीत खंडकाव्य के आधार पर दुशासन का चरित्र चित्रण।
सत्य की जीत खंडकाव्य मैं दुशासन एक प्रमुख पात्र है। यह दुर्योधन का छोटा भाई तथा धृतराष्ट्र का पुत्र है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं–
- अहंकारी एवं बुद्धिहीन–दुशासन अत्यंत अहंकारी एवं बुद्धिहीन है। उसे अपने बल पर अत्यंत घमंड है। वह बुद्धिहीन भी है विवेक से उसे कुछ लेना देना नहीं है। वह स्वयं को सर्वश्रेष्ठ एवं महत्वपूर्ण मानता है। वह पशु बल में विश्वास करता है। वह भरी सभा में पांडवों का अपमान करता है। सत्य प्रेम अहिंसा की अपेक्षा वह पाशविक शक्तियों को ही सब कुछ मानता है।
- नारी के प्रति उपेक्षा भाव–द्रोपदी के साथ हुए तर्क वितर्क से 10 आसन का नारी के प्रति रूढ़िवादी दृष्टिकोण प्रकट हुआ है। वह नारी को पुरुष की भोग्य और पुरुष की दासी मानता है। वह नारी की दुर्बलता का उपहास उड़ाता है। उसके अनुसार पुरुष ने ही विश्व का विकास किया है। नारी की दुर्बलता का उपहास उसने इन शब्दों में किया है–
“कहां नारी ने ले तलवार, किया है पुरुषों से संग्राम।
जानती है वह केवल पुरुष भुजाओं में करना विश्राम।”
- शस्त्र बल विश्वासी–दुशासन शस्त्र बल को सब कुछ समझता है। उसे धर्म शास्त्र और धर्मों में विश्वास नहीं है। वह शस्त्र के समक्ष शास्त्र की अवहेलना करता है। शास्त्र ज्ञाताओं को वह दुर्बल मानता है।
- दुराचारी–दुशासन हमारे सम्मुख एक दुराचारी व्यक्ति के रूप में आता है। वहां अपने बड़ों एवं गुरुजनों के सामने अभद्र व्यवहार करने में भी संकोच नहीं करता। द्रोपदी को संबोधित करते हुए दुशासन कहता है–
विश्व की बात द्रोपदी छोड़,
शक्ति इन हाथों की ही तोल।
खींचता हूं मैं तेरा वस्त्र,
पीठ मत न्याय धर्म का ढोल।
- सत्य एवं सतीत्व से पराजित–प्रशासन के चीरहरण से असमर्थता इस तथ्य की पुष्टि करती है कि हमेशा सत्य की ही जीत होती है। वह जैसे ही द्रोपदी का चीर खींचने के लिए हाथ आगे बढ़ाता है, वैसे ही द्रोपदी के सतीत्व की ज्वाला से पराजित हो जाता है।
अतः दुशासन के चरित्र की दुर्बलता का उद्घाटन करते हुए डॉ ओंकार प्रसाद माहेश्वरी लिखते हैं लोकतंत्र या चेतना के इस युग में अभी कुछ ऐसे साम्राज्यवादी प्रकृति के दुशासन हैं जो दूसरों के बढ़ते मान सम्मान को नहीं देख सकते तथा दूसरों की भूमि और संपत्ति को हड़पने के लिए प्रत्यक्षण घात लगाए हुए बैठे रहते हैं। इस काव्य में दुशासन उन्हीं का प्रतीक है। इस खंडकाव्य में दुशाशन को एक नायक के रूप में भी देखा गया है।
सत्य की जीत खंडकाव्य के नायक युधिष्ठिर का चरित्र चित्रण।
सत्य की जीत खंडकाव्य के नायक के रूप में युधिष्ठिर के चरित्र को स्थापित किया गया है। द्रोपदी एवं धृतराष्ट्र के कथनों के माध्यम से युधिष्ठिर का चरित्र उजागर हुआ है। सत्य की जीत खंडकाव्य में युधिष्ठिर का चरित्र महान गुणों से परिपूर्ण है। उसकी चारित्रिक विशेषताएं निम्नलिखित रुप में प्रस्तुत की गई हैं।
- सरल हृदय व्यक्तित्व–युधिष्ठिर का व्यक्तित्व सरल हृदय है तथा अपने समाज ही सभी अन्य व्यक्तियों को भी सरल हृदय ही समझते हैं। अपने इसी गुण के कारण वे दुर्योधन और शकुनि के कपाट रूपी माया जाल में फंस जाते हैं और इसका दुष्परिणाम भोगने के लिए विवश हो जाते हैं।
- धीर गंभीर–युधिष्ठिर ने अपने जीवन काल में अत्यधिक कष्ट भूखे थे, परंतु उनके स्वभाव में परिवर्तन नहीं हुआ। दुशासन द्वारा द्रौपदी का चीर हरण व उसका अपमान किए जाने के पश्चात भी युधिष्ठिर का मौन व शांत रहने का कारण उनकी कायरत या दुर्बलता नहीं थी, बल्कि उनकी धीरता व गंभीरता का गुण था।
- अदूरदर्शी–युधिष्ठिर सैद्धांतिक रूप से अत्यधिक कुशल थे परंतु व्यवहारिक रूप से कुशलता का अभाव अवश्य है। वे गुणवान तो है, परंतु द्रौपदी को दांव पर लगाने जैसा मूर्खतापूर्ण कार्य कर बैठते हैं। परिणाम स्वरूप इस कर्म का दूरगामी परिणाम उनकी दृष्टि से ओझल हो जाता है और चीरहरण जैसे कुकृत्य को जन्म देता है। इस प्रकार युधिष्ठिर अदूरदर्शी कहे जाते हैं।
- विश्व कल्याण के अग्रदूत–युधिस्टर का व्यक्तित्व विश्व कल्याण के प्रवर्तक के रूप में देखा गया है। इस गुण के संदर्भ में धृतराष्ट्र भी कहते हैं कि–
“तुम्हारे साथ विश्व है, क्योंकि तुम्हारा ध्येय विश्व कल्याण।”
अर्थात धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर के साथ संपूर्ण विश्व को माना है, क्योंकि उनका उद्देश्य विश्वकल्याण मात्र है।
- सत्य और धर्म के अवतार–सत्य की जीत खंडकाव्य में युधिष्ठिर को सत्य और धर्म का अवतार माना गया है। इनकी सत्य और धर्म के प्रति अधिक निष्ठा है। युधिष्ठिर के इस गुण पर मुग्ध होकर धृतराष्ट्र ने कहा है कि हे युधिष्ठिर तुम श्रेष्ठ धर्म परायण हो और इन्हीं गुणों के आधार बनाकर बिना किसी भय के अपना राज्य संभालो और राज करो।
निष्कर्ष स्वरूप कहा जा सकता है कि सत्य की जीत खंडकाव्य में युधिष्ठिर खंड काव्य के प्रमुख पात्र नायक है जिनमें विश्वकल्याण सत्य धर्म धीर शांत व सरल हृदई व्यक्तित्व का समावेश है।
सत्य की जीत खंडकाव्य परीक्षा के माध्यम से एक बहुत ही महत्वपूर्ण खंडकाव्य है कियोंकि सत्य की जीत खंडकाव्य कई बार काफी परीक्षाओँ में पूछा जा चुका है। आपको हमारा यह आर्टिकल केसा लगा ? आप हमे कमेंट करके बता सकते है अगर आपको लगता है कि हमें और जानकारी इस आर्टिकल में प्रस्तुत करना चाहिए या हमारे द्वारा उपलब्ध कराइ गयी जानकारी इस विषय के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
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